tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post7212852942720683996..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: संघर्ष को सहज स्वीकार करोशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-6899268405615559432007-12-11T01:17:00.000+05:302007-12-11T01:17:00.000+05:30आपकी यह कविता विद्यालयों में प्रार्थना के समय पढ़ी...आपकी यह कविता विद्यालयों में प्रार्थना के समय पढ़ी जाने वाली लगी। शिल्प भी कसा हुआ नहीं है। आप सामयिक लिखने की कोशिश करें।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11243357251124082812007-12-09T09:30:00.000+05:302007-12-09T09:30:00.000+05:30आनंद गुप्ता जी१) आप अपनी कविता से बहुत अच्छा सन्दे...आनंद गुप्ता जी<BR/>१) आप अपनी कविता से बहुत अच्छा सन्देश देते है सरल शब्दों मै ..<BR/>२)ये पंक्तिया बहुत अच्छी लगी<BR/>"रहे लगन, संकल्प पक्का, हौसला खोने ना पाए<BR/>ना देखो उस ओर तुम, हैं जहाँ मायूसियों के साए<BR/>बना के साधना इस जीवन को, मानव हित में<BR/>करो सूर्योदय जहाँ ग़म के, बादल हैं छाये"<BR/><BR/><BR/> ३)आपकी भाषा उपदेशात्मक है.. पर मुझे यू महसूस हुआ.. ये भाषा... मैथली शरण गुप्त की कविताओ पर ज्यादा सही बैठती है, क्यों की उस समय पाठक इसे सही रूप मै लेते थी..और अब पाठक कई बार उपदेशों को <BR/>सही नहीं समझते अतः अपनी वही बातों को कहने के लिए शैली मै अगर थोडा बदलाव हो तो बहुत खूबसूरत रहेगा.<BR/>बधाई<BR/>सादर <BR/>शैलेशAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86699685208464387902007-12-08T23:59:00.000+05:302007-12-08T23:59:00.000+05:30हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी, तुम इंसान होपहचानो...हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी, तुम इंसान हो<BR/>पहचानो तो स्वयं को, क्षमताओं की ख़ान हो<BR/>उठाओ आनंद प्रकृति के आतिथ्य का, ना भूलो<BR/>कि तुम इस संसार में, आए बन के मेहमान हो<BR/>ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं .<BR/>इस विषय पर ढेरों कवितायें पढ़ चुके हैं शायद इसलिए ज्यादा कुछ कहने को नहीं मिल रहा.<BR/>सोलंकी जी की बात कुछ हद तक सही है लेकिन मेरा मानना है इस युवा कवि ने अपने अंदाज़ में कविता पेश की है.उन्हें बस थोड़ा मार्गदर्शन चाहिये. <BR/>आनंद जी , पढ़ते रहीये -लिखते रहीये-पढ़वाते रहीये-यहाँ आप को बहुत सिखने को मिलेगा.शुभकामना<BR/> <BR/><BR/>धन्यवाद -अल्पना वर्माAlpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85540147104370994022007-12-08T18:47:00.000+05:302007-12-08T18:47:00.000+05:30हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी, तुम इंसान होपहचानो...हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी, तुम इंसान हो<BR/>पहचानो तो स्वयं को, क्षमताओं की ख़ान हो<BR/>उठाओ आनंद प्रकृति के आतिथ्य का, ना भूलो<BR/>कि तुम इस संसार में, आए बन के मेहमान हो<BR/><BR/> आनंद जी,प्रतियोगिता में स्थान बनने के लिए बधाई.<BR/> सोलंकी जी बहुत अच्छे कवि हैं,अगर इन्हें कुछ खटका टू निश्चय ही कुछ खटकने वाली बात ही होगी.आप उनसे सम्पर्क कर अपने कला मे सुधार पा सकते हैं.<BR/> खैर, मुझे कविता पसंद आई,एक युवा से ऐसी उम्मीद की जा सकती है.<BR/> ढेरों बधाईयाँ <BR/> अलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15414308384391138072007-12-08T17:01:00.000+05:302007-12-08T17:01:00.000+05:30उपदेश किसी को पसन्द नहीं आते क्योंकि सबको पता है क...उपदेश किसी को पसन्द नहीं आते क्योंकि सबको पता है कि जीतने के लिए क्या करना होता है...बस उसे करना ही तो मुश्किल है।<BR/>आप या तो नया रस्ता बताएँ या नए तरीके से बताएँ।गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26793294181547930422007-12-08T14:13:00.000+05:302007-12-08T14:13:00.000+05:30पथ कंटक बड़ा, सैकड़ों हैं झँझावातकरने को स्वागत खड...पथ कंटक बड़ा, सैकड़ों हैं झँझावात<BR/>करने को स्वागत खड़े, जाने कितने ही आघात<BR/>पर लक्ष्य से ना अडिग हो, निडर डटे रहो<BR/>हिम्मत हो अगर तो, है काँटों की क्या बिसात <BR/><BR/>पंख लगा लो उमंग का, उत्साह का संचार करो<BR/>हो निडर संघर्ष को, सहज स्वीकार करो<BR/>बहुत अच्छा लिखा है आपने .... बधाईSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13338940599721374272007-12-08T13:38:00.000+05:302007-12-08T13:38:00.000+05:30हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी, तुम इंसान होपहचानो...हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी, तुम इंसान हो<BR/>पहचानो तो स्वयं को, क्षमताओं की ख़ान हो<BR/>उठाओ आनंद प्रकृति के आतिथ्य का, ना भूलो<BR/>कि तुम इस संसार में, आए बन के मेहमान हो<BR/>बहुत ही आशावान और सुन्दर रचना।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49195736520823931902007-12-08T12:05:00.000+05:302007-12-08T12:05:00.000+05:30आनंद जी !पथ कंटक बड़ा, सैकड़ों हैं झँझावातकरने को ...आनंद जी !<BR/><BR/>पथ कंटक बड़ा, सैकड़ों हैं झँझावात<BR/>करने को स्वागत खड़े, जाने कितने ही आघात<BR/>पर लक्ष्य से ना अडिग हो, निडर डटे रहो<BR/>हिम्मत हो अगर तो, है काँटों की क्या बिसात <BR/><BR/>मीरानपुर कटरा के पास ही अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह की मिट्टी से आई यह सुगंध संदेश सी रचना मेरे कटरा और तिलहर के दिनों की याद भी ले आई है <BR/><BR/>बहुत ही सुंदर भाव और ओज से परिपूर्ण कविता यह सिलसिला आगे भी चलता रहे यही शुभकामनाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-33249721701737723992007-12-08T11:24:00.000+05:302007-12-08T11:24:00.000+05:30आपकी रचना पढ़ने के बाद कवि बच्चन की रचना - " कोश...आपकी रचना पढ़ने के बाद कवि बच्चन की रचना - " कोशिश कराने वाले की हार नही होती ", याद आ गयी |<BR/>इस रचना के लिए बधाई |<BR/><BR/>अवनीश तिवारीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41445050538114379582007-12-08T11:23:00.000+05:302007-12-08T11:23:00.000+05:30आपकी रचना पद्ठने के बाद कवि बचान की रचना - " कोशि...आपकी रचना पद्ठने के बाद कवि बचान की रचना - " कोशिश कराने वाले की हार नही होती ", याद आ गयी |<BR/>इस रचना के लिए बधाई |<BR/><BR/>अवनीश तिवारीAnonymousnoreply@blogger.com