tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post877897457538865815..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: शेष की शक्ल में संभावनाएँशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62565886307018706842011-06-08T11:35:56.670+05:302011-06-08T11:35:56.670+05:30धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ और शैलेश भारतवासी दो...धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ और शैलेश भारतवासी दोनों का सही कहना है.<br /><br />उम्दा रचनाये हैं चतुर्वेदी साहब!!<br />ओलार के बारे में : उनछुये पहलुओं पर आप तो आग जला गए. <br />भभकना : कमाल अंदाज है अपना रोष दर्ज कराने का, लालटेन जल और बुझ कर तो नियति निभाती है, चंद क्षण ही सही आपकी नज़र से बच नहीं पाए.<br />और विषम संख्याएं तो....<br />शब्द नहीं है हमारे पास क्या कहें...<br />:)Adityahttps://www.blogger.com/profile/12353645890453271737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11833030837451031472011-04-29T19:15:24.427+05:302011-04-29T19:15:24.427+05:30संतोष जी के पात्र उनके लोक से आते है...उनके जाने-प...संतोष जी के पात्र उनके लोक से आते है...उनके जाने-पहचाने लोक से.......धीरे -धीरे उनसे संवाद शुरू होता है और यह लोक जीवन , हमारा, आपका और सबका जीवन बन जाता है.....एक ऐसा जीवन , जिसे इस अमानवीय व्यवस्था ने नरक सरीखा बना दिया है......संतोष जी हर दूसरी कविता में इससे जूझते मिलते है....कैसे इसे बेहतर बनाया जाए.....ओलार होने पर तो एक इक्का तक नहीं चल पाता , यह दुनिया कैसे चल पाएगी....यह व्यवस्था किसी भी गडित का इजाद कर ले.,कुछ संख्याये तो कटने से रह ही जायेंगी.....आज की फार्मूले बद्ध कविताओ का इससे बढ़िया प्रतिवाद क्या हो सकता है.?....हमारी कविता के सरोकार क्या है?,संतोष जी कभी नहीं भूलते....थके हुए समय में जी रहा, थका हुआ पाठक इन्हें पढने के बाद फुदकना चाहता है....यही हमारे समय की जरुरत भी है और भविष्य के लिए आशा की किरण भी..... .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-44875474469408899292011-04-29T09:45:47.225+05:302011-04-29T09:45:47.225+05:30धर्मेन्द्र जी,
अभाज्य संख्याओं वाली आपकी बात ठीक ...धर्मेन्द्र जी,<br /><br />अभाज्य संख्याओं वाली आपकी बात ठीक है, लेकिन कवि यहाँ कुछ विषय संख्याओं की बात कर रहा है, सभी की नहीं और प्राइम नम्बर विषय संख्या तो हैं ही (2 को छोड़कर)।<br /><br />लेकिन यहाँ कवि की दृष्टि की तारीफ की जानी चाहिएशैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29416442644805722402011-04-29T07:00:20.769+05:302011-04-29T07:00:20.769+05:30कविताएं जीवंत हैं! संतोष कुमार चतुर्वेदी की कविताए...कविताएं जीवंत हैं! संतोष कुमार चतुर्वेदी की कविताएं अपनी नयी शब्दावली गढ़ रही हैं! उन्हें बधाई, प्रस्तुति के लिए आपका आभार!Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55987510322968030152011-04-28T12:43:08.613+05:302011-04-28T12:43:08.613+05:30बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ
विवेक जैन vivj2000.blogsp...बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ<br /><br /><a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-16304112989168045122011-04-28T06:32:45.960+05:302011-04-28T06:32:45.960+05:30जिन्दगी से जुड़ी रचनाएँ. उद्वेलित करती हुई अभिव्यक्...जिन्दगी से जुड़ी रचनाएँ. उद्वेलित करती हुई अभिव्यक्तिM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3425954776239961432011-04-27T20:15:08.255+05:302011-04-27T20:15:08.255+05:30इन रचनाओं में संतोष जी की एक अलग शैली साफ नजर आती ...