tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6287871975067279721..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: बस्तर में आजकलशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87218965200971942152008-03-07T12:39:00.000+05:302008-03-07T12:39:00.000+05:30धमाकों से सहमे हुए बच्चेस्कूल जाने भी डरते हैंपनिय...धमाकों से सहमे हुए बच्चे<BR/>स्कूल जाने भी डरते हैं<BR/>पनिया गया है/ ताडी शल्फी का स्वाद<BR/>तीखुर मडिया की मिठास पर<BR/>भयानक कडुवाहट भरी है<BR/>गायब होती जा रही है/ हाट-बाज़ार की रौनक<BR/>‘भागा’ और ‘पुरौनी’ की आदिम प्रथा<BR/>युवक-युवतियों की हँसी-ठठ्ठा<BR/><BR/>बस्तर के परिवेश से परिचित कराती बहुत ही भाव पूर्ण रचना लगी आपकी यह नंदन जी ..!!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31022336157454698402008-03-06T21:05:00.000+05:302008-03-06T21:05:00.000+05:30बस्तर की वादियों मेंयमदूत उतर आए हैं********परिजनो...बस्तर की वादियों में<BR/>यमदूत उतर आए हैं<BR/>********<BR/>परिजनो की मौत पर भी<BR/>रोने की सक्त मनाही है <BR/><BR/>नंदन जी मार्मिकता की पराकाष्ठा को छूती हुई रचना।<BR/>सहज ही झकझोरने में सक्षम।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-10078686766983694652008-03-06T08:17:00.000+05:302008-03-06T08:17:00.000+05:30dr nandan...rajniti ka rang gahra hai...ek soch pa...dr nandan...rajniti ka rang gahra hai...ek soch paida karti hai aapki kavita...dr minoohttps://www.blogger.com/profile/08488251401587589319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-52086246335962729402008-03-05T22:59:00.000+05:302008-03-05T22:59:00.000+05:30बस्तर के वर्तमान हालात का सजीव और मार्मिक चित्रण क...बस्तर के वर्तमान हालात का सजीव और मार्मिक चित्रण करने के साथ-साथ गहरा व्यंग्य करने में आप सफल रहे हैं.<BR/>सचमुच राजनीति का रंग गहरा है पर इन हालात से उपजे दर्द का रंग भी कम गहरा नहीं रह गया है. वो दिन दूर नहीं जब इस दर्द से उपजी शांति और सह-अस्तित्व की भावना नक्सलवाद को उखाड़ फेंकेगी.SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57411562161317920952008-03-05T21:44:00.000+05:302008-03-05T21:44:00.000+05:30गायब होती जा रही है/ हाट-बाज़ार की रौनक‘भागा’ और ‘प...गायब होती जा रही है/ हाट-बाज़ार की रौनक<BR/>‘भागा’ और ‘पुरौनी’ की आदिम प्रथा<BR/>युवक-युवतियों की हँसी-ठठ्ठा<BR/>अब गाँवों में नही लगती है पंचायतें<BR/>नही होता कोई आपसी फैसला<BR/>फ़रमान जारी होते हैं<BR/>मौत! मौत!! मौत!!!<BR/><BR/>लेकिन राजनीति का रंग गहरा है<BR/><BR/>नंदन जी!<BR/>यह रचना नस्तर की भांति चुभती है, लेकिन सच है, कड़वा सच है, मानना हीं पड़ेगा।<BR/><BR/>अंतिम पंक्ति सारा यथार्थ बयान कर देती है।<BR/><BR/>रचनाकार के रूप में आप सफल हैं।<BR/>बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>-विश्व दीपक ’तन्हा’विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86658840550970150962008-03-05T12:19:00.000+05:302008-03-05T12:19:00.000+05:30नंदन जी बिल्कुल सही अंदाज में सही बात,बधाई हो आलोक...नंदन जी बिल्कुल सही अंदाज में सही बात,बधाई हो<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61454514045186647442008-03-05T11:58:00.000+05:302008-03-05T11:58:00.000+05:30नंदन जी आपकी कविता में गहराई है . सोचने पर मजबूर क...नंदन जी आपकी कविता में गहराई है . सोचने पर मजबूर कर रही है <BR/><BR/>पेडों के नीचे/ पेडों पर नही चढते हैं<BR/>नही करते हैं /नदी पहाडों जंगलों की सैर<BR/>धमाकों से सहमे हुए बच्चे<BR/>स्कूल जाने भी डरते हैं<BR/>पनिया गया है/<BR/>गायब होती जा रही है/ हाट-बाज़ार की रौनक<BR/>‘भागा’ और ‘पुरौनी’ की आदिम प्रथा<BR/>युवक-युवतियों की हँसी-ठठ्ठा<BR/>अब गाँवों में नही लगती है पंचायतें<BR/>नही होता कोई आपसी फैसला<BR/>एक आम आदमी की ज़िंदगी और राजनीती को जिस तरीके से दर्शाया है <BR/>बहुत खूब <BR/>काश इन बुराईयों को दूर कर सके <BR/>आपकी कविता दिल को छु जाती है <BR/>लिखते रहियेanjuhttps://www.blogger.com/profile/05253751080116301279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-69998690452519947112008-03-05T11:51:00.000+05:302008-03-05T11:51:00.000+05:30बस्तर का दर्द दिल म उतर गया ,बहुत मार्मिक कविता बह...