tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6378684104912112766..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: 27 तारीख 29 कविताएँ (काव्य-पल्लवन का ताज़ा अंक)शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger89125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-84742052629690613782008-01-11T14:08:00.000+05:302008-01-11T14:08:00.000+05:30टीस आज पढ़ी ...बहुत ही अच्छा विशय था और सबने बहुत ...टीस आज पढ़ी ...बहुत ही अच्छा विशय था और सबने बहुत ही सुंदर ढंग से लिखा सबने इतने विस्तृत समीक्षा की है की अब कुछ कहने लायक नही रहा :) <BR/>मुझे सबका लिखा बहुत पसंद आया ..और जिन्होने मेरा लिखा पसंद किया उस के लिए शुक्रिया दिल से :)रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17902794702001283342008-01-09T19:29:00.000+05:302008-01-09T19:29:00.000+05:30क्षमा करें हरिहर जी की कविता ने इतना प्रभावित किया...क्षमा करें हरिहर जी की कविता ने इतना प्रभावित किया कि उस पर टिप्पणी लिखते समय और किसी कविता का ध्यान नहीं रख सका । अन्य कई कविताएँ बड़ी अच्छी लगीं । शोभा महेन्द्रू जी की कविता में अच्छा प्रवाह है । वैसे तो मुझे अच्छी लय ताल वाली कविताएँ पसन्द हैं परन्तु यह विषय ही ऐसा है कि पढ़ते समय भाव की आड़ में शिल्प न जाने कहाँ खो जाता है । साहिल, नीर, पंकज, आशुतोष शुक्ल जी की भी टीस प्रभावकारी है । आलोक शंकर जी क्षमा करें उनकी टीस समझने में मुझे कठिनाई हो रही है (मुझे कविता का कथ्य स्पष्ट नहीं हो पा रहा) इसमें कवि(ता) को मैं कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मैं अच्छा पाठक या विश्लेषक होने का दावा नहीं कर सकता । दिव्य प्रकाश दुबे जी की कविता की गहराई को तो मैं तभी समझ सका जब कुछ ऊपर उन्होंने सन्दर्भ स्पष्ट किया । अन्यथा मैं इसे कविता मात्र समझ रहा था । दुबे जी इसके लिए क्षमा कीजिए ।दिवाकर मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/15376537950079751261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55817345624319002602008-01-09T18:21:00.000+05:302008-01-09T18:21:00.000+05:30टिप्पणियों में हरिहर झा जी की कविता पर बहुत कम देख...टिप्पणियों में हरिहर झा जी की कविता पर बहुत कम देखने को मिला परन्तु मुझे वही सबसे अधिक प्रभावित कर गई । उसमें वह टीस है जिसको जन्म देने वाला अपना ही अपराध होता है सतत् अन्दर से कुरेदता रहता है । दूसरों के दोषों, गलतियों, अपराधों और अपनी असमर्थता से उठने वाली टीस से तो रोकर, शिकायत करके (भगवान या किसी और से) कुछ हल्का किया जा सकता है, पर उसका क्या जिसकी न तो शिकायत की जा सकती है और न ही अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित किया जा सकता है । टीस देने वाला कारण दुश्मन की तरह अपने अन्दर ही बैठा रहता है, गले की हड्डी की तरह । उस अपराध की कुछ सजा मिल जाती, या लोगों को पता चलकर भर्त्स्ना हो जाती तो अपराधी कुछ हल्का महसूस करता, पर उसमें हिम्मत नहीं है अपना अपराध स्वीकार कर सकने की । उसे बस अपने अन्दर पालते जाना है, और उसके द्वारा स्रवित विष घूँटते रहना है । क्या नियति बन गई है उसकी.........दिवाकर मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/15376537950079751261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63424819131541542392008-01-05T11:12:00.000+05:302008-01-05T11:12:00.000+05:30Dear Sh. Sanjeev Goyal "Satya" Ji..Very nice and h...Dear Sh. Sanjeev Goyal "Satya" Ji..Very nice and heart touching. <BR/><BR/>Seema Ji,<BR/>App bhi bahut accha likhi hai.