tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8358781161924675733..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: मॉल है या कि अजायबघर है..शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26528844342731487982009-12-17T10:21:27.783+05:302009-12-17T10:21:27.783+05:30मैं क्या लिखूं, आप तो सब लिख गए, बस इतना ही कहना ह...मैं क्या लिखूं, आप तो सब लिख गए, बस इतना ही कहना है कि <br />इस अजायबघर में ज़िन्दा रखना मकई के दाने<br />खेतों की श़ुशबू कुछ तो याद दिलाएगी,<br />ज़मीन से बहुत ऊंचे 50-100 फीट की ऊंचाई से<br />ज़मीं देखकर कुछ तो एहसास होगा<br />कभी तो लगेगा कि गमलों में नहीं उगते मकई के दाने...<br />ज़मीं ज़रूरी है पॉप कॉर्न के लिए..<br />शायद यही सच आसमां वालों को कभी ले आए ज़मीं पर..<br />बहुत खूब निखिल जी, शर्मिंदा हूं कि आपसे किया वादा अब तक नहीं निभा सका।rakesh tiwarihttps://www.blogger.com/profile/07905396507135030752noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62136623911082358662009-01-07T23:35:00.000+05:302009-01-07T23:35:00.000+05:30दुनिया का प्राचीनतम, देश बना बाज़ार.फ़िर भी हम ख़ुद ...दुनिया का प्राचीनतम, <BR/>देश बना बाज़ार.<BR/>फ़िर भी हम ख़ुद से नहीं,<BR/>'सलिल' हुए बेजार.<BR/><BR/>आधी दुनिया मॉल है,<BR/>आधी दुनिया माल.<BR/>माल-टाल के फेर में,<BR/>हैं बाकी बेमाल. <BR/><BR/>चुप पनघट-चौपाल है.<BR/>मौन खेत-खलिहान.<BR/>गुमसुम मरती जिंदगी,<BR/>मॉल देख हैरान.<BR/><BR/>संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम<BR/>दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉमDivya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-75109044357313014262009-01-06T22:10:00.000+05:302009-01-06T22:10:00.000+05:30इस विषय पे इतनी सुंदर कविता में तो सोच भी नही सकती...इस विषय पे इतनी सुंदर कविता में तो सोच भी नही सकती थी <BR/>शायद ये कविता सबमे बसती है या फ़िर इस के सभी बसते हैं ..भारत में मॉल देखा है सही चित्रण है <BR/>सादर<BR/>रचनाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-88196953366250920472009-01-05T19:29:00.000+05:302009-01-05T19:29:00.000+05:30सुनकर दुख हुआ हरकीरत जी....मगर ऐसा क्यूं...वहां नि...सुनकर दुख हुआ हरकीरत जी....मगर ऐसा क्यूं...वहां निकलने में कैसी मुश्किल है...आप बैठक में अपने अनुभव बांटिए ना...<BR/><BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-69284625723961896602009-01-05T14:40:00.000+05:302009-01-05T14:40:00.000+05:30निखिल जी, आपका स्नेह सर आखों पर, पर तो मेरा गुवाह...निखिल जी, आपका स्नेह सर आखों पर, पर तो मेरा गुवाहाटी में ही निकलना मुश्किल हो जाता है इस तरह के<BR/> कार्यक्रमों में भाग लेना तो सपना सा है....अभी हाल ही में दिल्ली से लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी का<BR/> भी फोन आया था १६ जनवरी भुवनेश्वर में सर्वभाषा कवि सम्मेलन के लिए मुझे वहाँ भी इनकार करना पडा...हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27874875625971270192009-01-05T12:56:00.000+05:302009-01-05T12:56:00.000+05:30निखिल जी वार्षिकोत्सव की याद ताजा हो गयीनिखिल जी <BR/>वार्षिकोत्सव की याद ताजा हो गयीUnknownhttps://www.blogger.com/profile/15870115832539405073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3448492317380856872009-01-05T11:29:00.000+05:302009-01-05T11:29:00.000+05:30हे ..राम....!! ये कैसी ग़लतफ़हमी......??????मैं औ...हे ..राम....!! ये कैसी ग़लतफ़हमी......??????