tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post4927692149122092598..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: फतवों के पैबंदशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-32342790481656282562008-08-27T16:01:00.000+05:302008-08-27T16:01:00.000+05:30पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,आज़ाद बयानों...पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,<BR/>आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,<BR/>॥क्यों हम मानलें उन बने बनाये फ़तवों को?<BR/>॥यही तो हममें और उनमें एक द्वन्द है॥रज़िया "राज़"https://www.blogger.com/profile/12190998804214272758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-45710985150431420692007-12-16T21:03:00.000+05:302007-12-16T21:03:00.000+05:30हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,जुल्म के हर वार...हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,<BR/>जुल्म के हर वार पर, जोरे-कलम बुलंद हैं,<BR/><BR/>पीकर के जहर भी, सूली पर मरकर भी,<BR/>जिंदा है सच यानी, झूठ के भाले कुंद हैं,<BR/><BR/>्वाह-वाह सजीव जी! क्या बात कही है!!RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77858372584995684992007-12-16T16:11:00.000+05:302007-12-16T16:11:00.000+05:30सजीव जी बिल्कुल नये अन्दाज़ में........आपके ये तेवर...सजीव जी बिल्कुल नये अन्दाज़ में........आपके ये तेवर पसन्द आये।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-20220766206305422272007-12-16T09:39:00.000+05:302007-12-16T09:39:00.000+05:30सजीव जी, आप की यह ग़ज़ल अच्छी लगी.सभी शेर अपनी अप...सजीव जी, <BR/>आप की यह ग़ज़ल अच्छी लगी.<BR/>सभी शेर अपनी अपनी बात कह पाने में सक्षम रहे.<BR/>''आग है जंगल की,ये लौ जो अभी मंद हैं.''<BR/> मुझे यह एक पंक्ति सारी ग़ज़ल में सबसे वज़नदार वज़नदार लगी. ऐसा लगता है जैसे आनेवाली किसी प्रलय की सूचक हो.<BR/>यह सिर्फ़ लेखिका तसलीमा के लिए नहीं वरन सभी उन लेखकों के लिए होगी जिनको समाज के ठेकेदारों ने उनकी बात कहने से रोका है.<BR/> 'बधाई'Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46461317997171597452007-12-16T00:16:00.000+05:302007-12-16T00:16:00.000+05:30हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,जुल्म के हर वार...हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,<BR/>जुल्म के हर वार पर, जोरे-कलम बुलंद हैं,<BR/><BR/>ही अपने आप में पूरी बात कह रहा था, मेरे हिसाब से अंतिम शेर की आवश्यकता नहीं थी। हाँ यदि अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग ढंग सुनाया जाय तब तो मज़ा ही आ जायेगा। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि अंतिम शेर में वज़न कम है।<BR/><BR/>आपका यह नया तेवर मुझे बहुत पसंद आया।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59563696548896662402007-12-15T21:03:00.000+05:302007-12-15T21:03:00.000+05:30बहुत खूब , तस्लीमा को ऐसे ही सहयोग की उम्मीद है, क...बहुत खूब , तस्लीमा को ऐसे ही सहयोग की उम्मीद है, कविता के तेवर भी अच्छे लगे।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-603113613667861442007-12-15T13:12:00.000+05:302007-12-15T13:12:00.000+05:30बहुत अच्छे तेवर हैं गज़ल के और एकाध जगह को छोड़कर शि...बहुत अच्छे तेवर हैं गज़ल के और एकाध जगह को छोड़कर शिल्प भी बढ़िया है।<BR/>लेकिन कुछ शेर एक ही बात दुहराते से लगे।गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-33655584589993437762007-12-14T22:14:00.000+05:302007-12-14T22:14:00.000+05:30--सजीव जी, आपकी ये ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आई क्यों क...--सजीव जी, <BR/>आपकी ये ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आई क्यों की<BR/>१) सारे कवियों (लेखकों) को को एक उनकी ताकत का एहसास करवाती है<BR/>२) उर्दू मै ज्यादा बनी है.. मुझे ज्यादा तर मतलब समझ आये<BR/>३) विराम चिहन अछे प्रयुक्त हुए है<BR/>४) कुछ शुद्ध शब्द भी प्रयुक्त हुए है जैसे "मंज़ुषों" <BR/>बधाई हो<BR/>सादर <BR/>शैलेशShailesh Jamlokihttps://www.blogger.com/profile/17057836670556828623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57519222338830735172007-12-14T20:14:00.000+05:302007-12-14T20:14:00.000+05:30fantastic ghazal sajeev ji..fantastic ghazal sajeev ji..anand guptahttps://www.blogger.com/profile/15444594510943753611noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-6376241727911437802007-12-14T17:15:00.000+05:302007-12-14T17:15:00.000+05:30सजीव जी बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी है.