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/04464802200648458140noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-88276319719668508662008-01-03T19:38:00.000+05:302008-01-03T19:38:00.000+05:30सभी कवि मित्रो तथा हिन्दयुग्म के सभी बंधुओं को नव...सभी कवि मित्रो तथा हिन्दयुग्म के सभी बंधुओं को नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ मेरा नमस्कार,'टीस ' पर कवितायें पढी ....हर कविता में कुछ न कुछ प्रसंशनीय है ,<BR/>कंही भाव ,कंही अभिव्यक्ति ,कंही शिल्प ....सभी कवि मित्र साधू वाद के पात्र हैं .... ममताUnknownhttps://www.blogger.com/profile/16754590234885423509noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57069644071652916752008-01-01T16:04:00.000+05:302008-01-01T16:04:00.000+05:30tees asal mein ek aisa vishya hai jispar likhna sw...tees asal mein ek aisa vishya hai jispar likhna swayam me ek tees ko jee jane ke samaan hai<BR/>sabhi kaviyon ne tees ki adrishya sthiti ka sakshaatkaar kara diya, alok sahil ji ko bhi aise chayan ke liye hardik badhai aur dhanyavad<BR/>'vaise to mein bada khush rehta hun par jab kabhi hawa apni beawaz ungliyon se darwaze par akelepan ki tees chod jati hai to man rota hai,yuhi kabhi kabhi'<BR/><BR/>hindyugm se pehli baar juda hun apke prayas prashansniya hainpawashttps://www.blogger.com/profile/14530859546001812242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14876258021270838902007-12-31T12:46:00.000+05:302007-12-31T12:46:00.000+05:30वाह ... क्या खुब रही ...एक ही विषय पर २९ कविताएं औ...वाह ... क्या खुब रही ...<BR/><BR/>एक ही विषय पर २९ कविताएं और सभी बढिया रचनाएं ... काबिले दाद प्रयास ... अभिनन्दन आयोजकों को और सभी प्रतिभागियों को ....<BR/><BR/>विजयकुमार दवेVijaykumar Davehttps://www.blogger.com/profile/16966783951752511159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36370978364386702982007-12-31T02:54:00.000+05:302007-12-31T02:54:00.000+05:30वाह भूपेंद्र राघव साहब , बहुत अच्छे ,देखा टीस का स...वाह भूपेंद्र राघव साहब , बहुत अच्छे ,देखा टीस का सामुहिक सामने करने पे अंत मैं कोई टीस नही बचती ,अपनके धन्यवाद देने का तरीका भी अनोखा हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-51768590496142384762007-12-30T18:52:00.000+05:302007-12-30T18:52:00.000+05:30सीमा जी मैंने आपकी कविता पढी तो एक अलग ही लोक में ...सीमा जी मैंने आपकी कविता पढी तो एक अलग ही लोक में पहुँच गया, सत्य है कि मुझे कविता की उतनी समझ नहीं है जितनी कि एक सक्षम विश्लेषक से उम्मीद की जानी चाहिए, परन्तु मेरे समझ से जो दिल को भा जाए वही अच्छा है, वरन सर्वश्रेष्ठ है,इसके लिए मैं विशेष तौर से अपने मित्र आलोक सिंह "साहिल" जी का भी आभारी हूँ जिन्होंने मुझे आपकी कविता से रूबरू कराया.<BR/> नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ <BR/> अभिनव कुमार झाअभिनव झाhttps://www.blogger.com/profile/10341313489053037792noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-32796420901263242202007-12-30T18:40:00.000+05:302007-12-30T18:40:00.000+05:30सीमा जी आपके यद्यपि की आपके धन्यवाद की जरुरत नहीं ...