tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6002273155416088373..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: दोहा गाथा सनातन: 39 छंद विमल ध्वनि है मधुरशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-84219784907754222812009-10-25T12:35:06.519+05:302009-10-25T12:35:06.519+05:30गुरु जी,
उत्साह बढ़ाने के लिये बहुत धन्यबाद. लेकिन ...गुरु जी,<br />उत्साह बढ़ाने के लिये बहुत धन्यबाद. लेकिन कभी-कभी बात का गूढ़ अर्थ समझना अपनी बुद्धि से परे लगता है.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-88324849128336464212009-10-24T23:39:13.421+05:302009-10-24T23:39:13.421+05:30काव्य का रचना शास्त्र: ३४
'सलिल' काकु वक...काव्य का रचना शास्त्र: ३४ <br /><br />'सलिल' काकु वक्रोक्ति में, ध्वनित अर्थ कुछ अन्य.<br /><br />जब विशेष ध्वनि कंठ की, देती दूजा अर्थ. <br />तभी काकु वक्रोक्ति हो, समझें-लिखें समर्थ.. <br /><br />'सलिल' काकु वक्रोक्ति में, ध्वनित अर्थ कुछ अन्य.<br />करे कंठ की खास ध्वनि, जो कवी रचे अनन्य.. <br /><br />जहाँ पर कंठ की विशेष ध्वनि के कारण दूसरा अर्थ ध्वनित होता है वहाँ काकु वक्रोक्ति होती है..<br /><br />उदाहरण:<br /><br />१.<br />भरत भूप सियराम लषण बन सुनि सानंद सहौंगो. <br />पुर परिजन अवलोकि मातु सब सुख सानंद लहौंगो.. <br />यहाँ पर भरतभूप, सानंद और संतोष शब्दों का उच्चारण काकुयुक्त होने से विपरीत अर्थ निकलता है.<br /><br />२.<br />बातन लगाइ सखाँ सों न्यारो कै, आजु गह्यो वृषभानकिशोरी.<br />केसरी सों तन मंजन कै दियो अंजन आँखिन में बरजोरी..<br />हे रघुनाथ! कहाँ कहों कौतुक प्यारे गोपाल बनाइ कै गोरी. <br />छोड़ी दियो इतनो कहि कै, बहुरो फिरि अइयो खेलन होरी.. <br /><br />यहाँ 'बहुरो फिरि अइयो' में काकु ध्वनि होने के कारण अर्थ होता है कि अब कभी न आओगे. <br /><br />********************** <br /><br />अजित जी!, शन्नो जी!<br />प्रयास अच्छा है. और भी रचें. <br /><br />पूजा जी!<br />हिंदी का समृद्ध गीति काव्य ऐसे अनेकों रोचक छंदों से संपन्न है. यह तो झलक मात्र है. आप कि लेखनी से नि:सृत प्रसाद की प्रतीक्षा है. <br /><br />शमिख फ़राज़ जी!, अम्बरीश जी!, विनोद जी! <br />उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30302881241356891502009-10-23T16:34:23.337+05:302009-10-23T16:34:23.337+05:30प्रणाम आचार्य जी,
एक और नए छंद से परिचय करवाने के ...प्रणाम आचार्य जी,<br />एक और नए छंद से परिचय करवाने के लिए आपका आभार. एक उदाहरण बहुत विचित्र सा लगा और हमारे लिए सर्वथा नया सा भी है-<br /><br />चमकत सारस-पंख सित, दमकत भानु प्रचंड.<br />झज्झज्झज्झहरात झर, झरना झुक भूखंड..<br />खंडज्ज्ल ढल, धध्धध्धावत, छछ्छछ्छहरत घघ्घघ्घहरत.<br />बब्बब्बरसत, सस्सस्सरसत, जज्जज्जनहित लल्लल्लहरत..<br />खख्खख्खनडत, पप्पप्पत्थर, कक्कक्कणकण, सस्सस्सरकत.<br />मम्मम्माझी, गग्गग्गावत, शस्शस्शफ़री, चच्चच्चमकत..<br />- -ॐप्रकाश बरसैयां 'ॐकार'Pooja Anilhttps://www.blogger.com/profile/11762759805938201226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17024391815408421782009-10-22T16:00:12.459+05:302009-10-22T16:00:12.459+05:30गुरु जी,
प्रणाम!