पीकर के जहर भी, स...सजीव जी <BR/>बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी है.<BR/>पीकर के जहर भी, सूली पर मरकर भी,<BR/>जिंदा है सच यानी, झूठ के भाले कुंद हैं,<BR/><BR/>बेशक जोरो-जबर से, दबा दो मेरी चीख तुम,<BR/>आग है जंगल की,ये लौ जो अभी मंद हैं.<BR/>बहुत बढ़िया. बधाई.शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43183084725414922792007-12-14T14:07:00.000+05:302007-12-14T14:07:00.000+05:30बहुत बढिया! सजीव जी!बहुत बढिया! सजीव जी!Avanish Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03737794502488533991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-89943549633481979012007-12-14T13:05:00.000+05:302007-12-14T13:05:00.000+05:30पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,आज़ाद बयानों...पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,<BR/>आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,<BR/><BR/>बेशक जोरो-जबर से, दबा दो मेरी चीख तुम,<BR/>आग है जंगल की,ये लौ जो अभी मंद हैं.<BR/><BR/>सजीव जी आपकी कविता में यह तेवर खूब निखर कर आया है। लाजवाब रचना। <BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-19105199535766018752007-12-14T12:01:00.000+05:302007-12-14T12:01:00.000+05:30सजीव जी,बहुत ही सशक्त रचना..पहरे हैं ज़ुबानों पर, ल...सजीव जी,<BR/><BR/>बहुत ही सशक्त रचना..<BR/><BR/>पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,<BR/>आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,<BR/>फाड़ देते हैं सफ्हे, जो नागावर गुजरे,<BR/>तहरीर के नुमाइंदे ऐसे, मौजूद यहाँ चंद हैं<BR/>बेशक जोरो-जबर से, दबा दो मेरी चीख तुम,<BR/>आग है जंगल की,ये लौ जो अभी मंद हैं.<BR/><BR/>बहुत सुन्दरभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-80461613947840064032007-12-14T11:50:00.000+05:302007-12-14T11:50:00.000+05:30हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,जुल्म के हर वार...हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,<BR/>जुल्म के हर वार पर, जोरे-कलम बुलंद हैं,<BR/><BR/>यह पंक्ति बहुत अच्छी लगी .बहुत खूब सजीव जी ..यह अंदाज़ भी आपका अच्छा लगा बधाई !!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87219790610058020172007-12-14T11:36:00.000+05:302007-12-14T11:36:00.000+05:30सजीव जी आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,......सजीव जी <BR/><BR/>आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,<BR/>....<BR/>तहरीर के नुमाइंदे ऐसे, मौजूद यहाँ चंद हैं<BR/>....<BR/>जुल्म के हर वार पर, जोरे-कलम बुलंद हैं,<BR/><BR/>बेशक जोरो-जबर से, दबा दो मेरी चीख तुम,<BR/>आग है जंगल की,ये लौ जो अभी मंद हैं.<BR/><BR/>वाह .. ! कमाल की पंक्तियाँ हैं. कलमकार की कलम का जोर किसी भी और जोर से दबाया नहीं जा सका है और आगे भी नहीं दबाया जा सकेगा नमन आपकी इस अभिव्यक्ति कोAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-90948412267898070092007-12-14T11:33:00.001+05:302007-12-14T11:33:00.001+05:30हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,जुल्म के हर वार...हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,<BR/>जुल्म के हर वार पर, जोरे-कलम बुलंद हैं,<BR/>---<BR/>बहुत गहरा प्रहार करती है आपकी रचना <BR/><BR/>सुंदर.<BR/>बधाई<BR/>अवनीश तिवारीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46621434288332641222007-12-14T11:33:00.000+05:302007-12-14T11:33:00.000+05:30हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,जुल्म के हर वार...हथकडियाँ दो चाहे फांसी पर चढ्वा दो,<BR/>जुल्म के हर वार पर, जोरे-कलम बुलंद हैं,<BR/>---<BR/>बहुत गहरा प्रहार करती है आपकी रचना <BR/><BR/>सुंदर.<BR/>बधाई<BR/>अवनीश तिवारीAnonymousnoreply@blogger.com