tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post4831600329090823844..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: बेदुईन..शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-53672468523757116932007-12-11T22:49:00.000+05:302007-12-11T22:49:00.000+05:30सुनीता जी ,मुझे आपकी कविता अच्छी लगी क्यों की१) आप...सुनीता जी ,<BR/>मुझे आपकी कविता अच्छी लगी क्यों की<BR/>१) आप जो कहना चाहती है कविता से उसमे कहने मै सफल हुई है<BR/>२) आपने उपमायें अच्छी दी हैं <BR/>३) शब्द चयन अच्छा है.. पर कही कही पर काफी कठिन शब्द प्रयुक्त हुए है जैसे "बेदुईन"<BR/> इस का मतलब समझ नहीं आया.. और ये किवता का शीर्षक है इसके अलावा बालुका = बालू(? ) और मुक्ता =? <BR/>पर कुल मिला कर अच्छी कविता है... बधाई हो..<BR/>सादर <BR/>शैलेशShailesh Jamlokihttps://www.blogger.com/profile/17057836670556828623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78080311679516233332007-12-11T18:22:00.000+05:302007-12-11T18:22:00.000+05:30'सहरे' उपयुक्त शब्द नहीं है। कविता मुझे बहुत कम भा...'सहरे' उपयुक्त शब्द नहीं है। कविता मुझे बहुत कम भाई। शब्द अत्यंत सरल रखें ताकि आम पाठक आपकी कविता से जुड़ सके।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-56764982115456430842007-12-10T19:32:00.000+05:302007-12-10T19:32:00.000+05:30सुनीता जी,rachna kaa shirshak mujhe bhi samajhne m...सुनीता जी,<BR/>rachna kaa shirshak mujhe bhi samajhne mein taklif huee thi, fir tippaniyon ke jariye main samajh paaya...<BR/>baaki rachnaa achhhi hai aur sadhi huee bhi,,<BR/>निखिल आनंद गिरिNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55107846022386396742007-12-10T13:55:00.000+05:302007-12-10T13:55:00.000+05:30सागर की बालुका से मुक्ता लाभ सदृश तुम्हें पाने के ...सागर की बालुका से मुक्ता लाभ सदृश <BR/>तुम्हें पाने के बाद <BR/>मैं बन जाती हूँ एक शिल्पी<BR/>तुम्हारी प्रतिमा गढ़ती हुई गीली बालू से ..................<BR/><BR/>बहुत ही नए शब्द चुनती हैं आप....गीला बालू अच्छा लगाSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85224565375159375382007-12-10T12:29:00.000+05:302007-12-10T12:29:00.000+05:30सुनीता जी कविता मुझे ठीक-ठाक लगी. मकडी वाला द्र्श्...सुनीता जी कविता मुझे ठीक-ठाक लगी. मकडी वाला द्र्श्य जमा नहीं. जहाँ तक मुझे पता है "सहरे" कोई शब्द नहीं होता हाँ सहरा ज़रूर होता है. अगर सहरा का ही प्रयोग होता तो अच्छा रहता. "मुक्ता लाभ सदृश" भी कंफ्युजिंग लगा मुझे. अंत में एक बात एह सिर्फ मेरे विचार हैं. सहमति असहमति आप पर निर्भर करती है.Avanish Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03737794502488533991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-79827481381651932992007-12-10T12:04:00.000+05:302007-12-10T12:04:00.000+05:30सुनीता जी,सुन्दर गहन भाव लिये आपकी कविता मुझे बहुत...सुनीता जी,<BR/>सुन्दर गहन भाव लिये आपकी कविता मुझे बहुत भायी.<BR/><BR/>पहले पाने की चाह, फ़िर सहेजने का प्रयत्न और फ़िर खोने की पीडा... खूब ऊभर कर आये हैं.Mohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31109809555738537892007-12-10T11:48:00.000+05:302007-12-10T11:48:00.000+05:30'गीली बालू से प्रतिमा?'और फ़िर उस को अपने जाल में ब...'गीली बालू से प्रतिमा?'और फ़िर उस को अपने जाल में बांधे रखने की चाहत-एक अनोखी इच्छा है कवियत्री के मन में.<BR/>अस्थिरता को स्थिर करने की चाहत को अच्छा रूप दिया है-- ख़ुद की तुलना एक बद्दू से तुलना करके एक आपने कविता को अच्छा अंत दिया है-<BR/>आभार सहित-Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37706428784518152042007-12-09T20:07:00.000+05:302007-12-09T20:07:00.000+05:30मैं बन चुकी हूँ एक बेदुईननिर्जनता के अंतहीन सहरे म...