tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8148192306178778893..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: नि:शब्द .....शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-33978303701967203962009-03-10T22:51:00.000+05:302009-03-10T22:51:00.000+05:30आप के पास शब्दों का भंडार है और कहती हैं कि निःशब्...आप के पास शब्दों का भंडार है और कहती हैं कि निःशब्द हैंUdai Singhhttps://www.blogger.com/profile/13319798606204135783noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70334349628709471742008-12-29T00:57:00.000+05:302008-12-29T00:57:00.000+05:30रुपम जी आपको पढ़ने का मौका पहली बार मिला। सारी रचन...रुपम जी आपको पढ़ने का मौका पहली बार मिला। सारी रचनाएं भी पढ़ीं और उन पर की गई टिप्पणियां भी। एक बात साफ है कि आपके पास संवेदना भरपूर है और लफ्जों की भी खान है। आप की ये बात भी वाजिब है कि आप खुद कहती हैं कि आप बहर में नहीं लिखती। कुछ बातें शायद कड़वीं लगे। आपने जो चंद कविताओं (कथित तौर पर गज़लें)के नीचे उनके बे-बहर होने की प्रौढ़ता की है, वो गज़ल विधा का उपहास किया गया लगता है। खास कर तब जब खुद आपको गज़ल से ज्यादा लगाव हो तो ऐसा करना दुखदायी लगता है। इस बात की घोषणा करना कि आप बहर में नहीं लिखती भी आपको ऐसा करने की छूट नहीं देता। हो सकता है ये आपको एक झंझट लगता हो या अभिव्यक्ति पर बंधन, लेकिन हर विधा का अपना विधि विधान होता है। एक दोस्त ने इसके लिए बशीर बद्र की टिप्पणीयां भी बिल्कुल सटीक दी हैं। आपकी गज़ल पर साथियों की टिप्पणीयों के आधार पर ही कहूं तो सबसे बड़ी कमी लय की है और बहर ही वो औज़ार है जो गज़ल को लय प्रदान करने का बनाया गया फ्रेम है। दरअसल लय को हिसाब के फॉर्मुलों या गणनाओं में मापा तो नहीं जा सकता लेकिन कुछ ज्ञानी लोगों ने सदियों की मेहनत से बहर ईजाद की है, जो गज़ल को सही रुप, रवानगी और मान्यता प्रदान करती है। ये बहुत मुश्किल भी नहीं है। आप शायद कहें कि मैं तो बस अपनी अभिव्यक्ति के लिए लिखती हूं, फिर भी आप उसे दूसरों से बांट रही हैं तो जरुरी है कि वो अपनी विधा के विधान पर खरा उतरे। गौर करिए आपके उर्दू लफ्जों कों साथियों ने इसलिए सिर आंखों पर बिठाया कि उन्हे कुछ नया सीखने को मिला। ठीक वैसे ही हिंद युग्म के नए साथी या अन्य जिज्ञासू जब गज़ल की तलाश में इंटरनेट पर आएंगे तो वो इसे ही सही विधान समझेंगे। जो भविष्य में गज़ल के रुप को बिगाड़ने में मदद करेगा। क्या कोई अपने बच्चों को इस लिए गुणा करना नहीं सिखाएगे, क्यों कि खुद उसे पहाड़े याद नहीं होते। जैसे कम्पयूटर में हर कमांड हर सॉफ्टवेयर के लिए निर्धारित बाइनरी कोड होता है, बहर गज़ल की बाइनरी है। बाइनरी का एक स्विच 0 या 1 गल्त होने पर पूरी कमांड या साफ्टवेयर बेमायने हो जाता है, ऐसा ही गज़ल में है। मेरा वादा है आपसे गर आप इसको अज़माएंगी, आपको अपनी ही गज़ल लिखने सुनने और गुनगुनाने में मज़ा आने लगेगा। शायद आपको अभी भी आता हो, लेकिन फिर हर पढ़ने सुनने और सुनाने वाले को भी वैसा ही फील मिलेगा जैसा के उसे लिखते हुए उसमे डालने की कोशिश की थी। मेरे उस्ताद जनाब डा सुरजीत पातर जी जो कि इस सदी के