tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8046801312743589648..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: मुश्किल लगता हैशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-23676287204806234462007-04-28T17:26:00.000+05:302007-04-28T17:26:00.000+05:30गौरव जी, गज़लों के मामले में आप सचमुच हिन्द-युग्म क...गौरव जी, गज़लों के मामले में आप सचमुच हिन्द-युग्म के गौरव हैं।<BR/>काफी अर्से के बाद मैंने इतनी बेहतरीन गज़ल पढ़ी; सारे के सारे शे'र बिल्कुल ही सधे हुये हैं।<BR/>एक बार मैं फिर से आप का कायल हो गया।पंकजhttps://www.blogger.com/profile/14850723521476498477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-66168992980756773952007-04-26T22:29:00.000+05:302007-04-26T22:29:00.000+05:30गौरव जी, मुश्किल लगता है कि आपकी रचनाओं की प्रशंसा...गौरव जी, <BR/>मुश्किल लगता है कि आपकी रचनाओं की प्रशंसा में क्या क्या न कहूँ। जब बिम्ब इस स्तर के हों कि:<BR/> <BR/>"तेरा ग़म और गहरा दलदल" <BR/><BR/>कवि की गहराई समझी जा सकती है। जब भावनाओं में डूब कर कोई लिखे तभी यह रच सकता है:<BR/><BR/>कुछ ऐसा हो कि तू, तू हो और मैं, मैं ही रह जाऊं,<BR/>अपने अन्दर तुझसे लड़ना भिड़ना मुश्किल लगता है;<BR/><BR/>या इस पंक्ति का दर्द:<BR/> <BR/>खुद को ही चिट्ठी लिख लिखकर पढ़ना मुश्किल लगता है;<BR/><BR/>यद्यपि पंक्तियों की रवानगी पर भाषा हावी है, तथापि संप्रेषणीयता गजब की है।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42451946648607802342007-04-26T20:45:00.000+05:302007-04-26T20:45:00.000+05:30सोलंकी मियाँ,अभी कुछ दिन पहले कविताओं पर मैं रवीन्...सोलंकी मियाँ,<BR/><BR/>अभी कुछ दिन पहले कविताओं पर मैं रवीन्द्र जी बतिया रहा था। उन्होंने मुझे कुछ अलग लिखने की सलाह दी, मैंने सोचा अलग क्या लिखूँ, मगर जब आज आपकी यह ग़ज़ल पढी तो मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर मिल गये। आपकी इस ग़ज़ल के प्रत्येक शेर ऐसे हैं जैसे अब तक किसी न लिखा हो।<BR/><BR/>ग़म की तुलना दलदल से (अनोखा)<BR/><BR/>तुझसे लेना हो या खुद से, बदला मुश्किल लगता है; (मतलब एक-दूसरे के पृथक-अस्तित्व न होने की अलग योजना)<BR/><BR/>सारी रात बिता दी मैंने, अपने ही सपने के भीतर,<BR/>बाहर की पगडंडी पर अब चलना मुश्किल लगता है (सपनों के घर के बाहर वास्तिविकता की पगडण्डी है, क्या भाव हैं!)<BR/><BR/>खुद को ही चिट्ठी लिख लिखकर पढ़ना मुश्किल लगता है; (मुश्किल तो है मगर प्रेमी तो करता ही है? शायद यही सोलंकी भी कहना चाह रहे हैं)<BR/><BR/>दिल को आग में झोंक दिया है, तेरे ठंडे अहसासों ने,<BR/>बर्फ उधार की लाकर दिल पर मलना मुश्किल लगता है; (एहसास, ठण्डे लेकिन विस्फोटक, दिल जलता है तो जलने दे, उधार की बर्फ़ नहीं खरीदेंगे)<BR/><BR/>जंग, वफ़ा में सब जायज है, कुछ गुस्ताखी कर ही दो,<BR/>इन हालात में साथ में जीना-मरना मुश्किल लगता है (शायद खूबसूरत अंजाम देने का यह बहाना भी बढ़िया है)शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-2310808873178427052007-04-26T18:40:00.000+05:302007-04-26T18:40:00.000+05:30gauravji rachna padhkar accha laga likhte rahiye.....gauravji rachna padhkar accha laga likhte rahiye.....bhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61815139529668312722007-04-26T15:40:00.000+05:302007-04-26T15:40:00.000+05:30बहुत सुन्दर गौरवजी, आपकी यह रचना बहुत पसंद आयी। आप...बहुत सुन्दर गौरवजी, आपकी यह रचना बहुत पसंद आयी। आपसे एक बात पूछना चाहूँगा -<BR/><BR/><B>कुछ ऐसा हो कि तू, तू हो और मैं, मैं ही रह जाऊं,<BR/>अपने अन्दर तुझसे लड़ना भिड़ना मुश्किल लगता है;</B><BR/><BR/>लड़ना और भिड़ना समानार्थी शब्द हैं फिर एक ही पंक्ति में इनक लगातार दो बार प्रयोग, कुछ समझ में नहीं आया।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42905754508360778272007-04-26T14:15:00.000+05:302007-04-26T14:15:00.000+05:30सारी रात बिता दी मैंने, अपने ही सपने के भीतर,बाहर ...सारी रात बिता दी मैंने, अपने ही सपने के भीतर,<BR/>बाहर की पगडंडी पर अब चलना मुश्किल लगता है;<BR/><BR/>कुछ ऐसा हो कि तू, तू हो और मैं, मैं ही रह जाऊं,<BR/>अपने अन्दर तुझसे लड़ना भिड़ना मुश्किल लगता है;<BR/><BR/>बहुत ख़ूब ..... <BR/><BR/>दिल को आग में झोंक दिया है, तेरे ठंडे अहसासों ने,<BR/>बर्फ उधार की लाकर दिल पर मलना मुश्किल लगता है;<BR/><BR/>बहुत ही सुंदर लिखा है आपने गौरव ..दिल को छू गयारंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-56220639328741783062007-04-26T10:11:00.000+05:302007-04-26T10:11:00.000+05:30आपने सच कहा है सपनों में रहते रह्ते हकीकत से टकरान...आपने सच कहा है सपनों में रहते रह्ते हकीकत से टकराना मुशकिल होता है....<BR/>आखिरी दो लाइन भी सटीक है.......<BR/>बधायी होMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com