tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post5075528600342495053..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: चलो यार कुछ 'सद्दा' लूटेंशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31210169421130109962008-01-14T17:38:00.000+05:302008-01-14T17:38:00.000+05:30this poem is very good........... kavita ne bachap...this poem is very good........... <BR/>kavita ne bachapan ki yaad dila di ..............VASHISHTHA...JOURNALISThttps://www.blogger.com/profile/17102742974351621731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9950326724278192142007-07-12T20:10:00.000+05:302007-07-12T20:10:00.000+05:30ये कविता एक अच्छी कोशिश है... कही कहीं इस पर कुछ प...ये कविता एक अच्छी कोशिश है... कही कहीं इस पर कुछ पढ़ी-सुनी रचनाओं के प्रभाव नज़र आते हैं.. <BR/>जैसे <BR/>गुलज़ार ने लिखा है<BR/>मुझको भी तरक़ीब सिखा दे यार जुलाहे... <BR/>वो नज़्म रिश्तों पर लिखी गई थी... <BR/>ये बचपन में ले जाती है.. लिहाज़ा एक बढ़िया कोशिश है....<BR/>लगे रहो देवेश<BR/>मैं जो भी हूं तुम्हारे काफी करीब हूंAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-6025044096596994842007-05-23T17:31:00.000+05:302007-05-23T17:31:00.000+05:30बचपन की याद ताजा हो गयी।बचपन की याद ताजा हो गयी।SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76955784321565594662007-05-15T14:52:00.000+05:302007-05-15T14:52:00.000+05:30खबरी भैया,"कोई लौटा दें॰॰॰बचपन के दिन॰॰॰"इस कविता ...खबरी भैया,<BR/><BR/>"कोई लौटा दें॰॰॰बचपन के दिन॰॰॰"<BR/>इस कविता के लिये आपको कोरा धन्यवाद देकर मै औपचारिक नही होना चाहता हूं, बस यही चाहता हूँ कि इस कविता के माध्यम से जो रिश्ता आपने हमारे दिल के साथ जोडा है, वह हमेशा यूँ ही कायम रहे।<BR/>अभी बचपन कल का ही बीता दिन लगता है, जब पतंग और मंझा दोनो खूब लूटा करते थे। <BR/>और फिर बर्फ का गोला खाये भी बहुत दिन हो गये, पर हां ऎक बात अवश्य है मुह तो पानी से आपने भर ही दिया।<BR/>"वो जवान है,नजरें चुरा लेती है,<BR/>॰॰॰॰॰॰बचपन की होली खेलें॰॰॰"<BR/>कितने निःस्वार्थ भाव है, कि मन अनायास ही कह उठता है॰॰॰ वाह ।<BR/>कविता के बाद जब आपकी टिप्पणी पढी॰॰॰॰तो लगा जगह तो आपने कभी की बना ली॰॰॰हमारे दिलों में।<BR/>बिल्कुल सही बात है॰॰॰सद्दा हो या सद्दी॰॰॰॰हमें तो बस "पतंग" लूटने से मतलब है॰॰और वो तो आपने लूट ही ली। <BR/>काव्य समन्दर और ठाठें मारे, ऎसी आशायें आशायें है ।<BR/><BR/>आर्य मनु, उदयपुर, मेवाडAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-56538689770297092272007-05-15T10:42:00.000+05:302007-05-15T10:42:00.000+05:30खबरी जी,अभिनन्दन, स्वागतआपको पढने का अवसर प्राप्त ...खबरी जी,<BR/>अभिनन्दन, स्वागत<BR/>आपको पढने का अवसर प्राप्त हुआ है मुझे पहले भी<BR/>सो यही कहना चाहता हूँ कि आपकी कवितायें इतनी सहज हैं कि बडी अपनी सी लगती हैं|बिल्कुल आम आदमी की कविता, देशज शब्दों के सटीक चयन में माहिर कहूँ या आपकी शैली ही यही है :-)<BR/>बधाई, और युग्म का सदस्य बनने के लिये हार्दिक आभार कि अब नियमित रूप से आपको पढ सकूँगा|<BR/>"हिन्द-युग्म" को भी बधाई<BR/><BR/>सस्नेह<BR/>गौरव शुक्लGaurav Shuklahttps://www.blogger.com/profile/12422162471969001645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82542145962942068302007-05-14T23:56:00.000+05:302007-05-14T23:56:00.000+05:30खबरी जीआपका लिखा गद्य अच्छा लगता है.माफी चाहूँगा, ...खबरी जी<BR/>आपका लिखा गद्य अच्छा लगता है.<BR/><BR/>माफी चाहूँगा, पर यह भी मुझे कविता नहीं, गद्य ही लगी.<BR/><BR/>ऐसा कहते हुए संकोच अवश्य होता है, पर आपने प्रतिक्रिया चाही थी, सो ईमानदारी से जो लगा सो कह दिया. कृपया बुरा न मानें.Shishir Mittal (शिशिर मित्तल)https://www.blogger.com/profile/05051950515877629225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63147226421895238182007-05-14T21:11:00.000+05:302007-05-14T21:11:00.000+05:30तरक़ीब बता,चोरी करनी है!अपने ही घर में कटोरी भर अन...तरक़ीब बता,<BR/>चोरी करनी है!