tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post5274755051838744494..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: सड़क, आदमी और आसमानः काव्य-पल्लवन-चतुर्थ अंकशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65686958821757140592010-11-06T12:21:23.961+05:302010-11-06T12:21:23.961+05:30मेरी और से ढेरो शुभकामनाएं! ऐसे ही अचानक इन्टरनेट ...मेरी और से ढेरो शुभकामनाएं! ऐसे ही अचानक इन्टरनेट पर हिंदी कविता ढूंढ लिया तो इस अति सुन्दर वेबसाइट का पता चला | एक एक कर साडी वेबसाइट पढूंगा |<br />मुझे भी हिंदी कविताओं में अपनी जिंदगी के हर लम्हे को उतारने का जज्बा है | इसी सन्दर्भ में मई हाल ही में एक ओंन लाइन पत्रिका 'श्रद्धांजलि' शुरू की है | 'श्रद्धांजलि' उनको भावभीनी श्रद्धांजलि है जो अब इस दुनिया में नहीं है | आपसे अनुरोध है क्रपया इस वेबसाइट पर भी अपनी अमूल्य रचनाएं भेजिए | इसका पता है= http://shraddhanjali.in/<br /><br />नमनडॉ सुनील कुमार वर्माhttp://shraddhanjali.in/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-75316402267975184992007-12-12T17:44:00.000+05:302007-12-12T17:44:00.000+05:30थोड़ा कष्ट हुआ,इतनी कम रचनाओं को देखकर,पर जो भी रही...थोड़ा कष्ट हुआ,इतनी कम रचनाओं को देखकर,पर जो भी रहीं, आलोक शंकर जी की सोंच सड़क,आदमी और आस्मान को सार्थक करती रहीं, सभी कविओं को मेरी ढेरों शुभकामनाएं.<BR/> अलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-89698611151865639212007-07-23T17:42:00.000+05:302007-07-23T17:42:00.000+05:30प्रथम तो क्षमाप्रा्र्थी हू क्योंकि हिन्द-युग्म पर...प्रथम तो क्षमाप्रा्र्थी हू क्योंकि हिन्द-युग्म पर पिछले कई दिनो से दस्तक ना दे सका और इस नये प्रयोग की ना ही जानकारी पा सका ना ही कोई कविता दे सका ।<BR/>सड़क, आदमी और आसमान अंक के प्रस्तुत सभी कवितायें सुंदर है ।<BR/><BR/>"अपनी साँसों को,<BR/>जलते तलवे की गर्माहट देता है,<BR/>अपनी जीजिविषा को<BR/>अपने पसीने से ताज़ा करता है"<BR/><BR/>वाकई मेरी सोच को ये पंक्तियां गर्माहट से भर देती है<BR/>"बौनेपन को उँट की टाँगों के पैमाने से नापा" राजीव जी ने सचमुच कल्पना को चील के पंखों में बाँध दिया है <BR/>और शैलेश जी की लोकभाषा तो देसी तडका है जो मन को आनंदित कर देता<BR/><BR/>सभी कविगणो को बधाईयांऋषिकेश खोडके रुहhttps://www.blogger.com/profile/02023640875553892135noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-39232000899816550282007-06-30T10:50:00.000+05:302007-06-30T10:50:00.000+05:30`Rajeevji` galtee saie aapkaa naam Rakesh likh die...`Rajeevji` galtee saie aapkaa naam Rakesh likh diea hai akashma chaahoongee<BR/>Sandhyakakhagahttps://www.blogger.com/profile/01233013691940423297noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-60039070860281293362007-06-30T10:27:00.000+05:302007-06-30T10:27:00.000+05:30Dostion,`kavya pallvan `kai baaraie main mujhaie S...Dostion,<BR/><BR/>`kavya pallvan `kai baaraie main mujhaie Shailesh Bharatwasi saie pata chla. Aap sabhee kee rachnayain achche lageen. <BR/><BR/>Rakeshji aapkee kavita mujhai achee lagee. Lakhtain rahain.