tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8425889564159793773..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: गोष्ठी 14 - दोहा के संग-साथशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78180384326544696352017-04-29T14:09:59.735+05:302017-04-29T14:09:59.735+05:30nike free 5
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आचार्य जी ने मुझे आपके दोहों को सही करने ...अवनीश जी<br />आचार्य जी ने मुझे आपके दोहों को सही करने का गृहकार्य दिया है। आपके तीन दोहों को आपकी भावना के अनुरूप लिखने का प्रयास कर रही हूँ, आशा है आचार्य जी इन्हें पास कर देंगे। <br />1 रूप रंग न धन दौलत, आये अंत न काम<br />बस चरित्र हॅ स्थायी धन, बन जाएगा राम।<br />2 मन में हरि का ध्यान धरे, मरण समय जो लोग<br />जीवन उनका सफल है, स्वर्ग लोक का जोग।<br />3 कला औ विद्या में नीति, का लगता है जोड़<br />तब सारे गुण पूर्ण हो, यही स्वार्थ का तोड़।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85367452341426276032009-05-03T23:33:00.000+05:302009-05-03T23:33:00.000+05:30अजित जी!
आपने बहुत अच्छा कार्य किया है, कसौटी पर ख...अजित जी!<br />आपने बहुत अच्छा कार्य किया है, कसौटी पर खरी उतरीं हैं, आपको बधाई. <br />संशोधन के कार्य में संकोच न करें. अवनीश जी के दोहों में अभी भी लय-दोष है. आप चाहें तो कुछ शब्द बदल सकती हैं, <br />अगली गोष्ठी में अब तक के पाठों का संक्षिप्त सार दोहराने की दृष्टि से प्रस्तुत कीजिये ताकि विलंब से आनेवाले छात्र अब तक की पढ़ाई से परिचत हो ले..Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76895662880745757992009-05-03T10:10:00.000+05:302009-05-03T10:10:00.000+05:30अविनाश जी
मुझे आचार्य जी ने गुरूतर कार्य दे दिया ह...अविनाश जी<br />मुझे आचार्य जी ने गुरूतर कार्य दे दिया है अभी तो मैं स्वयं ही विद्यार्थी हूँ, लेकिन फिर भी प्रयास करती हूँ। आप द्वारा रचित दोहों की मात्राएं इस प्रकार होनी चाहिए, यदि कहीं गल्ती हो तो आचार्य जी सुधारेंगे।<br />रूप - रंग न धन गौरव , आये अंत में काम |<br />21 11 1 11 211 = 12, 22 21 2 21=12<br /><br /><br />है चरित्र ही स्थायी धन , कर नव चरित्र निर्माण ||<br /><br />२ १११ २ २२ ११ = १३, ११ ११ १११ 221 = 12<br /><br /><br />काम मित्रों शत्रु बलवान , करे सभी का नाश |<br /><br />२१ 1२ ११ ११२१ = १३, १२ १२ २ २१ = ११<br /><br />रहे सतर्क इससे हम , शमन से हो प्रयास ||<br /><br />१२ ११1 ११२ ११ =12 १११ २ २ १२१ =11 <br /><br />मृत्यु समय जो करता , मन में हरी का ध्यान |<br /><br />1२ १११ २ ११२ , ११ २ १२ २ २१ =११<br /><br />वह जीवन सफल रहे , जाये सीधे धाम ||<br /><br />११ २१२ १११ 1२ = १३, २२ २२ २१ =११ <br /><br />सब कला - विद्या में नीति , जब जाये है जोड़ |<br /><br />११ १२ १२ २ २१ =१३, ११ २२ २ २१ =११ <br /><br /><br />पूर्ण हो जाये हर गुण , स्वार्थ का यही तोड़ ||<br /><br />२१ २ २२ ११ ११ =१३ २१ २ १२ २१ = ११ <br /><br />साथ ही दोहे के द्वितीय और चतुर्थ चरण का अन्तिम अक्षर समान होना चाहिए। पहले दोहे में काम/निर्माण, दूसरे में नाश/प्रयास, तीसरे में ध्यान/धाम सही नहीं है जबकि चौथे में जोड़/तोड़ सही है। यदि मात्राएं सही होंगी तो स्वत: ही लय भी बनेगी। इसी के साथ दोहे के प्रथम शब्द में जगण अर्थात 121 मात्राओं का प्रयोग वर्जित है। आपके लिखने के क्रम से अर्थ में भी बदलाव दिखायी देता है। जैसे आए अन्त में काम। फिर भी आपका प्रयास और आपके विचार स्वागत योग्य हैं, हम भी ऐसे ही सीख रहे हैं, आप भी शीघ्र ही समाधान पा जाएंगे।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9209651010618547062009-05-02T22:02:00.000+05:302009-05-02T22:02:00.000+05:30Very sensible,indeed!
