tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8626411326808345078..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: कभी कभी बनना पड़ता है... सख्त दिलशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57308757451578324632007-10-28T00:26:00.000+05:302007-10-28T00:26:00.000+05:30ख़बरी जी,इतने दिनों बाद बिना किसी क्षमा-याचना के प...ख़बरी जी,<BR/><BR/>इतने दिनों बाद बिना किसी क्षमा-याचना के पाठकों तक अपने नियमित वार से अलग कविता पहुँचाना आपके ग़ैरजिम्मेदाराना रूख का परिचायक है। फ़िर भी 'सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते' की तर्ज पर आपका स्वागत किया जा सकता है। मैंने देखा कि अब आप काफ़ी खाली हो गये हैं क्योंकि आपकी प्रविष्टियाँ 'तहलका' पर भी आने लगी हैं। यह तो आपका घर है, यहाँ तो हर रविवार आया ही करेंगी।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85961023010994725072007-10-27T13:43:00.000+05:302007-10-27T13:43:00.000+05:30पूरी तरह से जालिम साहब से समर्थित, कि एक "खबरी" इत...पूरी तरह से जालिम साहब से समर्थित, कि एक "खबरी" इतने दिन बाद आया, और उसकी "खबर" तक नही ली ?<BR/>वैसे एक बात कहूं, जालिम जी, आपको भी काफी दिनों बाद पढा ।<BR/>"यार इस तमन्ना पर भी<BR/>बड़ा होने का अहसास<BR/>तमाचा मार जाता है..."<BR/>क्या बात है भाई, क्या गजब का मनोभाव ।<BR/>चूंकि सभी ने आपको काफी दिनों बाद पढा, इसलिये बड़ाई कर रहे है , पर भाव पुरानी रचनाओं से कुछ कमतर से लगे ।<BR/>जैसे "मां मेरी नज़र॰॰॰"जैसी कालजयी कवितायें ।<BR/>साभार,<BR/><BR/>आर्यमनु, उदयपुर ।आर्य मनुhttps://www.blogger.com/profile/14569110609435490290noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61104004516022433092007-10-27T11:26:00.000+05:302007-10-27T11:26:00.000+05:30मैं देखता हूं कि युग्म का दिल कितना बडा है। एक आदम...मैं देखता हूं कि युग्म का दिल कितना बडा है। एक आदमी आया और चला भी गया। और फिर एक दिन कहीं से भटक कर फिर आ गया। लेकिन यह लोग ऎसा दिखा रहें हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। खैर अब यही उम्मीद है कि खबरी जी फिर 'व्यस्त' नहीं होगें।Adminhttps://www.blogger.com/profile/13066188398781940438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-71294137018607307992007-10-26T16:01:00.000+05:302007-10-26T16:01:00.000+05:30देवेश जी,भावभरी - अभिव्यक्ति ...दिल करता हैकि झुकक...देवेश जी,<BR/><BR/>भावभरी - अभिव्यक्ति ...<BR/><BR/><BR/>दिल करता है<BR/>कि झुककर उठा लूं सब जो बिखर गया है...<BR/><BR/>इतने सख्त,<BR/>कि अब घुट भी नहीं पाता<BR/>सांस लेकर....<BR/><BR/><BR/>बहुत सुन्दर <BR/><BR/>बधाईगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46722885142627242672007-10-26T00:03:00.000+05:302007-10-26T00:03:00.000+05:30देवेश भैया. आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है ...अपने...देवेश भैया.<BR/> आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है ...अपने अतीत के साथ -साथ हमें हमारा भी अतीत याद दिला दिया ...बहुत खूब ...व्याकुल ...https://www.blogger.com/profile/02108429718696095830noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9579421736111275932007-10-25T12:08:00.000+05:302007-10-25T12:08:00.000+05:30देवेश जी!’घर-वापसी’ पर आपका स्वागत है. कविता बहुत ...देवेश जी!<BR/>’घर-वापसी’ पर आपका स्वागत है. कविता बहुत सुंदर लगी. पर भाई! घुटन तो बड़े होने के साथ बढ़ती है. हाँ, खुलकर रोने में संकोच होने लगता है.SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47359195392285206162007-10-25T11:40:00.000+05:302007-10-25T11:40:00.000+05:30वो नासमझियां क्यों पीछे छोड़ दी मैंने...?