tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6076114674566893810..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: दुविधाशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58864301037499775702007-06-15T13:26:00.000+05:302007-06-15T13:26:00.000+05:30देह ताप बढ़ गयाभीगी हुई बयार सेरश्मि-कलश न बन सकेज...देह ताप बढ़ गया<BR/>भीगी हुई बयार से<BR/>रश्मि-कलश न बन सके<BR/>जुगनू कई हज़ार भी<BR/><BR/>बहुत ही सुंदर भाव लिए हैं आपकी यह रचना भीरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-81736404639894433992007-06-15T12:55:00.000+05:302007-06-15T12:55:00.000+05:30मेरे मन का द्वंद्वन हुआ छंद बद्ध भाव न कविता बनेन ...मेरे मन का द्वंद्व<BR/>न हुआ छंद बद्ध <BR/>भाव न कविता बने<BR/>न कोई गीत सार ही<BR/><BR/>गुस्ताखी मॉफ परन्तु भाव भी बनें हैं और कविता भीAdminhttps://www.blogger.com/profile/13066188398781940438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14914335282942482302007-06-13T19:13:00.000+05:302007-06-13T19:13:00.000+05:30मोहिन्दर कुमार जी आपकी बेहतरीन रचनाओं मे से है ये ...मोहिन्दर कुमार जी आपकी बेहतरीन रचनाओं मे से है ये भी...बहुत सुन्दर भाव है...आदि से अन्त तक कहीं कविता भटकती नही है...<BR/><BR/>कुछ विशेष पक्तिंयाँ...<BR/><BR/>मेरे मन का द्वंद्व<BR/>न हुआ छंद बद्ध <BR/>भाव न कविता बने<BR/>न कोई गीत सार ही<BR/>मन कँवल की जड कहीं<BR/>दुविधा के कीच में थी धँसी<BR/>धो सकी न जिसे कभी<BR/>प्रबल आँसुओं की धार भी<BR/><BR/>शुभ-कामनायेंसुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-21031577374614578442007-06-13T17:24:00.000+05:302007-06-13T17:24:00.000+05:30मोहिन्दर जी , सच में आपकी रचना बहुत पसंद आई। कुछ ल...मोहिन्दर जी , सच में आपकी रचना बहुत पसंद आई। कुछ लोगों ने विरोधी भाव होने पर आपत्ति जताई है, लेकिन मैं इसपर शैलेश जी से सहमत हूँ कि विरोधी भाव यदि एक दूसरे की उपमाएँ बन जाएँ तो कुछ और हीं मजा आता है।<BR/>आपकी अगली रचना की प्रतिक्षा रहेगी।विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85500306972200456832007-06-13T11:13:00.000+05:302007-06-13T11:13:00.000+05:30मोहिन्दर जी, देर से उपस्थिति दर्ज कराने के लिये क्...मोहिन्दर जी, देर से उपस्थिति दर्ज कराने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। रचना बहुत ही अच्छी है और युग्म पर प्रस्तुत आपकी बेहद स्तरीय रचनाओं की कडी में एक और मोती है।<BR/><BR/>देह ताप बढ़ गया<BR/>भीगी हुई बयार से<BR/>रश्मि-कलश न बन सके<BR/>जुगनू कई हज़ार भी <BR/><BR/>मन कँवल की जड कहीं<BR/>दुविधा के कीच में थी धँसी<BR/>धो सकी न जिसे कभी<BR/>प्रबल आँसुओं की धार भी।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-230808046956936522007-06-13T01:45:00.000+05:302007-06-13T01:45:00.000+05:30कवि होने के नाते मैं यह कह सकता हूँ कि कवियों को प...कवि होने के नाते मैं यह कह सकता हूँ कि कवियों को परस्पर विरोधी बातें लिखने में खास मज़ा आता है, और इसीलिए वह हर प्रकार के बिम्बों को विरोधी अलंकारों से सजाता रहता है। मोहिन्दर जी ने भी उसी प्रकार का प्रयास किया है, और कुण न कुछ तो नई उपमायें हैं ही। जैसे<BR/><BR/><B>देह ताप बढ़ गया<BR/>भीगी हुई बयार से<BR/>रश्मि-कलश न बन सके<BR/>जुगनू कई हज़ार भी<BR/><BR/>मन कँवल की जड कहीं<BR/>दुविधा के कीच में थी धँसी</B>शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-7874149949707044912007-06-12T23:33:00.000+05:302007-06-12T23:33:00.000+05:30कविता का आपरेशन पहले ही हो चुका है.. पर देह ताप बढ...कविता का आपरेशन पहले ही हो चुका है.. पर देह ताप बढा के ..नागपाश कड़ा के जो..दुविधा के कीच मे धंसी हुयी जो भी चीज रही हो..कविता कचोट गयी हमे भी । सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।Upasthithttps://www.blogger.com/profile/14139346378568249916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43764601746631723672007-06-12T22:43:00.000+05:302007-06-12T22:43:00.000+05:30अब दुविधा है तो हमेशा ही रहेगी और सबों के अंदर कुछ...