<BR/><BR/>main yahaan nahee rahtee is karan main is computer par Hindi lepi main nahee likh saktee. Roman main hindi likhnaie kai leyai akshma chaahuoongee.<BR/><BR/>Kavaya pallvan kai leyi dher saree shubkamnion kai saath<BR/><BR/>Sandhyakakhagahttps://www.blogger.com/profile/01233013691940423297noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-56766268293229649872007-06-29T19:31:00.000+05:302007-06-29T19:31:00.000+05:30सीधे दिल पर वार करने वाली रचनायें । और तिस पर ये क...सीधे दिल पर वार करने वाली रचनायें । और तिस पर ये कि सभी की सभी श्रेष्ठ अभिव्यक्तियां । कहीं भी आलोचना करने का मन नही हुआ । विशेषकर "ननकू" पसन्द आया ।ऐसा लगा जैसे आधे हिन्दुस्तान का नेतृत्व अकेले ने ही कर लिया ।<BR/>रचनायें कम थी या ज्यादा, ये तो पुराने अंक देखे तब पता चला किन्तु सबसे अधिक व्यथित "बेनाम जी" की टिप्पणी ने किया । बिना विचारे तपाक् से ऐसी बात कह देना॰॰॰॰॰॰ थोडा अजीब लगा॰॰॰॰॰हिन्दयुग्म का पाठक और ये वक्तव्य॰॰॰॰॰<BR/>खैर॰॰॰॰ अपनी अपनी सोच है, कोई करे भी तो क्या ?<BR/>काव्य पल्लवन और इसके रचियता कवियों को बधाई ।<BR/>आर्यमनु ।आर्य मनुhttps://www.blogger.com/profile/14569110609435490290noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-50228532613322081922007-06-29T19:24:00.000+05:302007-06-29T19:24:00.000+05:30एक एक कविता सुंदर लगी ..सबने बहुत ही सुंदर है . ब...एक एक कविता सुंदर लगी ..सबने बहुत ही सुंदर है . बहुत बहुत शुभकामनाएँरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-28726710625773104982007-06-29T12:35:00.000+05:302007-06-29T12:35:00.000+05:30Aap sabhi ko bhadhaaiyaan.....aise hi phalte phool...Aap sabhi ko bhadhaaiyaan.....aise hi phalte phoolte rahiye.<BR/><BR/>Sneh<BR/>AnupamaAnupamahttps://www.blogger.com/profile/12917377161456641316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-19567703050381542482007-06-28T16:25:00.000+05:302007-06-28T16:25:00.000+05:30yun to har kavita lajaawab hai par mohinder ji ko ...yun to har kavita lajaawab hai par mohinder ji ko vishesh badhai meri nazar me ye aapki bahtareen kritiyon me se ek haiSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30750907591307131012007-06-28T16:08:00.000+05:302007-06-28T16:08:00.000+05:30aaj hi maine kavya-pallavan ke bare me jaana.........aaj hi maine kavya-pallavan ke bare me jaana.......concept unique aur rochak hai....<BR/>vishay- aadmi sadak aur insaan lubhavna hai.......sirshak padh kar hi kavya me dilchaspi badh jaati hai....<BR/>ek hi vishay ko har kavi ne itne vividhta se pesh kiya hai ki ek pathak ke roop me aur mujhe kya chahiye......<BR/>itne achche kavyon ke liye aap sab ka dhanyavaad...