tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post7949425818378385424..comments2024-03-09T13:57:59.872+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: संजय लोधी को 'एक भागीरथ और चाहिए'शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43165067949575906252007-09-19T16:13:00.000+05:302007-09-19T16:13:00.000+05:30यह कविता हिन्द युग्म के पोडकास्ट पर सुनें. http://...यह कविता हिन्द युग्म के पोडकास्ट पर सुनें. <A HREF="http://hindyugm.mypodcast.com/2007/09/post-42275.html" REL="nofollow">http://hindyugm.mypodcast.com/2007/09/post-42275.html</A>Vikashhttps://www.blogger.com/profile/01373877834398732074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61104329460578089292007-09-19T12:07:00.000+05:302007-09-19T12:07:00.000+05:30संजय जी,आज की परिस्थियों में एक नहीं अनेक भागिरथ च...संजय जी,<BR/><BR/>आज की परिस्थियों में एक नहीं अनेक भागिरथ चाहियें जो इस धरती को रहने लायक जगह बना सकें. सुन्दर भाव भरी रचना के लिये बधाईMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67513091380442784442007-09-19T10:49:00.000+05:302007-09-19T10:49:00.000+05:30संजय जी,अच्छा लिखा है।उड़ने केलियेमुठ्ठीभर आसमांफिर...संजय जी,<BR/><BR/>अच्छा लिखा है।<BR/><BR/>उड़ने के<BR/>लिये<BR/>मुठ्ठी<BR/>भर आसमां<BR/>फिर<BR/>चाहिये।<BR/><BR/>तारने के<BR/>लिये<BR/>गंगा तो<BR/>आज भी है<BR/>एक<BR/>भागीरथ<BR/>फिर<BR/>चाहिये।<BR/><BR/>मुझे भी बचपन चाहिए।<BR/><BR/> बधाई।गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61742799046308058542007-09-18T15:22:00.000+05:302007-09-18T15:22:00.000+05:30मुझे तो प्रारम्भ में कुछ खास पसन्द नहीं आई थी । शा...मुझे तो प्रारम्भ में कुछ खास पसन्द नहीं आई थी । शायद इस तरह के प्रयोग के कारण किन्तु शैलेष जी का<BR/>धन्यवाद है कि उन्होने कविता को थोड़ा स्पष्ट कर दिया । भाव तो अच्छे ही हैं । कवि को बधाईशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27566307624480913582007-09-18T00:24:00.000+05:302007-09-18T00:24:00.000+05:30संजय जी,मुझे लगा कि आपने कविता को एक-दो शब्दों की ...संजय जी,<BR/><BR/>मुझे लगा कि आपने कविता को एक-दो शब्दों की पंक्तियाँ में तोड़कर कुछ नया प्रयोग किया है, लेकिन जब ग़ौर से पढ़ा और नीचे की तरह इनको नया रूप दिया तो यह गीतिका हो गई।<BR/><B><BR/>खिला था तेरे ही गुलशन में मेरी प्रीत का गुल,<BR/>बन रहा अब गुलशन सहरा मुझे प्रीत का सावन फिर चाहिये।<BR/><BR/>राह भर साथ की बात न थी, जो तुम मंज़िल आते ही बिछड़ गये,<BR/>वो सर्द राहों में बाहों में तेरा लपेटना मुझे फिर चाहिये.<BR/><BR/>नहीं मिलता अब पेड़ों पर चढ़ना, वो तितलियों को पकड़ना,<BR/>वो अलमस्त, मासूम, भोला बचपन मुझे फिर चाहिये।<BR/><BR/>पंछी पिंजड़े में कैद होकर उड़ने की बात कैसे करेगा,<BR/>पर होना ही काफ़ी नहीं उड़ने के लिये मुठ्ठी भर आसमां फिर चाहिये।<BR/><BR/>वो तो आवाज़ आती है हर उजड़े हुए मकां और खंडहर से,<BR/>दिल की आवाज़ दिल तक पहुंचे एक नया ताजमहल फिर चाहिये।<BR/><BR/>ना जाने कितने फँस चुके हैं फिर माया मोहजाल में,<BR/>तारने के लिये गंगा तो आज भी है एक भागीरथ फिर चाहिये।<BR/></B><BR/>कविता बहुत बढ़िया है। मुझे भी आपका वाला ही बचपन चाहिए।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3608482673068711522007-09-17T20:52:00.000+05:302007-09-17T20:52:00.000+05:30संजय जी!.... ना जानेकितनेफँस चुकेहैं फिरमायामोहजाल...संजय जी!<BR/>.... <BR/>ना जाने<BR/>कितने<BR/>फँस चुके<BR/>हैं फिर<BR/>माया<BR/>मोहजाल<BR/>में,<BR/>तारने के<BR/>लिये<BR/>गंगा तो<BR/>आज भी है<BR/>एक<BR/>भागीरथ<BR/>फिर<BR/>चाहिये।<BR/>अच्छी प्रस्तुति <BR/>शुभकामनायेंAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47841500804574097512007-09-17T13:31:00.000+05:302007-09-17T13:31:00.000+05:30संजय जी,"एक भागीरथ फिर चाहिए" अच्छी प्रस्तुति है, ...संजय जी,<BR/><BR/>"एक भागीरथ फिर चाहिए" अच्छी प्रस्तुति है, अनूठा शिल्प है।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43779510853444774272007-09-17T12:33:00.000+05:302007-09-17T12:33:00.000+05:30संजय जी,अच्छा लिखा है।पंछीपिंजड़ेमें कैदहोकरउड़ने की...संजय जी,<BR/>अच्छा लिखा है।<BR/><BR/>पंछी<BR/>पिंजड़े<BR/>में कैद<BR/>होकर<BR/>उड़ने की<BR/>बात कैसे<BR/>करेगा,<BR/>पर होना<BR/>ही काफ़ी<BR/>नहीं<BR/>उड़ने के<BR/>लिये<BR/>मुठ्ठी<BR/>भर आसमां<BR/>फिर<BR/>चाहिये।<BR/><BR/>तारने के<BR/>लिये<BR/>गंगा तो<BR/>आज भी है<BR/>एक<BR/>भागीरथ<BR/>फिर<BR/>चाहिये।<BR/><BR/>यथार्थपरक पंक्तियाँ हैं, बधाई।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.com