पंजाबी शायरी के सुनहरी हस्ताक्षर हैं कहा करते हैं गज़ल में तीन चीज़ों शिल्प(बहर), शुऊर और शिद्दत बेहद लाज़िमी हैं, इनमें से एक भी आपके बस से बाहर है, तो आप गज़ल से नाइंसाफी ना करे। आने वाली पीढ़ी आप से क्या उम्मीद करेगी। वो तो अक्सर किसी नए आने वाले शार्गिद से कहते हैं,'जाओ पहले सौ अच्छे शेर याद करके आओ'। इस कसोटी के बारे में उनका कहना है कि 100 शेर याद करने में ही उसकी शिद्दत पता चल जाती है और जो याद करले शिल्प और शुऊर समझने में देर नहीं लगती। हिंद युग्म का साथी और शुभ चितक होने के नाते ये मशविरा देने की हिमाकत की। लफ्जों की बजाए संवेदना को तव्वजो देने की इनायत करें।<BR/>शुभ इच्छाएंDeep Jagdeephttps://www.blogger.com/profile/14695925764627099199noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49567839038416263652008-12-29T00:20:00.000+05:302008-12-29T00:20:00.000+05:30बाकी कविताओं पर अब टिप्पणी करना काफी देरी होगी। ले...बाकी कविताओं पर अब टिप्पणी करना काफी देरी होगी। लेकिन ताज़ा के बारे में कहूं तो,<BR/><BR/><BR/>यूँ सियासत को देने तानों की कमी नहीं<BR/>बारी इंतेखाब की फ़िर सच बता जाती है<BR/>शेर का पहला मिसरा पूरी तरह से सपष्ट नहीं है, क्या कहना चाहता है साफ नहीं होता।<BR/><BR/>यूँ तो फ़िक्र न रिश्तों के निभाने की है<BR/>कारे-ज़माना बचने सब निभा जाती है<BR/>दूसरे मिसरे में बचने क्या है,शायद मुझे नहीं पता किसी साथी को पता हो तो बताएं, इस वजह से मेरे लिए ये मिसरा असपष्ट हो जाता है।<BR/><BR/>तर्ज़ भी को अगर तर्ज़ ही कर दिया जाए तो बात में वज़न बढ़ जाएगा।Deep Jagdeephttps://www.blogger.com/profile/14695925764627099199noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-68136045338627617512008-12-28T23:55:00.000+05:302008-12-28T23:55:00.000+05:30रुपम जी आपको पढ़ने का मौका पहली बार मिला। सारी रचन...रुपम जी आपको पढ़ने का मौका पहली बार मिला। सारी रचनाएं भी पढ़ीं और उन पर की गई टिप्पणियां भी। एक बात साफ है कि आपके पास संवेदना भरपूर है और लफ्जों की भी खान है। आप की ये बात भी वाजिब है कि आप खुद कहती हैं कि आप बहर में नहीं लिखती। कुछ बातें शायद कड़वीं लगे। आपने जो चंद कविताओं (कथित तौर पर गज़लें)के नीचे उनके बे-बहर होने की प्रौढ़ता की है, वो गज़ल विधा का उपहास किया गया लगता है। खास कर तब जब खुद आपको गज़ल से ज्यादा लगाव हो तो ऐसा करना दुखदायी लगता है। इस बात की घोषणा करना कि आप बहर में नहीं लिखती भी आपको ऐसा करने की छूट नहीं देता। हो सकता है ये आपको एक झंझट लगता हो या अभिव्यक्ति पर बंधन, लेकिन हर विधा का अपना विधि विधान होता है। एक दोस्त ने इसके लिए बशीर बद्र की टिप्पणीयां भी बिल्कुल सटीक दी हैं। आपकी गज़ल पर साथियों की टिप्पणीयों के आधार पर ही कहूं तो सबसे बड़ी कमी लय की है और बहर ही वो औज़ार है जो गज़ल को लय प्रदान करने का बनाया गया फ्रेम है। दरअसल लय को हिसाब के फॉर्मुलों या गणनाओं में मापा तो नहीं जा सकता लेकिन कुछ ज्ञानी लोगों ने सदियों की मेहनत से बहर ईजाद की है, जो गज़ल को सही रुप, रवानगी और मान्यता प्रदान करती है। ये बहुत मुश्किल भी नहीं है। आप शायद कहें