<BR/>मैं और आप से नाराज....????? मीर साहेब का शेर है...<BR/><BR/>|| बैठने कौन दे है फ़िर उसको,<BR/> जो तेरी आस्तां से उठता है.||<BR/><BR/>ये आपके मन में आया कैसे .....???<BR/>आपसे नाराज हो के कहाँ जा सकते हैं...??manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-54831841319240826342009-01-05T11:06:00.000+05:302009-01-05T11:06:00.000+05:30हरिहर जी,बाज़ार की ख़ासियत ही यही है कि हर जगह एकर...हरिहर जी,<BR/>बाज़ार की ख़ासियत ही यही है कि हर जगह एकरसता छा जाती है...क्या करें....<BR/><BR/>तपन जी, <BR/>तालियां पीटते रहिए, ठंड कम लगेगी...<BR/>मनु जी,<BR/>बस...शुक्रिया....आप आजकल नाराज़ टाइप चल रहे हैं, इसीलिए ज़्यादा नहीं बोलूंगा..<BR/><BR/>हरकीरत जी का भी शुक्रिया...आप भी कार्यक्रम में होती तो अच्छा होता...Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36047088281786087552009-01-04T21:48:00.000+05:302009-01-04T21:48:00.000+05:30आपकी इस कविता की काफी तारीफ सुनी थी आज पढने को भी ...आपकी इस कविता की काफी तारीफ सुनी थी आज पढने को भी मिली ...अच्छी लगी कुछ <BR/>अलग हटकर... हमारे ही एक बनावटी चेहरे को दर्शाती हुई...हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37085587134722747492009-01-04T21:43:00.000+05:302009-01-04T21:43:00.000+05:30तपन जी से सहमत हूँ..आपको रू बा रू सुन ने के बाद अब...तपन जी से सहमत हूँ..आपको रू बा रू सुन ने के बाद अब पढने में वो बात कहाँ.....<BR/>सच में उस दिन क्या रंग जमा था इस कविता का.......आपका और नाजिम जी का अंदाज़ अब तक ज़हन से नहीं गया.....manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-45657785413905569672009-01-04T15:51:00.000+05:302009-01-04T15:51:00.000+05:30पिछले रविवार वार्षिकोत्सव पर ये कविता सुनी थी..समझ...पिछले रविवार वार्षिकोत्सव पर ये कविता सुनी थी..<BR/>समझ लीजिये कि उतनी ही तालियाँ आज फिर पीट रहा हूँ.. :)तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-92016667964260965472009-01-04T14:51:00.000+05:302009-01-04T14:51:00.000+05:30एक शमशान की छत के ऊपर,अब भी कई किस्से दफ़न होते है...एक शमशान की छत के ऊपर,<BR/>अब भी कई किस्से दफ़न होते हैं,<BR/>कभी तो मूवी के बहाने से,<BR/>मकई के चंद महंगे दाने से.....<BR/>पढ़ कर अच्छा लगा .. याद ताजा हो गई अभी अभी भारत के मॉल देख कर आ रहा हू हर देश के<BR/>मॉल का वही किस्सा है जो काव्यात्मक ढंग से<BR/>आपने पेश किया हैHariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40322519144337208372009-01-04T14:50:00.000+05:302009-01-04T14:50:00.000+05:30एक शमशान की छत के ऊपर,अब भी कई किस्से दफ़न होते है...एक शमशान की छत के ऊपर,<BR/>अब भी कई किस्से दफ़न होते हैं,<BR/>कभी तो मूवी के बहाने से,<BR/>मकई के चंद महंगे दाने से.....<BR/>पढ़ कर अच्छा लगा .. याद ताजा हो गई अभी अभी भारत के मॉल देख कर आ रहा हू हर देश के<BR/>मॉल का वही किस्सा है जो काव्यात्मक ढंग से<BR/>आपने पेश किया हैHariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42786582299045452012009-01-04T13:32:00.000+05:302009-01-04T13:32:00.000+05:30सुना है जिस जगह है मॉल खड़ा,वहां शमशान हुआ करता था...सुना है जिस जगह है मॉल खड़ा,<BR/>वहां शमशान हुआ करता था,<BR/>सोचता हूं कि कुछ नहीं बदला,<BR/>एक शमशान की छत के ऊपर,<BR/>अब भी कई किस्से दफ़न होते हैं,<BR/>*<BR/>बहुत खुबसूरत, सटीक चित्रण |<BR/>विनय के जोशीvinay k joshihttps://www.blogger.com/profile/00166673865760285965noreply@blogger.com