tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post4107524479227551584..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: घर और घर का अंतरशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-80664060809796720852009-09-03T09:52:26.590+05:302009-09-03T09:52:26.590+05:30अच्छी कविता बहुत बहुत बधाई
विमल कुमार हेडाअच्छी कविता बहुत बहुत बधाई<br />विमल कुमार हेडाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58723704927035108082009-08-05T11:20:05.409+05:302009-08-05T11:20:05.409+05:30घर बनाने के नाम पर
और अपने सिर पर छतें
ढोता है घर ...घर बनाने के नाम पर<br />और अपने सिर पर छतें<br />ढोता है घर रचने के खेल में<br />और एक साथ कई-कई घरों के बोझ तले<br />कहीं नहीं रहता है !<br /><br />जिन्दगी का बेहद सजीव चित्रण करती ये पंक्तियां बहुत ही सुन्दर लगी, आभार्सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-25151181294373170612009-06-24T15:40:05.866+05:302009-06-24T15:40:05.866+05:30कई बार पढी कविता को........पर सच कहूँ कि जो अनुभूत...कई बार पढी कविता को........पर सच कहूँ कि जो अनुभूत हुआ उसे अभिव्यक्ति देने के लिए उपयुक्त शब्द संधान नहीं कर पा रही.....<br /><br />बहुत ही भावपूर्ण और प्रभावशाली रचना है,जो सोचने को खुराक देती है...<br /><br />सतत सुन्दर लेखन के लिए आपको अनंत शुभकामनाये...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62656569789349265012009-06-17T23:10:42.697+05:302009-06-17T23:10:42.697+05:30बिलकुल सही !
ठीक इसी वक्त गगनचुंबी महलातों
की बत्...बिलकुल सही !<br /><br />ठीक इसी वक्त गगनचुंबी महलातों<br />की बत्तियाँ बुझा दी जाती है<br />और रात निर्वस्त्र होकर ‘हिपॉक्रिटिक’ चेहरों<br />को अपनी आगोश में ले लेती है<br />जिसके अँधेरे में लावारिस कुत्ते<br />डरावनी आवाज़ में भौंकते हैं<br />(तो कभी तेज स्वर में रोते हैं)<br /><br />बधाई|Ambarish Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/06514999274631808844noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-90302835550334339692009-06-12T23:29:40.012+05:302009-06-12T23:29:40.012+05:30सशक्त कविता.
इस से अधिक तारीफ़ करने पर अपने आप से ...सशक्त कविता.<br />इस से अधिक तारीफ़ करने पर अपने आप से बगावत होती है<br />इस से कम तारीफ करने पर समाज का भय खाता है <br />-अहसनmohammad ahsannoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-18689588710564873922009-06-12T10:34:25.405+05:302009-06-12T10:34:25.405+05:30घर अच्छी कविता है लेकिन कहीं कहीं absurd हो जाती ह...घर अच्छी कविता है लेकिन कहीं कहीं absurd हो जाती है शायद यह कवी की सम्मोहनावस्था में लिखी पंक्तियाँ होंगीSHARAD KOKASnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62139737388652741932009-06-11T15:13:37.403+05:302009-06-11T15:13:37.403+05:30कल से कविता को पढने की कोशिश कर रही थी, किन्तु नेट...कल से कविता को पढने की कोशिश कर रही थी, किन्तु नेट पर यह पृष्ठ खुल ही नहीं रहा था, आज कविता की शुरू की चंद पंक्तियाँ पढ़ी बाकी कविता पढने से पहले सारे कमेंट्स पढ़े फिर कविता पढ़ी . सभी ने तारीफ़ की है, और यह कहा है कि कविता की लम्बाई ज्यादा है, क्या वास्तव में जो कुछ इतना कहा या लिखा गया है , वो लिखने की जरूरत थी? मुझे लगा कि सारी कविता का सार इन चंद पंक्तियों में है......