सीमा जी आपके यद्यपि की आपके धन्यवाद की जरुरत नहीं थी, पर जब आपने दे ही दिया तो लौटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता,खैर आपकी कविता मैंने प्रिंट आउट निकालकर अपने कुछ मित्रों को भी पढ़ाई, सच कहूँ सभी आपकी लेखनी के दीवाने हो गए, अपने तमाम मित्रों की तरफ़ से एक बार फ़िर ढेरों साधुवाद.<BR/> आलोक सिंह"साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77005399058719262872007-12-29T23:40:00.000+05:302007-12-29T23:40:00.000+05:30२२॰ अच्छी कविता।२३॰ अभिनव जी, बहुत बढ़िया कविता। श...२२॰ अच्छी कविता।<BR/><BR/>२३॰ अभिनव जी, बहुत बढ़िया कविता। शिल्प आकर्षक है और आपकी कविता में विस्तार भी बहुत है।<BR/><BR/>२४॰ साहिल की कविता को डा॰ आशुतोष शुक्ला की कविता से जोड़कर देका जा सकता है। याद रखिए जब आप सामाजिक बिन्दुओं को शामिल कर रहे हों तो हर तरक के आँकड़ों का इस्तेमाल करें और उसे आवश्यक विस्तार भी दें।<BR/><BR/>२५॰ अमिता जी आपकी कविता में बहुत अच्छे कविता की सम्भावना थी, लेकिन आपको शायद उपसंहार की जल्दी थी।<BR/><BR/>२६॰ मधुर जी, आप सभी अंतरों में समानता का निर्वाह नहीं कर पाये हैं। फिर भी प्रभावशाली रचना।<BR/><BR/>२७॰ सतीश जी, यह पता चला की हिन्दी कविताओं में शुरूआती चरण का लेखन कर रहे हैं, उस हिसाब से बहुत उम्दा कोशिश।<BR/><BR/>२८॰ दिव्य जी, छोटी मगर सबकुछ बता देने वाली कविता।<BR/><BR/>२९॰ सोमेश्वर जी, अच्छी कविता है। आशुतोष जी, साहिल जी ने भी ऐसा ही मुद्दा उठाया है। इसके लिए साधुवाद।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-60634165485961714912007-12-29T21:49:00.000+05:302007-12-29T21:49:00.000+05:30१५॰ सीमा जी आपको 'टीस' शब्द से इतना मोह हो गया कि ...१५॰ सीमा जी आपको 'टीस' शब्द से इतना मोह हो गया कि हर शे'र में इसर शामिल किया और यही आपकी कविता के सौंदर्य कम कर रहा है।<BR/><BR/>१६॰ ठीक ठाक रचना। क्राफ़्ट पर थोड़ी और मेहनत आवश्यक है।<BR/><BR/>१७॰ विदग्ध जी की किसी भी कविता ने अभी तक प्रभावित नहीं किया है। इस बार फिर निराशा हुई।<BR/><BR/>१८॰ जमलोकी जी, उपदेशात्मक शैली से बाहर निकलिए।<BR/><BR/>१९॰ आशुतोष जी आप बहुत जल्दी उपसंहार पर पहुँच गये। उपसंहार वाला पार्ट ही एक अच्छी क्षणिका बन सकती थी।<BR/><BR/>२०॰ दिव्या जी, बहुत बढ़िया कविता है। आपमें भविष्य की कवयित्री दिखती है।<BR/><BR/>२१॰ वाह क्या बात है ख़लिश साहब!शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63475735529834164792007-12-29T18:02:00.000+05:302007-12-29T18:02:00.000+05:30'टीस'विषय पर पढ़ चुके कविता लो उन्तीस कहीं टीस उन्न...'टीस'विषय पर पढ़ चुके कविता लो उन्तीस <BR/>कहीं टीस उन्नीस तो कहीं टीस इक्कीस <BR/>कहीं टीस इक्कीस सभी को बधाई दिल से<BR/>विषय दिया जबरदस्त कहूँगा मैं 'साहिल' से<BR/>जमलोकी, बाबरा, अल्पना से विष्लेषक <BR/>और कई कवि मित्र मिलेंगे हमको जब तक<BR/>सीमा, दिव्यप्रकाश, अमित व आलोकशंकर <BR/>होता रहेगा काव्यपल्लवन यूँ ही जमकर<BR/>ऐसे ही कविताये मिलें हर बार हमेशा <BR/>जैसे उन्तीस कविता आयीं 'टीस' विषय पर<BR/><BR/>-राघवभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67997198162117463412007-12-29T17:59:00.000+05:302007-12-29T17:59:00.000+05:30This comment has been removed by the author.भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58462900516603265242007-12-29T12:29:00.000+05:302007-12-29T12:29:00.000+05:30it was really great to read 29 poems on the same s...it was really great to read 29 poems on the same subject and every body has described it in a very different and artistic manner. it is a wonderful experience to know so much abt on a single subject and i came to know that "Tees" can be any where in any way but ya it exists in ones heart, ones eyes, tears, emotions, surrondings, relations, n many more.<BR/><BR/>In short i appreciate every one for giving there valuable comments on the poems written and encouraging every one in their own words and style.<BR/><BR/>"My special thanks and regards to MR Sahil"seema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-20814891499611572152007-12-29T12:10:00.000+05:302007-12-29T12:10:00.000+05:30बात करें सबसे कमजोर प्रस्तुति कि तो माफ़ कीजिएगा य...बात करें सबसे कमजोर प्रस्तुति कि तो माफ़ कीजिएगा ये स्थान मैं किसी से बाँट नहीं सकता,<BR/> अरे भाई, कहीं तो नम्बर १ पर रहने दीजिए<BR/> हा हा हा हा ही ही हा .............<BR/> सही पहचाना आपने, एक और मात्र एक<BR/> आलोक सिंह "साहिल"<BR/> फक्र के साथAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37766611651351223802007-12-29T12:07:00.000+05:302007-12-29T12:07:00.000+05:30आगे चलें तो ३ रचनायें मुजे बहुत अच्छी लगीं, नंदन स...आगे चलें तो ३ रचनायें मुजे बहुत अच्छी लगीं,<BR/> नंदन साहब, <BR/> सीमा जी <BR/>हरिहर जी<BR/> मैं इन तीनों में विभेद नहीं कर पाया कि कौन बेहतर,शायद कर भी नहीं सकता,क्योंकि हरबार टीस कि मात्र कमोबेश समान ही थी.<BR/> आप सबों को विशेष तौर से साधुवाद<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58554716075576479582007-12-29T12:03:00.000+05:302007-12-29T12:03:00.000+05:30एक बहुत ही उल्लेखनीय बात, बावरा जी आपको शायद पह...एक बहुत ही उल्लेखनीय बात, <BR/> बावरा जी आपको शायद पहली बार जाना,पर आपका होना बहुत अच्छा लगा,<BR/> मैं मानता हूँ, आपको विचारों से मतभेद हो सकता है किसी को यद्यपि मुझे भी है,परन्तु आपका प्रयास निश्चित तौर पर अंगीकार करने योग्य है.<BR/> बहुत बहुत साधुवाद<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1870242415209473332007-12-29T12:00:00.000+05:302007-12-29T12:00:00.000+05:30एक विशेष शिकायत, भारतवासी जी, मैं जितनी बेसब्री ...एक विशेष शिकायत,<BR/> भारतवासी जी, मैं जितनी बेसब्री से कविताओं कि प्रतीक्षा करता हूँ उससे कई गुनी उत्सुकता से आपकी प्रतिक्रिया कि प्रतीक्षा करता हूँ,इसबार आपने काफ़ी निराश किया, इतना विलम्ब अच्छी बात नहीं सर जी.अपने चाहने वालों का कुछ तो ख्याल रखिये साहब<BR/> आपका बेसब्र प्रशंसक <BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37305214967502891382007-12-29T11:56:00.000+05:302007-12-29T11:56:00.000+05:30माफ़ करियेगा साथियों एक विशेष नाम का उल्लेख विशेष ...माफ़ करियेगा साथियों एक विशेष नाम का उल्लेख विशेष रूप से करना था,<BR/> जमलोकी साहब, आपकी जितनी तारीफ करूँ उतनी कम है, कारण, जितने अच्छे कवि,उतने ही अच्छे विश्लेषक हैं आप.<BR/> बहुत खूब साहब<BR/> सादर<BR/>आलोक सिंह "साहिल "Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41676873272223667892007-12-29T11:52:00.000+05:302007-12-29T11:52:00.000+05:30जब फ़िर से मैं टीस की गहराई मापने बैठा तो पाया कि ऐ...