tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post5148997750212957359..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: सुनील सिंह की 'प्रेरणा'शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85151226203727341612007-09-19T11:00:00.000+05:302007-09-19T11:00:00.000+05:30सुनील जीकविता अच्छी है ।"आज तन्हा कोने में खुद को ...सुनील जी<BR/>कविता अच्छी है ।<BR/><BR/>"आज तन्हा कोने में खुद को टूटा हुआ पाया है<BR/>जिस खिड़की पर पड़ी निगाहें बस अंधेरा छाया |"<BR/><BR/>"वो बादल है जिसको धरती की अरदास पता है<BR/>सूखे में तपन से टूटन का अहसास पता "<BR/><BR/>आपमें बहुत संभावनायें हैं। <BR/><BR/>आभारगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-44298022204680190472007-09-17T13:48:00.000+05:302007-09-17T13:48:00.000+05:30सुनील जी,आपकी यह पंक्तिया 'बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ ...सुनील जी,<BR/><BR/>आपकी यह पंक्तिया 'बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ' डॉ॰ कुमार विश्वास की कोई दीवाना कहता है की 'बहुत टूटा बहुत बिखरा, थपेड़े सह नहीं पाया' की विस्तार लगती हैं। फ़िर भी कहूँगा प्रयास सराहनीय है।<BR/><BR/>आगे के लिए शुभकामनाएँ।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76797936127376701812007-09-17T13:19:00.000+05:302007-09-17T13:19:00.000+05:30बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँबिन...बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ<BR/>बिन मंज़िल इतनी दूर तक बस यूँही बहता आया हूँ<BR/>ऐ बीच जीवन-सागर में, उठते हुए मन के तूफानों<BR/>ऐ काल-भँवर का साथ निभाते क्रोध-लहर के ऊफानों<BR/>चाहे मुझको अब तट तक पहुँचाओ या यहीं मरना दो <BR/>आज मुझे तुम प्रेरणा दो, आज मुझे तुम प्रेरणा दो<BR/><BR/>आपमें अपार संभावनायें हैं। अच्छी रचना।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34892697856822217762007-09-17T09:45:00.000+05:302007-09-17T09:45:00.000+05:30जी आप सभी के प्यार के लिए धन्यवाद |एक बात कहना चाह...जी आप सभी के प्यार के लिए धन्यवाद |<BR/>एक बात कहना चाहुँगा कि मैं दरसल 'प्रेम' अथवा 'श्रंगार' पर ही कविता लिखता हूँ | ये कविता एक अपवाद थी | मेरी आगामी कविताएँ आप ज़रूर पढेंगें ऐसी आशा के साथ एक बार फिर आप सभी के प्यार के लिए धन्यवाद देता हूँ |Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11234552461951063863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3560669064763956842007-09-16T21:02:00.000+05:302007-09-16T21:02:00.000+05:30कविता के लिये कवि ने जो प्रयास किये हैं वे सराहनीय...कविता के लिये कवि ने जो प्रयास किये हैं वे सराहनीय हैं<BR/>कविता अच्छी है पर शब्द चयन की द्रष्टि से लगभग हर स्थान पर बहुत मेहनत करने की आवश्यक्ता है<BR/>तुकात्मक कविता की रचना करते समय बहुत ध्यान देना पडता है<BR/>एक जैसे शब्दों का चुनाव करना पडता है<BR/>जहाँ कहीं भी कविता का तुकान्त हुआ है वहाँ कविता की टूटन दिखाई देती है<BR/>प्रयास कीजिये सम्भावनायें आप में बहुत हैं मित्र<BR/>बहुत बहुत आभारविपिन चौहान "मन"https://www.blogger.com/profile/10541647834836427554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30823407734903014712007-09-15T18:50:00.000+05:302007-09-15T18:50:00.000+05:30सुनील जी,अच्छा लिखा है।मन गुलशन उजड़ गया, दिल आँगन...सुनील जी,<BR/>अच्छा लिखा है।<BR/><BR/>मन गुलशन उजड़ गया, दिल आँगन हुआ है वीरां<BR/>अरे बिन रंगत और खुशबू जीना भी क्या है जीना<BR/><BR/>ये पसंद आया।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-66510072745182419422007-09-15T16:48:00.000+05:302007-09-15T16:48:00.000+05:30सुनील जीअच्छी कविता लिखी है । जीवन में अनेक बार ऐस...सुनील जी<BR/>अच्छी कविता लिखी है । जीवन में अनेक बार ऐसी निराशा जागृत हो जाती है । कविता उस समय<BR/>उस आवेग की निवृति का स्रोत बन जाती है । आपके जीवन में सदा आशावादिता रहे यही कामना है ।<BR/>शुभकामनाओं सहित ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82123417315502067532007-09-15T14:09:00.000+05:302007-09-15T14:09:00.000+05:30बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँबिन...बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ<BR/>बिन मंज़िल इतनी दूर तक बस यूँही बहता आया हूँ<BR/><BR/>बहुत अच्छा लगा सुनील जी आपकी रचना पढ़ केरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.com