<br /><br />सदियों से अपने को<br />स्थापित करने के उपक्रम में<br />आदमी अपने घर की तलाश में<br />रोज़ भटकता है<br />और आजीवन निर्वासन भोगता हुआ<br />एक दिन सो जाता है चिर-निद्रा में कहीं भी...<br />इतिहास के पन्ने पर अगर कहीं नाम भी<br />दर्ज कर जाता है <br />तो कहाँ होता है उसका पता-ठिकाना ?<br />कहाँ होता है तब घर उसका ? ?Pooja Anilhttps://www.blogger.com/profile/11762759805938201226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31365375944476539992009-06-11T15:13:21.542+05:302009-06-11T15:13:21.542+05:30This comment has been removed by the author.Pooja Anilhttps://www.blogger.com/profile/11762759805938201226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-897484896325029492009-06-11T10:00:08.379+05:302009-06-11T10:00:08.379+05:30Ek kahavat kahi jaati hai ki gady lekhak jo baat 6...Ek kahavat kahi jaati hai ki gady lekhak jo baat 6 sau lines mein kahta vo kavi pady ki 6 lines mein kah deta hai. kavi ya lekhak blogaron kii jhoothi tareef ke shikar ho jate hain. kavi svayam aatm manthan kare to jada behtar. main aapki rachna se behad khush nahin hua. fir bhi badhai deta hoon. meri tippani ko anyatha na lekar sakaratmak lenge yahi asha karta hoon.Prem Farukhabadihttps://www.blogger.com/profile/05791813309191821457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37732324075203011462009-06-11T08:36:57.539+05:302009-06-11T08:36:57.539+05:30वह मेरे भीतर-कहीं से निकलकर
मेरे सामने खड़ा हो गया...वह मेरे भीतर-कहीं से निकलकर<br />मेरे सामने खड़ा हो गया <br />और बुदबुदाने लगा -<br />घर वह नहीं<br />जहाँ आदमी रहता है<br />घरों में आदमी अब कहाँ रहता है<br />जिसे तुम घर कहते हो<br />वह तो एक तबेला है<br />लानतों के सामान यहाँ<br />लीदों की तरह पसरे रहते हैं<br /><br /><br />हाँ, काँखते घोड़ों को अपनी देह से उतार<br />जिन खूँटों से आदमी<br />देर रात गये रोज़ बांधता है<br />सहुलियत के लिये उस जगह को<br />तुम घर कह सकते हो<br /><br /><br />आपने एक मिल भेजा था. जिसे मैंने आज देखा.और आपकी कविता पढ़ी..सुशील जी आपकी कविता में जो फिलोसफी है वेह बहतु अच्छी लगी.Shamikh Farazhttps://www.blogger.com/profile/11293266231977127796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15284632492203689932009-06-10T23:32:12.347+05:302009-06-10T23:32:12.347+05:30'वह घर नहीं जहां आदमी रहता है '
सच सुशील क...'वह घर नहीं जहां आदमी रहता है '<br />सच सुशील कुमार जी की कविता ने सचाई से रूबरू करवाया है |sangeeta sethihttps://www.blogger.com/profile/12638075907123243114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13741428571743278582009-06-10T23:08:12.401+05:302009-06-10T23:08:12.401+05:30वाह मनु साहब वाह, क्या बात है!
उचटती नींद के काँध...वाह मनु साहब वाह, क्या बात है!<br /><br />उचटती नींद के काँधे हिला के ख़्वाब ए परीशां ने यूं कहा <br /> वो घर कहाँ है जहां बस्तियां थीं बेफिक्र नींदों की !<br />चिढ़ के नींद ने कहा अब मकानों में मकीं नहीं रहते <br />सामान ए आसाइश रहता है, मकीं रातें बिताने घर में आते हैं <br />-अहसनmohammad ahsannoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42530632638959353042009-06-10T23:05:27.986+05:302009-06-10T23:05:27.986+05:30वाह मनु साहब वाह, क्या बात है!
