tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post5016696682304699078..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: दशाननशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76633280410157960542009-04-09T05:13:00.000+05:302009-04-09T05:13:00.000+05:30बहुत सुंदर रचना है ।बहुत सुंदर रचना है ।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82165709254869387912009-04-08T18:08:00.000+05:302009-04-08T18:08:00.000+05:30कुलवंत सिंह जी,बात गले उतरती है, जो कुछ आपने कहा ह...कुलवंत सिंह जी,<BR/><BR/>बात गले उतरती है, जो कुछ आपने कहा है उस इंसान के बारे में जो आज दशानन सा है या उसका अंशमात्र है, जरूर है कि वह हम सबमें छिपा बैठा है और अपनी बारी का शिद्दत से इंतजार कर रहा है.<BR/><BR/>आपने इस कविता के माध्यम से उस छिपे हुये चेहरे को बेनकाब किया है. दरअसल मैं भी इस बात में ऐतबार रखता हूँ कि <BR/>" हर एक चेहरे में छिपे हैं कई चेहरे<BR/> मैं किसीके देखूं और कोई मेरे "<BR/><BR/>साधुवाद.<BR/><BR/>मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-28208756070001948462009-04-08T17:55:00.000+05:302009-04-08T17:55:00.000+05:30ज्ञान-कर्म दस इन्द्रियाँ, बेलगाम यदि मीत. लगते दश ...ज्ञान-कर्म दस इन्द्रियाँ, बेलगाम यदि मीत. <BR/>लगते दश रथ दौड़ते, मन होता भयभीत. <BR/><BR/>दश इन्द्री जब भोगकर, तनिक न होतीं तृप्त. <BR/>दशमुख सब का भाग खा, रहता 'सलिल' अतृप्त. <BR/><BR/>तृप्ति हेतु अर्पित करें, स्वजन स्नेह सह पात्र.<BR/>तभी आत्मा तुष्ट हो, जग कहता दश गात्र.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.com