आपने कुछ इंगित किया और मेरे दिमाग...गुरु जी,<br />प्रणाम!<br />आपने कुछ इंगित किया और मेरे दिमाग में कुछ खटका हुआ. फिर मैंने अपने ' विमल ध्वनि ' के छंद की जांच की और अपनी बुद्धि से जो गलत समझा उसे सही किया. किन्तु आपका बिचार जानना बाकी है की मैंने जो किया है वह अब ठीक है की नहीं.<br /><br />मात-पिता गुजर जाते, नहीं हमारा जोर<br />लिखता विधान विधाता, पकड़े रहता डोर<br />अंधकारमय, लगता जीवन, सब कुछ नीरस, भरा आक्रोश<br />अंतर रह-रह, विचलित होता, है अपार दुख, न घटता कोष<br />हर पल होती, है अकुलाहट, निकलता रहे, सभी पर रोष<br />किस्मत का सब, लेखा-जोखा, सोचें ऐसा, न खोयें होश.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63673859111031170192009-10-22T15:50:02.142+05:302009-10-22T15:50:02.142+05:30This comment has been removed by the author.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-19772739869203489172009-10-22T14:48:19.562+05:302009-10-22T14:48:19.562+05:30This comment has been removed by the author.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91787684531300198592009-10-22T12:00:57.615+05:302009-10-22T12:00:57.615+05:30चन्दन से महकें सलिल, चम चम चमके सीप.
मोती सम संजीव...चन्दन से महकें सलिल, चम चम चमके सीप.<br />मोती सम संजीव हैं, अंतर में सब दीप ..<br /><br />दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.<br />राह अलग हर पन्थ की, सबका ईश्वर एक..<br /><br />रहा रमा में मन रमा, किसको याद गणेश.<br />बलिहारी है समय की, दिया जलाय दिनेश..<br /><br />नन्हें दीपक की लगन, तूफां को दे मात.<br />तिमिर रात का दूर कर, 'सलिल' उगा दे प्रात..<br /><br />दीप-ज्योति तन-मन 'सलिल', आत्मा दिव्य प्रकाश.<br />तेल कामना को जला, छू ले तू आकाश..<br /><br />अपनी है ये कामना, फैले सलिल प्रकाश.<br />दोहे ये तारों सदृश, भर जाये आकाश ..<br /><br />सादर,<br />इं० अम्बरीष श्रीवास्तवAmbarish Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/06514999274631808844noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46815742133342174952009-10-22T10:55:50.871+05:302009-10-22T10:55:50.871+05:30एक विमल ध्वनि छंद बनाने का प्रयास किया है, अच्छा...एक विमल ध्वनि छंद बनाने का प्रयास किया है, अच्छा तो नहीं बन पडा है लेकिन बस तुकबंदी जैसा ही है - <br />ब्लाग जगत में लिख रहे, सब ही ताबड़तोड़ <br />टिप्पणियों की आस में, करते होड़महोड़।<br />हिन्दयुग्म पर छायी कक्षा, <br />सबको मिल रहा दोहा ज्ञान <br />भाँति-भाँति छंदों की चर्चा, <br />हमको मिल रहा नूतन मान <br />यहाँ टिप्पणी की हो मंशा, <br />तुम करो विमलध्वनि का ध्यान<br />सोलह-सोलह गिनकर मात्रा, <br />हम करे गुरुजी का गुणगान।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47694435758587402942009-10-22T08:46:26.527+05:302009-10-22T08:46:26.527+05:30सलिल जी इस बार तो एक साथ बहुत से सुन्दर दोहों की ज...सलिल जी इस बार तो एक साथ बहुत से सुन्दर दोहों की जानकारी दी. आभार.Shamikh Farazhttps://www.blogger.com/profile/11293266231977127796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11201165668943559542009-10-21T22:36:07.593+05:302009-10-21T22:36:07.593+05:30शन्नो जी !