मैं बन चुकी हूँ एक बेदुईन<BR/>निर्जनता के अंतहीन सहरे में................<BR/>बहुत सुन्दर रचना... आपने साउदी के विस्तृत रेगिस्तान और वहाँ के बद्दुओं की याद दिला दी...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15241974515910088972007-12-09T17:49:00.000+05:302007-12-09T17:49:00.000+05:30मैं बन जाती हूँ एक मकड़ीजमीन से लेकर आसमान तकअपना ज...मैं बन जाती हूँ एक मकड़ी<BR/>जमीन से लेकर आसमान तक<BR/>अपना जाल फैलाती हुई<BR/>तुम्हे बाँध रख पाने की<BR/>अतर्कित निजी अश्वाशन से .<BR/><BR/>बहुत सुंदर लिखा है सुनीता जी ..भाव बहुत ही सुंदर हैं बधाई आपको !!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-16567938278406379122007-12-09T17:03:00.000+05:302007-12-09T17:03:00.000+05:30सुनीता जी!वास्तव में आपने बहुत हच्छा लिखा हैबुझती ...सुनीता जी!<BR/><BR/>वास्तव में आपने बहुत हच्छा लिखा है<BR/>बुझती हुई लौ की भाँति<BR/>तुम्हारी स्मृति खोने के बावजूद <BR/>मैं बन जाती हूँ एक मकड़ी<BR/>जमीन से लेकर आसमान तक <BR/>अपना जाल फैलाती हुई <BR/>तुम्हे बाँध रख पाने की <BR/>अतर्कित निजी अश्वाशन सेमनीष वंदेमातरम्https://www.blogger.com/profile/10208638360946900025noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34198561110646062882007-12-09T16:16:00.000+05:302007-12-09T16:16:00.000+05:30शीर्षक का साधारण अर्थ है...रागिस्तान के वे बंजारे ...शीर्षक का साधारण अर्थ है...रागिस्तान के वे बंजारे जिनका कोई ठिकाना नही होता....राजीव जी आप अधिक विस्तार से जानना चाहेंगे तो गूगल पर bedouin टाइप करें आप इनके जीवन शैली से भी परिचित हो जायेंगे....:-) <BR/>सुनीता यादवDr. sunita yadavhttps://www.blogger.com/profile/00087805599431710687noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36931779973879627552007-12-09T13:17:00.000+05:302007-12-09T13:17:00.000+05:30बहुत खूब..."बुझती हुई लौ की भाँतितुम्हारी स्मृति ख...बहुत खूब...<BR/>"बुझती हुई लौ की भाँति<BR/>तुम्हारी स्मृति खोने के बावजूद <BR/>मैं बन जाती हूँ एक मकड़ी<BR/>जमीन से लेकर आसमान तक <BR/>अपना जाल फैलाती हुई <BR/>तुम्हे बाँध रख पाने की <BR/>अतर्कित निजी अश्वाशन से"..<BR/><BR/>लेकिन अपनी अज्ञानता के लिए मॉफी चाहूँगा कि मुझे 'बेदुईन' का मतलब नहीं पता...<BR/>अच्छा हो अगर आप कुछ कठिन शब्दों का मतलब भी साथ दे दिया करें तो उम्मीद है कि मुझ जैसे कई नादान भी आपको ज़्यादा पढने की कोशिश करेंगेराजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48540757549783250752007-12-09T13:04:00.000+05:302007-12-09T13:04:00.000+05:30सुनीता जी कमाल की रचना है,बेदुयिन बुझती हुई लौ ...सुनीता जी कमाल की रचना है,बेदुयिन<BR/> बुझती हुई लौ की भाँति<BR/>तुम्हारी स्मृति खोने के बावजूद <BR/>मैं बन जाती हूँ एक मकड़ी<BR/>जमीन से लेकर आसमान तक <BR/>अपना जाल फैलाती हुई <BR/>तुम्हे बाँध रख पाने की <BR/>अतर्कित निजी अश्वाशन से <BR/> भावनाओं का मकड़जाल, कितना खूबसूरत,दिल के कितने करीब <BR/> आनंद आ गया<BR/> अलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13605884644591460192007-12-09T12:01:00.000+05:302007-12-09T12:01:00.000+05:30सुनीता जीक्या बात है . बहुत अच्छे बुझती हुई लौ की...सुनीता जी<BR/>क्या बात है . बहुत अच्छे <BR/>बुझती हुई लौ की भाँति<BR/>तुम्हारी स्मृति खोने के बावजूद <BR/>मैं बन जाती हूँ एक मकड़ी<BR/>जमीन से लेकर आसमान तक <BR/>अपना जाल फैलाती हुई <BR/>तुम्हे बाँध रख पाने की <BR/>अतर्कित निजी अश्वाशन से ............................ <BR/><BR/>बहुत ही सुंदर लिखा है. बधाई .शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com