<BR/>divyadivyahttps://www.blogger.com/profile/01139393389330148947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59998313902110382342007-06-28T14:42:00.000+05:302007-06-28T14:42:00.000+05:30कविताओं की संख्या कम होने तथा स्मिता तिवारी जी की ...कविताओं की संख्या कम होने तथा स्मिता तिवारी जी की पेंटिंगों की अनुपस्थिति के बावजूद काव्य-पल्लवन का यह अंक भी पिछले अंकों से कमतर नहीं है. इसका श्रेय उन सुंदर रचनाओं को और उनके कवियों को जाता है जिन्होंने इस अंक को काव्य की दृष्टि से इतना स्मरणीय बना दिया है. सभी रचनाएं अपने आप में विशिष्ट हैं.SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87726085422622245072007-06-28T14:37:00.000+05:302007-06-28T14:37:00.000+05:30बेनाम जी,आपको इतनी जल्दी नाराज़ नहीं होना चाहिए। यद...बेनाम जी,<BR/><BR/>आपको इतनी जल्दी नाराज़ नहीं होना चाहिए। यदि आप हमें निरंतर पढ़ रहे होंगे, हमने एक बार <A HREF="http://merekavimitra.blogspot.com/2007/04/blog-post_23.html" REL="nofollow">स्मिता तिवारी</A> के बारें में भी प्रकाशित किया था। वो एक छोटे कस्बे से हैं जहाँ बारिश हो जाने पर साइबर कैफ़े का भी नेट खराब हो जाता है। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि बहुत जल्द पेंटिंगें भी जोड़ दी जायेंगी।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-83575691378866628632007-06-28T13:57:00.000+05:302007-06-28T13:57:00.000+05:30सबसे पहले तो मैं आप सभी से क्षमा चाहूँगा क्योंकि इ...सबसे पहले तो मैं आप सभी से क्षमा चाहूँगा क्योंकि इतने दिनो तक मैं इस हिन्द-युग्म से ग़ायब रहा ..(टिप्पणी के लिए). कुच्छ अपरिहार्य कारण थे जिनके कारण ऐसा हुआ. वरना कौन इस प्यारे से परिवार से दूर रहना चाहेगा !<BR/>इस बार के काव्य पल्लवन का विषय जितना व्यापक है उतने ही कवि कम.. <BR/>अचराज़ हुआ यह देख कर... फिर भी जो कविताए हैं उनका स्तर हिंद-युग्म की संपन्नता की को भली भाँति व्यक्त करता है <BR/><BR/>भावनाओ को शब्दो का बड़ा ठोस धरातल प्रदान किया है... <BR/><BR/>अपनी साँसों को,<BR/>जलते तलवे की गर्माहट देता है,<BR/>अपनी जीजिविषा को<BR/>अपने पसीने से ताज़ा करता है,<BR/>बड़ा कद्दावर है वह-<BR/>अस्तित्व की अहमियत जानता है,<BR/><BR/>और इन पंक्तियो के भी क्या कहने.. सड़क और आदमी का इससे बेहतर तादत्म्य शायद ही देखने को मिले<BR/><BR/><BR/>सड़क के आदमी की<BR/>परछाई से भी बचता है,<BR/>खुद में ही सड़क का एक टुकड़ा है-<BR/>उस सड़क का,<BR/>जो आदमियों से बनी है।<BR/>कुछ आदमी<BR/>उस सड़क पर चढ़,<BR/>आसमानी हो जाते हैं-<BR/>परंतु आसमान किसका हुआ है,<BR/>फिर आसमान के नीचे<BR/>एक और सड़क बनती है-<BR/>सड़क से उठ चुके,<BR/>उस जैसे ही इंसानों की।<BR/><BR/>राजीव जी हमेशा की तरह कुछ असाधारण और अप्रत्याशित दिया है बिंब अनूठे हैं तो कविता का अंत उससे भी लाजवाब...<BR/><BR/>आसमान से देखो तो आदमी कीड़े नज़र आते हैं<BR/>मैनें मुस्कुरा कर तबीयत से पत्थर उछाला<BR/>" छपाक " आवाज़ आयी दो पल बाद...<BR/>और मेरे पाँव सड़क पर बढ़ने लगे।