जब फ़िर से मैं टीस की गहराई मापने बैठा तो पाया कि ऐसा बहुत कुछ पढ़ना, समझना और सीखना तो अभी शेष ही रह गया,<BR/> शायद आज मैं टीस को बेहतर समझ पा रहा हूँ,यद्यपि कि विषय मेरे द्वारा ही सुझाया गया था पर मैंने कल्पना भी नहीं करी थी कि ऐसे ऐसे प्रतिमान दृष्टिगत होंगे,सुखद, बहुत ही सुखद अनुभूति,<BR/> असल बात कुछ और ही, वह है कि जब किसी विश्लेषक की निगाह से होकर कोई चीज गुजरती है तो उसका महत्व कुछ ज्यादा ही हो जाता है,जैसे की स्वर्ण अग्नि से गुजरने के पश्चात् ही कुन्दन का दर्जा पता है.<BR/> मैं अपने तमाम कवि मित्रों और कुछ एक विशुद्ध विश्लेषक साथियों का दिल से आभारी हूँ जिन्होंने अपने विश्लेषण की आग में तपाकर कविताओं को कुन्दन के स्तर तक ले जाने की कोशिस की,आप सभी को बहुत बहुत साधुवाद,<BR/> अगली बात, यद्यपि की इसबार हमें २९ कवितायेँ पढने को मिली, परन्तु फ़िर भी मुझे शिकायत है अपने कुछ कवि साथियों से जिन्होंने इस बार प्रतिभाग नहीं किया,उनकी उपस्थिति शायद इस बार के काव्य पल्लवन को और अधिक गरिमामय बनती.<BR/> खैर, अंत में सभी साथियों को कोटिशः धन्यवाद और साधुवाद.<BR/> आपका<BR/>आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-92139085980391718692007-12-29T09:27:00.000+05:302007-12-29T09:27:00.000+05:30८॰ बहुत भटका हुआ शिल्प है रंजना जी की कविता का। शु...८॰ बहुत भटका हुआ शिल्प है रंजना जी की कविता का। शुरू के दो पंक्तिसमूहों तक तो ठीक है लेकिन उसके बाद गड़बड़ी हो गई। वैसे आप जो कहना चाह रही हैं, वह पूरी तरह से पठकों तक पहुँचा है।<BR/><BR/>९॰ विपिन जी, बिलकुल भी मज़ा नहीं आया।<BR/><BR/>१०॰ जब शे'र बराबर वज़नी न हों तो सभी को ग़ज़ल में स्थान ही मिले यह आवश्यक नहीं। आपको इसपर मेहनत करने की ज़रूरत है कि किस शे'र को रखें, किसे छोड़ें। मुझे यह शे'र बहुत पसंद आया-<BR/><B><BR/>मेरी नींद पर पहरा है बेरहम वादों का तेरा,<BR/>अब आँखों ही आँखों में सारी रात बिता देता हूँ।<BR/></B><BR/>११॰ हरिहर जी, आपकी कविता अच्छी तो है लेकिन इसकी बनावट में बहुत कच्चापन है। शायद लिखते वक़्त आपके भीतर का बालक जग गया हो।<BR/><BR/>१२॰ मानव जी, बहुत बढ़िया कविता है आपकी। जो कमी डॉ॰ आशुतोष शुक्ला की कविता में थी, वो यहाँ पूरू हो गई।<BR/><BR/>१३॰ प्रगति जी, अच्छा प्रयास है, लेकिन आपको तुक का मोह तो है लेकिन आप उसका निर्वाह नहीं कर पातीं।<BR/><BR/>१४॰ समुद्र का कुछ नहीं बिगड़ता, हाँ 'मैं' का बिगड़ जाता, वो पॉब्लम खड़ी कर देता।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-33433233614481319222007-12-29T04:22:00.000+05:302007-12-29T04:22:00.000+05:30मैं अपनी कविता के बारें मैं ये कहना चाहता हूँ की ...मैं अपनी कविता के बारें मैं ये कहना चाहता हूँ की ,ये कविता उस दर्द को बयां करती है जो की मेरे एक करीबी की मृतु के बाद मुझे हुआ ,क्यूंकि हम सभी की लाख कोशिशो के बावजूद भी वो बचे नही और जाने से पहले कुछ बोले नही महीने भर आई .सी .यू . मैं रहने के बाद भी,हम सभी चाहए थे की वो कुछ बोल दें लेकिन एक शब्द नही बोले वो,Shailesh Jamloki जी माफ़ी चाहूँगा लेकिन मेरे सन्दर्भ कुछ और है इस कविता के लिए,समय था लेकिन कभी कभी शब्द जैसे नराज हो जाते हैं,ये इसी पीडा है जिस से मैं और मेरा परिवार शायद ही कभी निजात पायेगा,बहुत बहुत धन्यवाद की आप सभी का की आप सभी हमारी भाषा को नही एक विचारधारा को हिन्दयुग्म के मध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं !!<BR/>जो भी टिपण्णी मैंने दी है ,बिना किसी भी प्रतिक्रिया को पढे दी है,कृपया कोई भी बात अन्यथा न लें जैसा मुझे लगा हर कविता पढने के बाद मैंने वैसे बोल दिया,<BR/>और हाँ जै बांवरा जी "टीस विषय टीस पर लिखी हुई कोई भी कविता पुरष्कार-सत्रीय नही है।"<BR/>टीस उठती है जब कोई ऐसा बोलता है,पुरस्कार की चिंता करेंगे तो लिखना कभी इमानदार नही हो पायेगा ऐसा मुझे लगता है जितनी भी समझ है मुझे,<BR/>धन्यवाद आप सभी काAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-66681129230105599262007-12-29T03:59:00.000+05:302007-12-29T03:59:00.000+05:30२४.आलोक सिंह "साहिल" जी ,सत्य वचन भाई साहब,अच्छे भ...२४.आलोक सिंह "साहिल" जी ,सत्य वचन भाई साहब,अच्छे भाव "टीस सी क्या टीस ही उठती है "<BR/>२५.अमिता मिश्र 'नीर' जी " मनोभावों को अब<BR/>अभिव्यक्ति दो<BR/>वृक्ष है जो टीस का"<BR/>उसको उखाड़ो फेंक दो" बहुत अच्छा संदेश,गहन पीडा समेटे हुए,(टीस मैं अपनी…<BR/>मिटाना चाहती हूँ<BR/>जन्म अपने अंश से <BR/>शक्ति को देना चाहती हूँ) <BR/>बहुत बढ़िया विचार,ज्वलंत मुद्दे उठती और समाज से जवाब मांगती आपकी ये रचना <BR/>२६.मधुकर (मधुर) जी ,ये हुई न बात ,अच्छा लगा अलग अंदाज़ मैं अपने टीस को व्यक्त किया साधुवाद <BR/>२७.सतीश वाघमरे जी ,मुझे नही मालूम आपकी उम्र कितनी है लेकिन अपने अपने पूरे अनुभव को भर दिया है एक एक शब्द मैं ,बहुत अच्छा <BR/> २९,सोमेश्वर पाण्डेया"<BR/> जब सच सूली लटकाए जाते हैं<BR/>तब उठती है 'टीस' "<BR/>देर आयद दुरुस्त आयद ,देर से पढी आपकी रचना लेकिन टीस को विविध विषयों से परिचय करती आपकी रचना अच्छी लगी !!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76180940942652283802007-12-29T03:38:00.000+05:302007-12-29T03:38:00.000+05:30१७.प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध" जी ,मुहझे ये कवि...१७.प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध" जी ,मुहझे ये कविता उपदेशात्मक लगी,टीस को केवल मध्यम बना के अपने एक संदेश दिया,जो की एक उम्र के बाद आदमी अपने आप से बातें करते हुए अपने बच्चों को देता है,इस से पता चलता है की आप अपनी अगली पीढ़ी से उम्मीद रखते हैं और ये हर्ष की बात है लेकिन मुझे कभी नही लगा की सफलता सिधान्तो मैं बंधती है कभी !!<BR/>१८ . शैलेश चन्द्र जमलोकी जी " ये चला गया तो, यूं ना हो<BR/>इस पल की कहीं कोई टीस रहे" अच्छा जीवन दर्शन है ,जो बीत गयी सो बात गयी ,बढ़िया है !!<BR/>१९.आशुतोष मासूम जी बहुत अच्छे भाव थे लेकिन आखिरी पंक्तियों (सब कुछ तो अच्छा हो गया,<BR/>फिर भी अन्त मे एक टीस रह जानी है) ने निराश किया,<BR/>२०.दिव्या श्रीवास्तवा "रिश्ते सिमट गए है,<BR/>ठहर गए है...<BR/>वहीं....मेरी पुरानी डायरी में,..." बहुत अच्छा <BR/>२१.महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश अच्छी यात्रा करा दी अपने कुछ ही शब्दों मैं जिन्दगी के अलग अलग आयामों की ,बहुत अच्छा <BR/>२२.भूपेन्द्र राघव जी बहुत अच्छा फ्लो है और इतनी जगहों पे अपने छुआ अपनी लेखनी से अच्छा लगा ,<BR/>२३ अभिनव कुमार झा<BR/> ".बारहमासा झूमर जैसे लोकगीतों को छोड़कर<BR/>काँटा लगा और छैंया-छैंया में ही मस्त होते" अच्छा लिखा है अपने ,फ्लो भी अच्छा है ,<BR/>भाई कांता लगा तक ठीक था अपने तो गुलज़ार साहब से ही पंगा ले लिया??Anonymousnoreply@blogger.com