tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post600348254294386017..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: खिलाड़ी दोस्तशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-6629179639037960852009-04-29T01:04:00.000+05:302009-04-29T01:04:00.000+05:30तेजी से एक ऐसी संस्कृति पनप रही है जिसमें दर्द के ...तेजी से एक ऐसी संस्कृति पनप रही है जिसमें दर्द के बीच से प्लेजर पैदा करने की कोशिश की जाती है। पहले ये गांव मुर्गे या सांड को लड़ाकर पूरा कर लिया जाता था। अब सीधे अलग-अलग ब्रांड के छापे लगी टीशर्ट पहनाकर कराया जाता है। मुझे खेल के नाम पर सोना चौधरी याद आ रही है जिसने बहुत ही बेहतरीन उपन्यास लिखा है- पायदान..विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-2718047929417536412009-04-27T21:08:00.000+05:302009-04-27T21:08:00.000+05:30bahut achhi lagibahut achhi lagiरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64437962156733431212009-04-27T21:07:00.000+05:302009-04-27T21:07:00.000+05:30किसी ज़माने में दोस्तों को पेश की गयी पंक्तियाँ आपक...किसी ज़माने में दोस्तों को पेश की गयी पंक्तियाँ आपकी कविता को पढ़कर याद हो आयीं. <br /><br />दोस्त जब मेहरबां हुए हम पर.<br />दुश्मनी में न फिर कसर छोडी.<br /><br />शिकवा न दुश्मनों से मुझको रहा 'सलिल'<br />हैरत है दोस्तों ने ही प्यार से मारा.<br /><br />ए 'सलिल'! दिल को तू मजबूत करले.<br />आ रहे हैं दोस्त मिलने के लिए.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9491635275289190072009-04-27T09:05:00.000+05:302009-04-27T09:05:00.000+05:30शैलेष जी,
आभार! आभार!!
खिलाड़ी दोस्त की पहचान किस...शैलेष जी,<br /><br />आभार! आभार!!<br /><br />खिलाड़ी दोस्त की पहचान किसी खेल से ही नही बल्कि जीवननामा से है, जीवन के उन पहुलओं को बड़ी ही खूबसूरती और परिपक्वता से श्री हरेप्रकाश जी ने उघाड़ा है, की नंगा होता सच भी आंनद देता है चुभन के साथ।<br /><br />निम्न पंक्तियों में तो जैसे पाठक को कोई ना कोई जरूर याद आ जाता है, दोस्त खेल खेलता हुआ या उकसाता हुआ खेल जारी रखने को :-<br /><br />दोस्त हमें हारकर<br />बैठ नहीं जाने देते<br />वे हमें ललकारते हैं<br />चाहे जितने पस्त हों हम<br /><br />उठाकर हमें मैदान में खड़ा कर देते हैं वे<br />और देखते रहते हैं हमारा दौड़ना<br />गिरना और हमारे घुटने का छिलना<br />ताली बजाते रहते हैं वे<br />मूँगफली खाते रहते हैं<br />और कहते हैं<br />धीरे-धीरे सीख जाओगे खेल<br /><br />सादर, हरेप्रकाश जी / शैलेष जी को <br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.com