इन रचनाओं में संतोष जी की एक अलग शैली साफ नजर आती है। विषम संख्याएँ, भभकना और ओलार जैसी चीजें सबके जीवन में आती हैं। मगर इतनी आम चीजों को एक अलग दृष्टि से देखना और आम आदमी से उनको जोड़ देना। यही तो कविता है। आम आदमी आम चीजों से ही जुड़ता है। हाँ, सम संख्याएँ और विषम संख्याएँ दोनों ही अन्य संख्याओं से विभाजित हो सकती हैं। केवल अभाज्य संख्याएँ (prime numbers) ऐसी होती हैं जो सिर्फ स्वयं से और एक से विभाजित होती हैं। विषम संख्या जैसे कि ९ अगर ३ से कटे तो कुछ भी शेष नहीं बचता। मेरे ख्याल से यहाँ विषम की बजाय अभाज्य संख्याएँ होना चाहिए (प्रतीकात्मक अर्थ में भी)। इस स्तंभ को शुरू करने के लिए हिंद युग्म को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ तथा संतोष जी को पढ़वाने के लिए धन्यवाद।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-32963773326442595732011-04-27T15:55:46.027+05:302011-04-27T15:55:46.027+05:30संतोष भाई जब भी कुछ नया लिखते हैं तो संभवतःउनकी क...संतोष भाई जब भी कुछ नया लिखते हैं तो संभवतःउनकी कविताओं का पहला श्रोता मैं ही होता हूं। हिन्द युग्म पर उनकी कविताएं पढवाने के हिंद.युग्म परिवार को बधाई देता हूँ। भरत प्रसाद जी एवं साथ ही संतोष कुमार चतुर्वेदी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। आरसी चौहान; टेहरी गढवाल ।www.puravai.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/03485808500607916718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35995967544427144162011-04-27T11:59:19.153+05:302011-04-27T11:59:19.153+05:30sundar rachnaein yataarth se jodti hein. badhiyaa...sundar rachnaein yataarth se jodti hein. badhiyaaDishahttps://www.blogger.com/profile/14880938674009076194noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-24579961476224973862011-04-27T11:46:31.251+05:302011-04-27T11:46:31.251+05:30सर्वप्रथम मैं "काव्यसदी" स्तम्भ के लिए ह...सर्वप्रथम मैं "काव्यसदी" स्तम्भ के लिए हिंद-युग्म परिवार को बधाई देता हूँ। भाई श्री भरत प्रसाद जी को भी इस सार्थक स्तम्भ का दायित्व संभालने के लिए बधाई। साथ ही मैं "काव्यसदी" के पहले कवि होने का गौरव प्राप्त करने वाले स्नेही श्री संतोष कुमार चतुर्वेदी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। इनकी सभी रचनाएँ श्रेष्ठ हैं।kavisudhirchakra.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/01381245942782582100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35427520492248251612011-04-27T09:55:09.585+05:302011-04-27T09:55:09.585+05:30behtareen kavitaaye khas taur par lalaten bhabhaka...behtareen kavitaaye khas taur par lalaten bhabhakane waali.<br />prabha mujumdarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77983539743830091982011-04-26T22:55:49.324+05:302011-04-26T22:55:49.324+05:30santosh jee kee rachnayen bahut pasand aayeen...ni...santosh jee kee rachnayen bahut pasand aayeen...nishchit roop se yah stambh hindyugm ko ek kadam aur aage le jayega...meri dher saari shubhkamnayen.... <br /><br />saadarस्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34054921826471852312011-04-26T22:30:56.749+05:302011-04-26T22:30:56.749+05:30बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ ,जिंदगी से जुड़ा सत्य या कहू...बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ ,जिंदगी से जुड़ा सत्य या कहूँ तो असली साहित्य यही है जिसमें आम आदमी की बात है ,बधाई |anant alokhttp://sahityaalok.blogspot.comnoreply@blogger.com