कि मैं तो बस अपनी अभिव्यक्ति के लिए लिखती हूं, फिर भी आप उसे दूसरों से बांट रही हैं तो जरुरी है कि वो अपनी विधा के विधान पर खरा उतरे। गौर करिए आपके उर्दू लफ्जों कों साथियों ने इसलिए सिर आंखों पर बिठाया कि उन्हे कुछ नया सीखने को मिला। ठीक वैसे ही हिंद युग्म के नए साथी या अन्य जिज्ञासू जब गज़ल की तलाश में इंटरनेट पर आएंगे तो वो इसे ही सही विधान समझेंगे। जो भविष्य में गज़ल के रुप को बिगाड़ने में मदद करेगा। क्या कोई अपने बच्चों को इस लिए गुणा करना नहीं सिखाएगे, क्यों कि खुद उसे पहाड़े याद नहीं होते। जैसे कम्पयूटर में हर कमांड हर सॉफ्टवेयर के लिए निर्धारित बाइनरी कोड होता है, बहर गज़ल की बाइनरी है। बाइनरी का एक स्विच 0 या 1 गल्त होने पर पूरी कमांड या साफ्टवेयर बेमायने हो जाता है, ऐसा ही गज़ल में है। मेरा वादा है आपसे गर आप इसको अज़माएंगी, आपको अपनी ही गज़ल लिखने सुनने और गुनगुनाने में मज़ा आने लगेगा। शायद आपको अभी भी आता हो, लेकिन फिर हर पढ़ने सुनने और सुनाने वाले को भी वैसा ही फील मिलेगा जैसा के उसे लिखते हुए उसमे डालने की कोशिश की थी। मेरे उस्ताद जनाब डा सुरजीत पातर जी जो कि इस सदी के पंजाबी शायरी के सुनहरी हस्ताक्षर हैं कहा करते हैं गज़ल में तीन चीज़ों शिल्प(बहर), शुऊर और शिद्दत बेहद लाज़िमी हैं, इनमें से एक भी आपके बस से बाहर है, तो आप गज़ल से नाइंसाफी ना करे। आने वाली पीढ़ी आप से क्या उम्मीद करेगी। वो तो अक्सर किसी नए आने वाले शार्गिद से कहते हैं,'जाओ पहले सौ अच्छे शेर याद करके आओ'। इस कसोटी के बारे में उनका कहना है कि 100 शेर याद करने में ही उसकी शिद्दत पता चल जाती है और जो याद करले शिल्प और शुऊर समझने में देर नहीं लगती। हिंद युग्म का साथी और शुभ चितक होने के नाते ये मशविरा देने की हिमाकत की। लफ्जों की बजाए संवेदना को तव्वजो देने की इनायत करें।<BR/>शुभ इच्छाएंDeep Jagdeephttps://www.blogger.com/profile/14695925764627099199noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-21558614308623938652008-12-09T12:34:00.000+05:302008-12-09T12:34:00.000+05:30बेकदर वो बेबस मौतें कुछ सिखा जाती हैऔकात वो मेरी म...बेकदर वो बेबस मौतें कुछ सिखा जाती है<BR/>औकात वो मेरी मुझको ही दिखा जाती है<BR/><BR/>सच ही लिखा है...दीपालीhttps://www.blogger.com/profile/17652883863725421545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26291606016180239732008-12-07T19:50:00.000+05:302008-12-07T19:50:00.000+05:30तस्वीर के साथ का कैप्शन इतना जोरदार था कि दिल हिल ...तस्वीर के साथ का कैप्शन इतना जोरदार था कि दिल हिल गया.<BR/>हमेशा की तरह आपकी गजल अच्छी से बेहतर होती जा रही है.<BR/>आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15748941161766333052008-12-07T18:36:00.000+05:302008-12-07T18:36:00.000+05:30आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया | 'तर्ज़ 'के बारे में ज...आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया | <BR/>'तर्ज़ 'के बारे में जानकारी देने का ख़ास शुक्रिया | जैसे मनु जी न कहा, ज्ञान वृद्धि के लिए ज़रूरी था .. और अगर ग़लत होता तो मैं माँ कर उसे दुरुस्त भी कर लेती | <BR/><BR/>God bless<BR/>RCStraight Bendhttps://www.blogger.com/profile/03135986626734443231noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36495995481923544752008-12-06T14:39:00.000+05:302008-12-06T14:39:00.000+05:30मुफलिस जी का शुक्रिया जानकारी के लिए.....ये लगता ह...मुफलिस जी का शुक्रिया जानकारी के लिए.....<BR/>ये लगता है की तर्ज़ को जिस तरह से इस्तेमाल करें ..हो सकती है या हो सकता है..............क्यूंकि तर्जे कलाम तर्जे तगाफुल से मैं सहमत हूँ के ये पुल्लिंग ही है ........<BR/>अपने बजाय फैज़ साहिब का शेर इसलिए कहा .....के वो प्रमाणिक है ...........अपनी तो कोई गिनती है नहीं .....एक बार फ़िर नए ढंग से सोच कर देखें...........मैं भी कुछ और सोचता हूँ,<BR/>और ये सब ज्ञान वृद्धि के लिए ज़रूरी भी है........manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15832238173088072242008-12-06T13:34:00.000+05:302008-12-06T13:34:00.000+05:30हाताश आम आदमी के जज्बातों को सही तरह से उतारा है अ...हाताश आम आदमी के जज्बातों को सही तरह से <BR/>उतारा है अपने अपनी ग़ज़ल मैंदिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62822791898125233532008-12-06T00:08:00.000+05:302008-12-06T00:08:00.000+05:30bahot khub likha hai aapne dhero badhai aapko... b...bahot khub likha hai aapne dhero badhai aapko... bahar me nahi hai to kya hua maza to aaya hi hai dhero badhai aapko....."अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-51274912607215175242008-12-05T23:17:00.000+05:302008-12-05T23:17:00.000+05:30"ज़िन्दगी लेने वाले बस इतनी खता है तेरीमाँ से न पू..."ज़िन्दगी लेने वाले बस इतनी खता है तेरी<BR/>माँ से न पूछा ज़िन्दगी देना क्या है "<BR/><BR/>रूपम जी... गज़ल ढंग से पढी नहीं... या यूँ कहूँ कि जरूरत ही नहीं समझी...<BR/>बस फोटो के ऊपर की दो लाइनें पढ़ ली थी... आगे कुछ पढ़ने को बाकी नहीं रहा...तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40709539653896884042008-12-05T19:52:00.000+05:302008-12-05T19:52:00.000+05:30बेकदर वो बेबस मौतें कुछ सिखा जाती हैऔकात वो मेरी म...बेकदर वो बेबस मौतें कुछ सिखा जाती है<BR/>औकात वो मेरी मुझको ही दिखा जाती है<BR/>मुझे ये शेर बहुत पसंद आया <BR/>सादर<BR/>रचनाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27838885206291652402008-12-05T19:37:00.000+05:302008-12-05T19:37:00.000+05:30har dukh, takleef, haadise ke baad phir wohi maamo...har dukh, takleef, haadise ke baad phir wohi maamool...raahe.aam..<BR/>kuchh duaaeiN, kuchh taane, kuchh prarthanaaeiN, kuchh laah`ntein.<BR/>Sb kuchh b.khoobi socha, likha aapne.<BR/>AAPKA tarz.e.bayaaN ACHHA hai.<BR/>jee haaN ! TARZ is arabic, cud be used as both masc & fem e.g. ...<BR/>tarz.e.adaa=haav bhaav ka dhang<BR/>tarz.e.kalaam=vaak.shaili<BR/>tarz.e.guftgu=baat krne ka tareeqa<BR/> aur shaili (dono)<BR/>"ye tera tarz.e.tgaaful hai koi jaane-karam , ya maiN samjhooN k meri hausla.afzaai hai"<BR/>khair ek achhi rachna ke liye badhaaee..behtari ki gunjaaeesh to hamesha rehti hi hai.