क्यों हो ...वो नासमझियां क्यों पीछे छोड़ दी मैंने...?<BR/>क्यों हो गया हूं इतना बड़ा<BR/>कि सब छूट गया<BR/>बहुत पीछे...<BR/>kaash ye sach na ho devesh, bahut dino baad aaye ho, kahan the ab takSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35186341353630398792007-10-25T10:17:00.000+05:302007-10-25T10:17:00.000+05:30देवेश जी,नाम खबरी और हमें बेखबर कर के चले गये...आप...देवेश जी,<BR/><BR/>नाम खबरी और हमें बेखबर कर के चले गये...<BR/>आपका एक बार फ़िर घर पर स्वागत है.. अब साथ बने रहियेगा और अपना फ़ोन नम्बर और पता भी दीजियेगा....<BR/><BR/>सुन्दर मनोभावो से सजी कविता के लिये बधाई.Mohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27206615595891915052007-10-25T07:51:00.000+05:302007-10-25T07:51:00.000+05:30पर यार इस तमन्ना पर भीबड़ा होने का अहसासतमाचा मार ...पर यार इस तमन्ना पर भी<BR/>बड़ा होने का अहसास<BR/>तमाचा मार जाता है...<BR/>वो नासमझियां क्यों पीछे छोड़ दी मैंने...?<BR/><BR/>पर सब रास्ते बंद कर लिये हैं मैंने...<BR/>इतने सख्त,<BR/>कि अब घुट भी नहीं पाता<BR/>सांस लेकर....<BR/><BR/>खबरी जी , युग्म पर आपका फिर से स्वागत करता हूँ और बाकी लोगों की तरफ मैं भी आपसे निरंतरता की कामना करता हूँ। <BR/>सुंदर बिंबों के प्रयोग से आपकी कविता चमक उठी है। भाव भी सुलझे हुए हैं। मुझे उपरोक्त पंक्तियाँ विशेष पसंद आईं।<BR/><BR/>बधाई स्वीकारें।विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-81202208172677704692007-10-24T23:05:00.000+05:302007-10-24T23:05:00.000+05:30देवेश जी,युग्म पर दुबारा आने का हार्दिक स्वागत.......देवेश जी,<BR/>युग्म पर दुबारा आने का हार्दिक स्वागत....इतेफाक देखिये, मैं घर से लौट कर आया हूँ और आप अपने "घर" को लौट आए हैं....आपकी भी ये "पहली" कविता है और मेरी भी "पहली" टिपण्णी...<BR/>खैर, कहाँ थे इतने दिन जनाब.....चलिए बाद में बातें होंगी....कविता अच्छी लगी..<BR/>निखिल आनंद गिरिNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91105028964493078812007-10-24T21:11:00.000+05:302007-10-24T21:11:00.000+05:30देवेश जीबहुत ही भावभरी प्यारी सी कविता लिखी है । ह...देवेश जी<BR/>बहुत ही भावभरी प्यारी सी कविता लिखी है । हृदय की सहज अभिव्यक्ति है । पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।<BR/>कभी-कभी दिल के भावों को यूँ ही सहज रूप में बहने देना चाहिए । कविता जब सहज रूफ में आए तो अधिक<BR/>प्रभावी बन जाती है -<BR/>वो नासमझियां क्यों पीछे छोड़ दी मैंने...?<BR/>क्यों हो गया हूं इतना बड़ा<BR/>कि सब छूट गया<BR/>बहुत पीछे...<BR/>कभी कभी<BR/>दिल करता है<BR/>कि झुककर उठा लूं सब जो बिखर गया है...<BR/>दिल करता है<BR/>कि चूम लू एक एक किरच<BR/>और फिर जोड़ लूं...<BR/>और ले आऊं एक जोड़ी सांस<BR/>बहुत-बहुत बधाई ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14911630259971929412007-10-24T20:38:00.000+05:302007-10-24T20:38:00.000+05:30देवेश जी,बहुत दिनों बाद घर लौटना हुआ? दुरुस्त आयद।...देवेश जी,<BR/><BR/><BR/>बहुत दिनों बाद घर लौटना हुआ? दुरुस्त आयद। <BR/><BR/>जब अतीत के पंख लगे दिन<BR/>जंजीर बनकर गर्म गर्म<BR/>तपाते रहते हैं...<BR/><BR/>दिल करता है<BR/>कि झुककर उठा लूं सब जो बिखर गया है...<BR/><BR/>इतने सख्त,<BR/>कि अब घुट भी नहीं पाता<BR/>सांस लेकर....<BR/><BR/>बहुत सुन्दर मिश्रण है बिम्बों और मनोभावों का। युग्म पर आपसे निरंतरता की अपेक्षा के साथ..<BR/><BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.com