tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post4385173838081125623..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: कब्रिस्तान की मौतशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64723930324651083292008-02-29T19:27:00.000+05:302008-02-29T19:27:00.000+05:30अजय तुम्हारी कविता पढने के बाद मुझे लगा की, मुझे त...अजय तुम्हारी कविता पढने के बाद मुझे लगा की, मुझे तुम्हे सुनना चाहिए था.मैंने बहुत बड़ी गलती की जो उस दिन तुम्हे नही सुना.सुनने के बाद शायद मई वो पुरस्कार नही अपनाती जो मुझे मेरी कविता क लिए मिला था.निश्चित रूप से उस पुरस्कार क हक़दार सिर्फ़ तुम ही हो आज तुम्हारी कविता पढने क बाद मई अपने आप को दोषी मान रही हूँ. तुम मेरी मदद कर सकते हो मई तुम्हे वो पुरस्कार देना चाहती हूँ क्यूंकि उसके हक़दार सिर्फ़ तुम हो और तुम्हे उसे लेना होगा और इसी तरह अच्छा लिखना होगा क्यूंकि जितनी शिद्दत से तुमने लिखा है चोट सीधे आत्मा पे लगती है.तुम्हारी कविता विकास और विनाश की बर्बरता को बताती है.abhihttps://www.blogger.com/profile/05669157245340827521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9372482275674668982008-01-20T17:21:00.000+05:302008-01-20T17:21:00.000+05:30अजय जी, क्या कहूँ!मुझे आपकी रचना बहुत-बहुत पसंद आई...अजय जी, क्या कहूँ!<BR/>मुझे आपकी रचना बहुत-बहुत पसंद आई। आप इसी तरह लिखते रहें और शीघ्र हीं शीर्ष पर पहुँचेंगे , मुझे यह विश्वास है।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-18167484722612856632008-01-20T10:19:00.000+05:302008-01-20T10:19:00.000+05:30आज आपकी कविता पर नज़र पड़ी....बेहतरीन कविता थी....शब...आज आपकी कविता पर नज़र पड़ी....बेहतरीन कविता थी....शब्द-शिल्प की एकाध कमियाँ छोड़ दें तो आपकी कविता शीर्ष पर होनी चाहिए थी....कंटेंट भी उम्दा....<BR/>आप लिखते रहे..<BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-51561779725009108422008-01-17T17:03:00.000+05:302008-01-17T17:03:00.000+05:30इस छोटी उम्र में इतने बेहतर कंटेंट को क्राफ़्ट में...इस छोटी उम्र में इतने बेहतर कंटेंट को क्राफ़्ट में ढाला है आपने। आप में भविष्य का जिम्मेदार कवि दिख रहा है। आप लिखते रहें।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70971867127604994652008-01-16T20:00:00.000+05:302008-01-16T20:00:00.000+05:30इतनी मथि हुई सोच का कविता के माध्यम से उभर कर आना ...इतनी मथि हुई सोच का कविता के माध्यम से उभर कर आना सुखद है, आप बधाई के पात्र हैं.<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43242552521373073042008-01-16T16:07:00.000+05:302008-01-16T16:07:00.000+05:30गहरी सोच को दर्शाती एक अच्छी रचनासब मुर्दे साथ में...गहरी सोच को दर्शाती एक अच्छी रचना<BR/>सब मुर्दे साथ में कैसे सो रहे हैं?<BR/>यह उन्हें खल रहा है<BR/>देखो बूढ़ा बरगद रो रहा है<BR/>वो काट दिया जाएगा !<BR/>चमगादड़ें ज़ोरों से चीख रही हैं,<BR/>इनकी भाषा कौन समझ पाएगा?<BR/>बूढ़ा जिन्न मेरा साथी था<BR/>अब अकेला हो जाएगा !<BR/>मुर्दों की हसरतों से भरा<BR/>वो अँधा कुआँ सिसक रहा है<BR/>अब पूर दिया जाएगा!<BR/>सारे मुर्दे धरती में घुट जाएँगे !<BR/><BR/>बहुत सुन्दर.. बधाई स्वीकारेंभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49195813781506218002008-01-16T15:31:00.000+05:302008-01-16T15:31:00.000+05:30आधुनिकता के नाम पर होने वाले विकास का नकारात्मक प...आधुनिकता के नाम पर होने वाले विकास का नकारात्मक पहलू .यह कोई नया विषय नहीं रहा.परन्तु कवि ने कविता में इस समस्या को एक नए नजरीये से देखा है.<BR/>सरल शब्दों का सहारा ले कर कविता चल रही है जिस से आसानी समझ आ जाती है.<BR/>'मुर्दों सा मुर्दों का बूढ़ा चौकीदार ' या फ़िर 'पर घास के नर्म तकिये पर <BR/>लेटे मुर्दे बैचैन हैं' ऐसी ही कई पंक्तियाँ आप में समृद्ध कविताई दर्शा रही हैं.<BR/>लिखते रहिये...शुभकामनाएं.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46611825582937393832008-01-16T14:48:00.000+05:302008-01-16T14:48:00.000+05:30पर वो नहीं जानता...मुझमें मुर्दों को दफ़नाते हैंमु...पर वो नहीं जानता...<BR/>मुझमें मुर्दों को दफ़नाते हैं<BR/>मुझे कहाँ दफ़नाया जाएगा ?<BR/>एक बड़े कब्रिस्तान में<BR/>वो सबसे बड़ा कब्रिस्तान !<BR/>जहाँ ज़िंदा इंसान जीते जी,<BR/>ख़ुद <BR/>रोज़ दफ़न हो जाते हैं<BR/>महज़ जीने के लिए !<BR/>--- सुंदर सोच है <BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43806959657411504702008-01-16T14:15:00.000+05:302008-01-16T14:15:00.000+05:30मुर्दों सा मुर्दों का बूढ़ा चौकीदार सब जानता हैचूल...मुर्दों सा मुर्दों का बूढ़ा चौकीदार <BR/>सब जानता है<BR/>चूल्हे पर रोटी पकाता हुआ सोचता है,<BR/>विकास की आग में मैं भी जल जाऊंगा,<BR/>मेरा अस्तित्व खो जाएगा !<BR/>पर वो नहीं जानता...<BR/>मुझमें मुर्दों को दफ़नाते हैं<BR/>मुझे कहाँ दफ़नाया जाएगा ?<BR/>एक बड़े कब्रिस्तान में<BR/>वो सबसे बड़ा कब्रिस्तान !<BR/>जहाँ ज़िंदा इंसान जीते जी,<BR/>ख़ुद <BR/>रोज़ दफ़न हो जाते हैं<BR/>महज़ जीने के लिए !<BR/><BR/>"ऐसी कवीता पहली बार पढी है समझ कुछ देर से आई , पर अच्छी लगी . अच्छी रचना के लिए बधाई "<BR/>Regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.com