अब दुविधा है तो हमेशा ही रहेगी और सबों के अंदर कुछ कचोटती सी है जो टिस बनकर चुभती भी है और हंसाती भी…।<BR/>बहुत अच्छा प्रयास…Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86293951806852293282007-06-12T20:44:00.000+05:302007-06-12T20:44:00.000+05:30मोहिन्दरजी,मन की दुविधा को खूबसूरत स्वरूप दिया है ...मोहिन्दरजी,<BR/><BR/>मन की दुविधा को खूबसूरत स्वरूप दिया है आपने,<BR/><BR/>"देह ताप बढ़ गया...भीगी हुई बयार से", कारण बतायेंगे? :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87728519253415522852007-06-12T15:17:00.000+05:302007-06-12T15:17:00.000+05:30मोहिंदर जी बधाई हो.. खूब लिखा है।कवि कुलवंतमोहिंदर जी बधाई हो.. खूब लिखा है।<BR/>कवि कुलवंतKavi Kulwanthttps://www.blogger.com/profile/03020723394840747195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43221713462167699412007-06-12T15:08:00.000+05:302007-06-12T15:08:00.000+05:30मन कँवल की जड कहींदुविधा के कीच में थी धँसीधो सकी ...मन कँवल की जड कहीं<BR/>दुविधा के कीच में थी धँसी<BR/>धो सकी न जिसे कभी<BR/>प्रबल आँसुओं की धार भी।<BR/><BR/>सुंदर रचना। हालाँकि इसे कुछ प्रयास करके और भी बेहतर बनाया जा सकता था।SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87773709349702026072007-06-12T12:35:00.000+05:302007-06-12T12:35:00.000+05:30देह ताप बढ़ गयाभीगी हुई बयार सेरश्मि-कलश न बन सकेज...देह ताप बढ़ गया<BR/>भीगी हुई बयार से<BR/>रश्मि-कलश न बन सके<BR/>जुगनू कई हज़ार भी<BR/>सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।आशीष "अंशुमाली"https://www.blogger.com/profile/07525720814604262467noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-38697591117690188442007-06-12T11:15:00.000+05:302007-06-12T11:15:00.000+05:30रिपूदमन जी जब मैं आप की पहली टिप्प्णी का उत्तर लिख...रिपूदमन जी जब मैं आप की पहली टिप्प्णी का उत्तर लिख रहा था तभी आप ने दुसरा प्रश्न दाग दिया... <BR/>देह ताप बढ़ गया<BR/>भीगी हुई बयार से<BR/>विरोधात्मक भाव है...<BR/>रश्मि-कलश न बन सके<BR/>जुगनू कई हज़ार भी <BR/>यह भी विरोधात्मक भाव है..<BR/>जरूरी नही कि ठंठी हवा से किसी को शान्ति ही मिले हो सकता है उसे वह नागवार गुजरे<BR/>वैसे ही जिसे तीव्र रोशनी की आवश्यकता हो उसके लिये हजार जुगनुओं की रोशनी बेकार है<BR/><BR/>यही मेरे लिखने का भाव था...हो सकता है मै अपने बिचारों को आप तक पहुंचाने में असमर्थ रहा हूंMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49199420834998177752007-06-12T11:07:00.001+05:302007-06-12T11:07:00.001+05:30रिपुदमन जी धन्यवाद.. आपने कुछ व्याकरणिक त्रुटियों ...रिपुदमन जी धन्यवाद.. आपने कुछ व्याकरणिक त्रुटियों की और ध्याना आकर्षित किया.. कुछ अन्य त्रुटियां भी नजर में आ गयी जिन्हे शैलेश जी ने दूर कर दिया है..<BR/>सजग पाठक ही हमारी प्रेरणा हैंMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-45144726985058817462007-06-12T11:07:00.000+05:302007-06-12T11:07:00.000+05:30क्या कहना चाह रहे हैं आप ? इसमें ?देह ताप बढ़ गयाभ...क्या कहना चाह रहे हैं आप ? इसमें ?<BR/><BR/>देह ताप बढ़ गया<BR/>भीगी हुई बयार से<BR/>रश्मि-कलश न बन सके<BR/>जुगनू कई हज़ार भीरिपुदमन पचौरीhttps://www.blogger.com/profile/00582757256174637399noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-52661067831329891822007-06-12T10:55:00.000+05:302007-06-12T10:55:00.000+05:30ह्म्म्म्म्म......>>मेरे मन का द्वँदन हुआ छँद बँदवि...ह्म्म्म्म्म......<BR/><BR/>>>मेरे मन का द्वँद<BR/>न हुआ छँद बँद<BR/><BR/>विनम्रता से ....<BR/>बँद -- की जगह शायद आप बद्ध लिखना चाह रहे थे। अर्थ दोनो शब्दों के अलग है, इस लिये लिखा है, मैंनी ही गलत समझा तो लिखियेगा.<BR/><BR/>भौर -- भोर को कहते हैं क्या? मुझे पता नही है, बतलाईयेगा।<BR/><BR/>बात और भी थी क्या कुछ मन में जो कविता में कहना चाह रहे थे?<BR/><BR/>रिपुदमन पचौरीरिपुदमन पचौरीhttps://www.blogger.com/profile/00582757256174637399noreply@blogger.com