tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post4355784608399214789..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: निवेदनशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9197064061786537322008-08-04T13:26:00.000+05:302008-08-04T13:26:00.000+05:30वह रवि भाई बहुत दिनों दिनों पढा आपको और सारी शि...वह रवि भाई बहुत दिनों दिनों पढा आपको और सारी शिकायत मिट गयी |मज़ा आगया पढ़ के !!<BR/>मेरे ख्याल मैं ओशो अगर जिंदा होते तो ये कविता जरुर अपने किसी व्यख्यान मैं रखते ...<BR/> बहुत गहरे भावः !!!<BR/>बधाई<BR/>सादर <BR/> दिव्य प्रकशDivya Prakashhttps://www.blogger.com/profile/10953256514562221873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78357197456589299172008-08-03T08:01:00.000+05:302008-08-03T08:01:00.000+05:30रविकांत जी---आपका गीत बहुत मीठा है। मेरे पास स्वर ...रविकांत जी---<BR/><BR/>आपका गीत बहुत मीठा है। मेरे पास स्वर का अभाव है। मैं अच्छा गा नहीं सकता । फिर भी कई बार गाने का प्रयास किया। गाते- गाते ऐसा लगा कि गीत कुछ ऐसा होता तो गाने में सुविधा होती----<BR/><BR/>-------------------------------------------------------------------<BR/>मन मंदिर का तम मिट जाए, दीप जलाना तुम<BR/>-------------------------------------------------------------------<BR/>दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो, अमृत बरसाना तुम<BR/>-------------------------------------------------------------------<BR/>मैं दूँ पत्थर को मुर्त रूप, प्राण बिठाना तुम<BR/>---------------------------------------------------------------------<BR/>--मुझे पहली पंक्ती में -ऐसा, दूसरी में -मिलन, तथा तीसरी में -मूर्ति में,-- शब्दों का प्रयोग खटक रहा है। क्या मैं गलत हूँ ? आशा है मेरी धृष्टता के लिए आप मुझे माफ करेंगे । ----देवेन्द्र पाण्डेय।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31460677361602115172008-08-03T01:17:00.000+05:302008-08-03T01:17:00.000+05:30bahut sunderbadhaisaaderrachanabahut sunder<BR/>badhai<BR/>saader<BR/>rachanaAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27246685832635222402008-08-02T23:17:00.000+05:302008-08-02T23:17:00.000+05:30i love ui love uAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/07855957469885928314noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14213232973180724442008-08-02T16:53:00.000+05:302008-08-02T16:53:00.000+05:30रिश्तों की शुष्क लता जी जाएस्नेह-वारियुत सावन होछू...रिश्तों की शुष्क लता जी जाए<BR/><BR/>स्नेह-वारियुत सावन हो<BR/><BR/>छूते ही स्वर्ण बना दोगे<BR/><BR/>तुम तो पारस से पावन हो<BR/><BR/>मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम<BR/>रवि जी<BR/>बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा पर सारी कसर पूरी हो गई। अति सुन्दर। संस्कृत निष्ठ भाषा का सुन्दर समायोजन हुआ है। बधाई स्वीकारें। <BR/>बहुत सुन्दर ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-52691951696467788902008-08-02T09:56:00.000+05:302008-08-02T09:56:00.000+05:30मैं पीड़ा की महानिशा मेंचक्रवाक ज्यों नदी किनारेदग्...मैं पीड़ा की महानिशा में<BR/><BR/>चक्रवाक ज्यों नदी किनारे<BR/><BR/>दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो मिलन-सुधा बरसाना तुम<BR/><BR/>मेरे शब्द…………………………………………………<BR/><BR/>"bhut sunder, bhavnatmak rachna"seema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-23532629289309504362008-08-02T09:33:00.000+05:302008-08-02T09:33:00.000+05:30रविकांत पाण्डेय जी,आपकी कविता..१) को पढ़ कर मन से ए...रविकांत पाण्डेय जी,<BR/><BR/>आपकी कविता..<BR/>१) को पढ़ कर मन से एक ही बात निकली... वाह!!! बहुत ही सुन्दर गेय काव्य...<BR/>इसे अपनी आवाज़ जरूर दीजिये...<BR/>२) भावः इतने सुन्दर की दिल मै घर कर गए हैं...<BR/>३) बहुत ही अच्चे रूपक,और उपमा अलंकार का प्रयोग किया है मसलन "पीड़ा की महानिश" और "नील गगन सी विस्तृत आँखे"<BR/>४)वाकई आपको अपने शब्दों को स्वर देने का बार बार मन कर रहा है..अति स्जुन्दर<BR/><BR/>PS : - हिंद युग्म के नियंत्रकों से निवेदन है.. की टिप्पणियों वाले पेज मै कविता का सारा प्रस्तुतीकरण ख़राब हो जाता है.. कृपया ध्यान दें<BR/><BR/>सादर<BR/>शैलेशShailesh Jamlokihttps://www.blogger.com/profile/17057836670556828623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-72645162908235927372008-08-02T09:11:00.000+05:302008-08-02T09:11:00.000+05:30मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बि...मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम<BR/><BR/>मेरे शब्द……………………………………………<BR/><BR/>एक पवन अहसास बहुत सुंदर अभिव्यक्ति रविकांत जीBRAHMA NATH TRIPATHIhttps://www.blogger.com/profile/02914568917315736973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48770747327584953322008-08-02T06:30:00.000+05:302008-08-02T06:30:00.000+05:30मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बि...मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम<BR/>मेरे शब्द……………………………………………<BR/><BR/>अच्छी कविता है रविकांत जी. लिखते रहें. बधाई.अमिताभ मीतhttps://www.blogger.com/profile/06968972033134794094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-12987431452105374752008-08-02T02:03:00.000+05:302008-08-02T02:03:00.000+05:30मैं पीड़ा की महानिशा मेंचक्रवाक ज्यों नदी किनारेदग्...<B>मैं पीड़ा की महानिशा में<BR/>चक्रवाक ज्यों नदी किनारे<BR/>दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो मिलन-सुधा बरसाना तुम</B><BR/>अति सुंदर! <BR/>भावों की गहराई, शब्दों की सुन्दरता, भाषा की मधुरता, संगीत की लय, सभी का समन्वय है इस कविता में.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com