<BR/> ---MUFLIS---daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58556297705336805222008-12-05T19:26:00.000+05:302008-12-05T19:26:00.000+05:30puri nazm khubsaurat hai. lekin mujhe ye ashar kuc...puri nazm khubsaurat hai. lekin mujhe ye ashar kuch zyada hi acche lage<BR/>राहे-फितना लम्हे कुछ बिता जाती है<BR/>ज़िन्दगी फ़िर राहे-आम आ जाती है<BR/>--shamikh.farazAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-38829999425335200592008-12-05T19:07:00.000+05:302008-12-05T19:07:00.000+05:30बिल्कुल असहमत हूँ...फैज़ साहब का शेर है"हमने जो तर...बिल्कुल असहमत हूँ...फैज़ साहब का शेर है<BR/>"हमने जो तर्ज़-ऐ-फुगाँ की थी कफस में ईजाद ,<BR/>फैज़ गुलशन में वो ही तर्ज्र-ऐ-बयाँ ठहरी है."manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15391610839779788182008-12-05T18:54:00.000+05:302008-12-05T18:54:00.000+05:30आपके विचार बहुत सुंदर है , आप हिन्दी ब्लॉग के माध्...आपके विचार बहुत सुंदर है , आप हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से समाज को एक नयी दिशा देने का पुनीत कार्य कर रहे हैं ....आपको साधुवाद !<BR/>मैं भी आपके इस ब्लॉग जगत में अपनी नयी उपस्थिति दर्ज करा रही हूँ, आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है मेरे ब्लॉग पर ...!malahttps://www.blogger.com/profile/09493715792470271562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29343198273650794662008-12-05T18:52:00.000+05:302008-12-05T18:52:00.000+05:30Shukriya.Manu ji, mere khayaal se Tarz pulling hai...Shukriya.<BR/><BR/>Manu ji, mere khayaal se Tarz pulling hai - Arabic, Noun, Masculine gender. <BR/><BR/>Rawaangi/gungunaane ki baat aapne theek kahi. Wo kami hai. Behr mein nahi likhti.<BR/><BR/>RCStraight Bendhttps://www.blogger.com/profile/03135986626734443231noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86220137187768596852008-12-05T18:17:00.000+05:302008-12-05T18:17:00.000+05:30अगर तर्ज़ लिख रहे हैं तो एसा के बजाय लिखें..तर्ज़ ...अगर तर्ज़ लिख रहे हैं तो एसा के बजाय लिखें..तर्ज़ पुल्लिंग नहीं है ... शब्द अच्छे हैं पर न गुनगुना पाने के कारण मज़ा कम आया.......रवानगी की कमी खल रही है ........जो शायद मुझे सबसे ज़रूरी लगती है....हो सकता है के इसे लेखक ने किसी और ढंग से पढा होmanuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62605960127801550992008-12-05T17:37:00.000+05:302008-12-05T17:37:00.000+05:30पढकर एक एक शब्द को बरबस निकले वाहफाड़ ह्रदय तत्पर ब...पढकर एक एक शब्द को बरबस निकले वाह<BR/>फाड़ ह्रदय तत्पर बने कुछ करने की चाह <BR/>कुछ करने की चाह राह अब चुननी होगी<BR/>बन्दूकों से चार दिवारी बुननी होगी<BR/>शांति शांति अब शांति मिलेगी केवल लड़कर<BR/>रह न सका नि:शब्द 'निःशब्द' मैं ऐसा पढ़करभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.com