<BR/>अपने ही घर में कटोरी भर अनाज की...।<BR/>आज सपने में भोंपू वाली बर्फ़ बिकी थी!<BR/> <BR/>बिल्कुल ही स्वाभाविक तरीके से लिखी गयी रचना।<BR/>मुझे तो मेरे बचपन में खींच ले गयी।<BR/>कहना ही होगा कि आप ने बहुत शानदार एन्ट्री की है, अब ये आप की जिम्मेदारी होगी कि भविष्य हमें निराश न करें।पंकजhttps://www.blogger.com/profile/14850723521476498477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47481923113539942272007-05-14T21:01:00.000+05:302007-05-14T21:01:00.000+05:30कब से पलकें बिछायें निहार रहे थे आपके आने को। कब आ...कब से पलकें बिछायें <BR/>निहार रहे थे आपके आने को। <BR/>कब आओगें <BR/>अपनी कविताओं को पढ़ा कर हसाने को।<BR/><BR/>आपके आने से <BR/>यह गलियॉ पहले ज्यादा रौशन होगी।<BR/>आप जैसे और मिलेगें तो<BR/><BR/>हिन्दी और हिन्द युग्म की बरकत होगी।<BR/><BR/>आपकी यह कविता <BR/>और को बचपन की याद दिलाती है। <BR/>हम तो पंतग उड़ाना सीख न सकें,<BR/><BR/>यह बात हमें गम मे ड़बाती है। <BR/><BR/><BR/>ढेरों शुभकामनाऐं।Pramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74645782912197773362007-05-14T13:03:00.000+05:302007-05-14T13:03:00.000+05:30नये घर में आ गया हूँ, थोडा सा इधर उधर खिसककर जगह ब...नये घर में आ गया हूँ, थोडा सा इधर उधर खिसककर जगह बन जायेगी।<BR/>कल पूरे दिन मैं नावाकिफ था, कि कुछ ऐसा भी हो गया है। <BR/>पहली बात में हिन्द-युग्म प्रयास और उसकी प्यास को आभिनंदन करता हूँ।<BR/>जहाँ तक बात 'सद्दी' की है तो, मैं भाई मैं ठहरा ब्रजवासी। मैं पतंग की आधार डोर को यहाँ हम सद्दा ही कहते थे, बचपन में तो व्याकरण की समझ बिल्कुल होती ही नहीं है। बस इक कोरी सादगी होती है। बचपन को क्या फर्क पडता है सद्दे से पतंग उडे या सद्दी से,बस पतंग उडनी चाहिये।<BR/>शैलेश जी और रंजन जी का विशेष आभार देना चाहूँगा, यकीनन आहे युग्म पाठको को ज्यादा बेहतर कविता पढने मिलेगी।<BR/>देवेश वशिष्ठ 'खबरी'देवेश वशिष्ठ ' खबरी 'https://www.blogger.com/profile/03089045465753357873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49673667048517929712007-05-13T23:04:00.000+05:302007-05-13T23:04:00.000+05:30देवेश जी..यह कविता गुदगुदाती, झकझोरती हुई सुन्दर र...देवेश जी..<BR/>यह कविता गुदगुदाती, झकझोरती हुई सुन्दर रचना है। आपका हिन्द युग्म के स्थायी सदस्य के रूप में अभिनंदन।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43425255365604930222007-05-13T19:27:00.000+05:302007-05-13T19:27:00.000+05:30सर्वप्रथम देवेश जी, आपका हिन्द-युग्म पर बहुत-बहुत ...सर्वप्रथम देवेश जी, आपका हिन्द-युग्म पर बहुत-बहुत अभिनंदन। आपने इस कविता से हमलोगों को बचपन में पहुँचा दिया है। वैसे सभी का बचपन एक जैसा नहीं होता। पर बचपन को मिस करना शायद सभी के जीवन में कॉमन होता है। आगे से हमें और बेहतर कविता पढ़ने को मिलेगी, इसका हमें विश्वास है।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37611350042112485992007-05-13T16:53:00.000+05:302007-05-13T16:53:00.000+05:30देवेशजी,आपकी यह कविता बचपन में ले जाती है, "सद्दा"...देवेशजी,<BR/><BR/>आपकी यह कविता बचपन में ले जाती है, "सद्दा" को हमलोग यहाँ "मंझा" कहते हैं, बचपन खूब लूटा करते थे, आपने यादें ताजा कर दी।<BR/><BR/>बहुत खूब लिखा है!!!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1337005162620432552007-05-13T13:26:00.000+05:302007-05-13T13:26:00.000+05:30सुन्दर रचना है। बधाई ।"सद्दा" का एक अर्थ पंजाबी मे...सुन्दर रचना है। बधाई ।<BR/><BR/>"सद्दा" का एक अर्थ पंजाबी मे "बुलावा" भी होता है।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-51445926086448083522007-05-13T08:26:00.000+05:302007-05-13T08:26:00.000+05:30बहुत ख़ूब ....बचपन की याद दिला दी आपने :)वो वाले प...बहुत ख़ूब ....बचपन की याद दिला दी आपने :)<BR/><BR/><BR/>वो वाले पच्चीस पैसे,<BR/>जिसकी चार संतरे वाली गोलियाँ आती थीं।<BR/>तरक़ीब बता,<BR/>चोरी करनी है!<BR/>अपने ही घर में कटोरी भर अनाज की...।<BR/>आज सपने में भोंपू वाली बर्फ़ बिकी थी!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.com