दोहे को जाँचिये. विमल ध्वनि की प्रथम र...शन्नो जी !<br /><br />दोहे को जाँचिये. विमल ध्वनि की प्रथम रचना हेतु बधाई. <br /><br />अजित जी!<br /><br />आपकी सहभागिता की प्रतीक्षा है.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-73495474375030179022009-10-21T22:32:15.495+05:302009-10-21T22:32:15.495+05:30आत्मीय देवी नागरानी जी!
वन्दे मातरम.
पुस्तक प्रक...आत्मीय देवी नागरानी जी!<br /><br />वन्दे मातरम.<br /><br />पुस्तक प्रकाशन पर बधाई.<br /><br />दोहा-लेखन पर हिन्दयुग्म पर ‘दोहा गाथा सनातन’ शीर्षक से मेरे लिखे लगभग ५५ पाठ लगे हैं. उन्हें देखिये. आपकी सभी शंकाओं का समाधान होगा.<br />‘divyanarmada.blogspot.com’ पर भी शीघ्र ही दोहा लेखन पर लेखमाला प्रारंभ होगी. आप यहाँ भी सादर आमंत्रित हैं. <br /><br />साहित्य शिल्पी पर ‘काव्य का रचनाशास्त्र’ शीर्हक लेखमाला भी देखिये. इसमें अलंकारों का परिचय मिलेगा. <br /><br />नेह नर्मदा में नहा, लें निर्मल आनंद.<br />शब्द-शब्द में गूँजते, पाएँगी नव छंद..दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34684797469885588592009-10-21T10:55:58.183+05:302009-10-21T10:55:58.183+05:30विमल ध्वनी छंद आकर्षक लगा, बस शीघ्र ही कुछ लिखने ...विमल ध्वनी छंद आकर्षक लगा, बस शीघ्र ही कुछ लिखने का प्रयास रहेगा।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46962749900009850232009-10-21T07:52:43.118+05:302009-10-21T07:52:43.118+05:30दोहों का दीपदान मन को भा गया !दोहों का दीपदान मन को भा गया !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-73030313323254318122009-10-21T02:39:25.263+05:302009-10-21T02:39:25.263+05:30गुरु जी,
प्रणाम!
दोहा परिवार के नये सदस्य ' वि...गुरु जी,<br />प्रणाम!<br />दोहा परिवार के नये सदस्य ' विमल-ध्वनि ' पर एक छंद लिख कर प्रस्तुत कर रही हूँ: <br /><br />मात-पिता जन्मदाता, नहीं करम पर जोर <br />ईश्वर के हाथों में, है भाग्य की डोर<br />अंधकारमय जीवन लगता, असह होता मन का आक्रोश<br />अंतर रह-रह विचलित होता, दुख का कम नहीं होता कोष <br />हर पल को होती अकुलाहट, निकलता औरों पर फिर रोष <br />सब किस्मत का लेखा-जोखा, सोच कर कीजे कुछ संतोष.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36746752237849838402009-10-21T00:04:57.712+05:302009-10-21T00:04:57.712+05:30manywaar salil ji ke dohe padkar aur vistaar se un...manywaar salil ji ke dohe padkar aur vistaar se unke bunaway par jaane ki iccha prabal hui hai.<br />doha chand ke bare mein koi samagri mil paye to bahut hi abhari rahoongi<br />sadar<br />Devi nagraniDevi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-38242652606685754172009-10-20T23:54:56.994+05:302009-10-20T23:54:56.994+05:30जानकारी के साथ साथ सुंदर पठनीय दोहों की प्रस्तुति ...जानकारी के साथ साथ सुंदर पठनीय दोहों की प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी..सलिल जी का आभार<br />सार्थक और रुचिकार जानकारी...धन्यवाद!!विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.com