With slight correction:
...Very sensible,indeed!<br /><br />With slight correction: <br /><br />अजित जी ही ठीक लगें, इस नेकी के हेतु <br />बाकी के वानर यहाँ, बाँध सकें न सेतु. <br /><br />शुभ-रात्रि!Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17973183556324859482009-05-02T21:56:00.000+05:302009-05-02T21:56:00.000+05:30Very sensible,indeed!
अजित जी ही ठीक लगें, इस न...Very sensible,indeed!<br /> <br />अजित जी ही ठीक लगें, इस नेकी के हेतु <br />बाकी के वानर यहाँ, बाँध न सकें सेतु. <br /><br />शुभ-रात्रि!Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-69807324756300006372009-05-02T21:24:00.000+05:302009-05-02T21:24:00.000+05:30दोहा की ध्वज वाहिका अजित जी! आपके लिए विशेष दायित्...दोहा की ध्वज वाहिका अजित जी! आपके लिए विशेष दायित्व का कार्य... प्रिय अवनीश जी की इस कोशिश को सुधारना का तरीका बताइए तथा उस तरीके से इन्हें दोहे के सही रंग में लाइए. मैं जानता हूँ कि आप यह कर सकेंगी. मेरी अनुपस्थिति में कक्षा आपके हवाले... मनु जी! पूर्व सूचना... अगली बार दोहों में सुधार कार्य में आपकी सहायता ली जायेगी...तैयार रहें.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29635461956476846642009-05-02T19:56:00.000+05:302009-05-02T19:56:00.000+05:30आचार्यजी ,
आपके बताये दोहा के नियमों को दोहर...आचार्यजी ,<br /><br /> आपके बताये दोहा के नियमों को दोहरा , कुछ दोहे लिखें हैं | यदि आपको समय मिले तो इन्हें जांच दीजिये |<br /><br />नियमों का पालन -<br />१. १३-११ मात्रायों के पद <br />२. सम पदों के अंत में गुरु - लघु | <br />३. गण का मैं अनुमान नहीं लगा पा रहा हूँ ?<br />४. तुकांत शब्दों से सम पदों का अंत , लयात्मक रखने की कोशिश |<br />५. पदों में गहरे अर्थ रखने का प्रयास |<br /><br />दोहे के पद - <br /><br />रूप - रंग न धन गौरव , आये अंत में काम |<br /><br />२१ २१ १ ११ २११ = १३, २२ २१ २ २१ = ११ <br /><br />है चरित्र ही स्थायी धन , कर नव चरित्र निर्माण ||<br /><br />२ १११ २ २२ ११ = १३, ११ ११ १११ 121 = ११<br /><br /><br />काम मित्रों शत्रु बलवान , करे सभी का नाश |<br /><br />२१ 1२ ११ ११२१ = १३, १२ १२ २ २१ = ११<br /><br />रहे सतर्क इससे हम , शमन से हो प्रयास ||<br /><br />१२ ११२ ११२ ११ =13 १११ २ २ १२१ =11 <br /><br />मृत्यु समय जो करता , मन में हरी का ध्यान |<br /><br />२२ १११ २ ११२ , ११ २ १२ २ २१ =११<br /><br />वह जीवन सफल रहे , जाये सीधे धाम ||<br /><br />११ २१२ १११ 1२ = १३, २२ २२ २१ =११ <br /><br />सब कला - विद्या में नीति , जब जाये है जोड़ |<br /><br />११ १२ १२ २ २१ =१३, ११ २२ २ २१ =११ <br /><br /><br />पूर्ण हो जाये हर गुण , स्वार्थ का यही तोड़ ||<br /><br />२१ २ २२ ११ ११ =१३ २१ २ १२ २१ = ११ <br /><br /><br />आपका,<br />अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-53727813353783463702009-04-30T15:18:00.000+05:302009-04-30T15:18:00.000+05:30Help! गुरु जी,