बस्तर का दर्द दिल म उतर गया ,बहुत मार्मिक कविता बहुत ही अच्छीmehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-25762302246842480212008-03-05T11:07:00.000+05:302008-03-05T11:07:00.000+05:30‘भागा’ और ‘पुरौनी’ की आदिम प्रथायुवक-युवतियों की ह...‘भागा’ और ‘पुरौनी’ की आदिम प्रथा<BR/>युवक-युवतियों की हँसी-ठठ्ठा<BR/>अब गाँवों में नही लगती है पंचायतें<BR/>नही होता कोई आपसी फैसला<BR/>फ़रमान जारी होते हैं<BR/>मौत! मौत!! मौत!!!<BR/><BR/>आधुनिक व्यवस्था और मानसिकता दोनों पर गंभीर वयंग्य ! देशज शब्दों के सानुकूल प्रयोग ने कविता को और भी प्रभावपूर्ण बना दिया है !<BR/>काश यह किसी की आँख खोलने में कामयाब हो !!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-7582352744692048082008-03-05T11:05:00.000+05:302008-03-05T11:05:00.000+05:30गहरी वेदना उभर कर आयी है आपकी लेखनी से सच में सब क...गहरी वेदना उभर कर आयी है आपकी लेखनी से <BR/>सच में सब कुछ सूना होता जा रहा है, राजनैतिक फायदे के लिये लोग धकेले जा रहे हैं गर्त में<BR/>और पस दरिंदगी का साम्राज्य पनप रहा है..भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-28688370397516619142008-03-05T11:03:00.000+05:302008-03-05T11:03:00.000+05:30खेत बंजर, जंगल सुन्न हैहवा में घुल गई है, बारूदी ग...खेत बंजर, जंगल सुन्न है<BR/>हवा में घुल गई है, बारूदी गंध<BR/>अब बच्चे नही खेलते हैं<BR/>पेडों के नीचे/ पेडों पर नही चढते हैं<BR/>नही करते हैं /नदी पहाडों जंगलों की सैर<BR/>धमाकों से सहमे हुए बच्चे<BR/>स्कूल जाने भी डरते हैं<BR/>पनिया गया है/ ताडी शल्फी का स्वाद<BR/>तीखुर मडिया की मिठास पर<BR/>भयानक कडुवाहट भरी है<BR/>गायब होती जा रही है/ हाट-बाज़ार की रौनक<BR/><BR/>चित्रण बहुत अच्छा है डा. नंदन जीHariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-2999103614581763302008-03-05T11:02:00.000+05:302008-03-05T11:02:00.000+05:30कहां खो गईबस्तर की आदिम हवाऔर कहां गुम गयाघोटुलबच्...कहां खो गई<BR/>बस्तर की <BR/>आदिम हवा<BR/>और <BR/>कहां गुम गया<BR/>घोटुल<BR/>बच्चे बस्तर के<BR/>अब कहां रह पाते हैं<BR/>सिर्फ़ बच्चे<BR/>बनते जा रहे वह <BR/>तो "कैरियर" <BR/>"दादाओं" के<BR/>कितना लिखें<BR/>खत्म नही होती <BR/>वह बातें<BR/>जो बस्तर को<BR/>बस्तर बनाती थीं!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-79446359905397663692008-03-05T10:40:00.000+05:302008-03-05T10:40:00.000+05:30नंदन जी,बिल्कल सही कहा है आपने। आम लोग राजनेताओं क...नंदन जी,<BR/>बिल्कल सही कहा है आपने। आम लोग राजनेताओं के चक्कर में फँसे हैं। सरकार चाहे तो नक्सली क्या, किसी भी तरह का आतंकवाद खत्म कर सकते हैं। राजीव जी ने सही कहा, मैं भी इन त्योहारों से अपरीचित हूँ। पर ऐसा कब तक चलेगा? और इस समस्या का हल क्या है?तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85407043982724101852008-03-05T09:43:00.000+05:302008-03-05T09:43:00.000+05:30डॉ. नंदन,बस्तर की पीडा को सटीक शब्द दिये हैं आपने।...डॉ. नंदन,<BR/><BR/>बस्तर की पीडा को सटीक शब्द दिये हैं आपने। बहुत सी एसी मनोरम प्रथायें और पर्वों, जिनका आपने जिक्र किया है संभव से बस्तर के बाहर के पाठक उनकी मस्ती (जो अब खो गयी)से परिचित न हों....किंतु आपके शब्दों में निहित पीडा को अक्षरक्ष: समझा जा सकता है। <BR/><BR/>नक्सली जंगलों के और आदिम संस्कृति के लिये अभिशाप हैं..काश हम निकम्मी सरकारों के दौर में न होते।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.com