<BR/><BR/><BR/>मोहिंदर जी की कविता जिस शैली मैं लिखी गयी है वह मुझे सबसे ज़्यादा पसंद आती है मैं भी इसी शैली मैं लिखने को प्रयासरत रहता रहता हूँ.. ऐसे में यह कविता मेरे लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर रही है <BR/>क्या ख़ूबसूरती से नानकू के जीवन का चित्र खींचा है ! मुह से बरबस ही वाह निकलती है ! <BR/><BR/>आये दिन चिलचिलाती धूप से तपती सड़क<BR/>सरकने में सहारा देने वाली<BR/>हथेलियों को जला देती है<BR/>बे-मौसमी बरसात<BR/>उस दिन की शाम का चूल्हा बुझा देती है<BR/>उसका आसमान है अब<BR/>इस महानगर के एक बड़े पुल के नीचे<BR/>प्लास्टिक की तरपाल का एक टुकड़ा<BR/>जो कहने को तो छत है<BR/>किन्तु स्वयं में बेबस है<BR/>आंधी-तुफ़ान-बारिश<BR/>रोक नहीं पाता है<BR/><BR/>अंत भी बड़ी वेदना के साथ हो रहा है ...<BR/>ननकू रात में लेटे-लेटे<BR/>अक्सर सोचता है<BR/>काश वो गाड़ी उसके पांव के ऊपर से नहीं<BR/>उसके सिर के ऊपर से गुजरी होती<BR/>शायद फ़िर उसे<BR/>न इस सड़क<BR/>न इस आसमान<BR/>और न किसी आदमी से<BR/>कभी, कोई भी शिकायत होती<BR/><BR/>ऊपर लिखी सारी कविताओं से भिन्न पंकज जी की कविता आशावादी सोच से ओतप्रोत है ...<BR/><BR/>कुछ दिन के लिए ही सही, वो सड़क बना पाऊँ,<BR/>इक सैर आसमां की इंसा को करा पाऊँ,<BR/>दूरी को मिटा करके कुछ बात चलाते हैं,<BR/>कुछ सीख के आते हैं ,कुछ उनको सिखाते हैं।<BR/>इक सड़क बनाते हैं .......<BR/><BR/>शायद सबसे अधिक प्रभावित करती है शैलेश जी की कविता |देशज शब्दो का प्रयोग इतनी अधिक कुशलता के साथ ! <BR/>अभी तक मैं मनीष वंदेमातरम जी को इस क्षेत्र का महारथी समझता रहा..पर शैलेश जी मेरी धारणा को बदल रहे हैं |बड़ी ही शानदार कविता का स्रजन किया है आपने .. बधाई स्वीकार <BR/>करें ..<BR/>मास्टर जी की बेटी<BR/>बेटी होकर भी<BR/>स्कूल जाती थी<BR/>जबकि माई ने बताया था<BR/>के लइकिन के पढ़ला के का काम।<BR/><BR/>उसने भी सोचा<BR/>जब रास्ता के आगे<BR/>रस्ता नहीं<BR/>असमान के आगे<BR/>असमान नहीं<BR/>तो आदमी के कईला से<BR/>का होगा?<BR/><BR/>इतने सब के बाद भी एक ख़याल आता है की जब इतनी कम कविताओ और स्मिता जी की पैंटिंग के बिना यह काव्य-पल्लवन का अंक इतना प्रभावित कर रहा है .. तो फिर जब संपूर्ण होता तब क्या करता..? <BR/>कवियों की कम संख्या से निराशा तो हुई.. पर फिर भी अच्छी कविताओं के लिए कवियों का आभार और बधाई भी..विपुलhttps://www.blogger.com/profile/15032635217536871012noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-24413840129214846992007-06-28T13:15:00.000+05:302007-06-28T13:15:00.000+05:30कविताएं रॊचक हैं एवं सीधे दिल में उतरती हैं। वैसे ...कविताएं रॊचक हैं एवं सीधे दिल में उतरती हैं। वैसे उम्मीद है कि अगली बार कविताएं अधिक हॊंगी क्यॊंकि गर्मियॊं के बाद सावन आ रहा है। <BR/>..परन्तु बरसात में तॊ तकनीकी खराबियां ज्यादा हॊ जाती हैं।Adminhttps://www.blogger.com/profile/13066188398781940438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-22963061909417324942007-06-28T13:10:00.000+05:302007-06-28T13:10:00.000+05:30क्षमा चाहूंगा परन्तु इंटरनेट खराब है तॊ साइबर कैफे...क्षमा चाहूंगा परन्तु इंटरनेट खराब है तॊ साइबर कैफे से काम करें अन्यथा जिम्मेदारी ना लें। पाठकॊं कॊ नाराज ना करें।Anonymousnoreply@blogger.com