दोहे के दूसरे व चौथे चरण की यति gu...Help! गुरु जी, <br />दोहे के दूसरे व चौथे चरण की यति guru होने से गलती हो गई है. स्वयं-सुधार का एक सफल या असफल प्रयत्न कर रही हूँ:<br /><br />चुप बैठी कब से यहाँ, चित्त रहा ना लाग<br />पिंजरे के पंछी सा, मन कहता है भाग.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41761500834945082532009-04-30T11:20:00.000+05:302009-04-30T11:20:00.000+05:30आचार्य जी
आपने लिखा कि सर्प में 48 लघु हैं तब दोहे...आचार्य जी<br />आपने लिखा कि सर्प में 48 लघु हैं तब दोहे के अन्त में गुरु लघु कैसे होगा?अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-39234022047411194012009-04-30T10:12:00.000+05:302009-04-30T10:12:00.000+05:30आचार्य जी प्रणाम,
बोलूंगी तो सब बोलेंगे बोलती है.....आचार्य जी प्रणाम,<br />बोलूंगी तो सब बोलेंगे बोलती है.....लेकिन बोलना तो पड़ेगा ही, है ना?<br />आपने कहा है कि संकोच ना करुँ तो ठीक है फिर से आ गयी हूँ हिम्मत करके. लेकिन अपना हिसाब dodgy ही रहेगा मनु जी की तरह जो आज खूब फुदक रहे हैं. समझ रहे हैं कि उनका तुक्का फिट हो गया है. आप कितना tolerate करते हैं हम सबको और फिर कितने धैर्य से हम सबको समझाते हैं, की हुई भूलों को सुधारते हैं, यह सब हमें अनदेखा नहीं करना चाहिये. आपके उत्साह का 'सलिल' प्रवाह अत्यंत प्रशंशनीय है. इसके बारे में जितना कहो कम है. <br />आपने मेरे भी दोहों को देखा, सुधारा, कभी सराहा भी और उनकी कमियों को भी बताकर प्रेरणा देने का प्रयास किया बिना डांटे-फटकारे उसके लिए आभारी हूँ. आज यह कुछ दोहे आपकी सेवा में लायी हूँ. इन्हें चाहें आप या चाहें तो मनु जी बतायें कि किस category में रखा जाये. या नीलम जी, अजित जी, पूजा जी और तपन जी भी सुलझाने की कोशिश करें तो और भी अच्छा होगा. <br /><br />चुप बैठी कब से यहाँ, चित्त यहाँ न लागे <br />पिंजरे के पंछी सा, मन उड़न को भागे. <br /><br />अब एक कुंडलिनी:<br /><br />खुद का लिखा जो समझे, जीत सके मैदान <br />जो बस उलझा ही रहे, खिंचते उसके कान. <br />खिंचते उसके कान, फुदकता रहता फिर भी<br />नक़ल करे कक्षा में, ताकता इधर-उधर भी<br />पूछ ले अब शन्नो, जो भी सकें राह दिखा <br />समझ ढंग से यहाँ, तू अपने खुद का लिखा. <br /><br />कुछ और आ गया दिमाग में तो अब मैं क्या करुँ? चलो बोल देती हूँ:<br /><br />फुदक रहा कोई यहाँ, तुक्के से दी मात <br />मेहनत रोज़ जो करें, पीस रहे वह दांत.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77813474548167993152009-04-30T00:58:00.000+05:302009-04-30T00:58:00.000+05:30http://vivj2000.blogspot.com/
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सभी को नाप दिया है ...क्या बात है आचार्य,,,,,,,,,,,<br /><br />सभी को नाप दिया है आपने तो ,,,,,<br />और मुझे तो बड़ा ही मजा आया जब पता लगा के नाम चाहे जो भी हो ,,पर मेरा दोहा सही है,,,,<br /> अपना तो तुक्का फिट ,,,,,manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.com