उचटती नींद के काँध...वाह मनु साहब वाह, क्या बात है!<br /><br />उचटती नींद के काँधे हिला के ख़्वाब ए परीशां ने यूं कहा <br /> वो घर कहाँ है जहां बस्तियां थीं बेफिक्र नींदों की !<br />चिढ़ के नींद ने कहा अब मकानों में मकीं नहीं रहते <br />सामान ए आसाइश रहता है, मकीं रातें बिताने घर में आते हैं <br />-अहसनmohammad ahsannoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70774987678916766572009-06-10T21:35:55.383+05:302009-06-10T21:35:55.383+05:30दिलो-ज़िह्न की भी सूरत मेरे मकां सी है,
के सामां क...दिलो-ज़िह्न की भी सूरत मेरे मकां सी है,<br />के सामां कम है सही और, कबाड़ ज़्यादा है..<br /><br />अच्छी लम्बी कविता....manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-2030561973975863432009-06-10T20:26:04.223+05:302009-06-10T20:26:04.223+05:30दीना नाथ जी,
कम से कम सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और धू...दीना नाथ जी,<br />कम से कम सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और धूमिल को तो बख्श दें. अगर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को रखना चाहें तो कोई बात नहीं लेकिन धूमिल को अवश्य छोड़ दें.मुहम्मद अहसनnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34314913092862898202009-06-10T19:21:43.871+05:302009-06-10T19:21:43.871+05:30दिगम्बराओं की बाँहों में
कितने ही झक्क सफ़ेद कामदे...दिगम्बराओं की बाँहों में<br />कितने ही झक्क सफ़ेद कामदेव<br />Sabdo ka cyan bhut badiya hai aur saral, pervahmaie sheelie hai.<br />Ghar aur hgar ka antar tiik veesha jeesa maanavtaa aur amaanabtaa, neetikta aur aneetikta.Yaatharth ka chintan hai.Lanbi kavita hai.<br />Badhaie.<br />Manju Gupta.Manju Guptahttps://www.blogger.com/profile/10464006263216607501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82928043410523869862009-06-10T19:21:22.688+05:302009-06-10T19:21:22.688+05:30मेरे ईमेल पर रेखा मैत्रा जी (rekha.maitra@gmail.co...मेरे ईमेल पर रेखा मैत्रा जी (rekha.maitra@gmail.com)एक संदेश आया है, उसे यहां दे रहा हूं-<br />रतिजी की कविता सुन्दर है और आपकी घर कविता भी ! बढ़ाई !Sushil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/09252023096933113190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9816326464398598442009-06-10T18:00:46.364+05:302009-06-10T18:00:46.364+05:30बहुत खूबबहुत खूबरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49893371258287479532009-06-10T17:26:42.602+05:302009-06-10T17:26:42.602+05:30अच्छा लिखा है
समझ आता है
सरलता भाती है
कविता क...अच्छा लिखा है<br /><br />समझ आता है<br /><br />सरलता भाती है<br /><br />कविता की थाती है।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-7396775135827568272009-06-10T14:19:48.020+05:302009-06-10T14:19:48.020+05:30बेहद विचारोत्तोजक रचना। पढकर एक नया हीं अनुभव मिला...बेहद विचारोत्तोजक रचना। पढकर एक नया हीं अनुभव मिला। हाँ कविता लंबी है, लेकिन मुझे इसकी लंबाई ज्यादा नहीं लगी। कविता की लंबाई बित्तों से नहीं नापी जानी चाहिए, बल्कि इस बात से नापी जानी चाहिए कि पढते समय बोरियत तो महसूस नहीं हो रही। और मुझे कहीं भी बोरिय्त की अनुभूति नहीं हुई। इसलिए मेरे लिए यह कविता प्रशंसनीय है।<br /><br />-विश्व दीपकविश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-4046126493642371842009-06-10T06:50:41.335+05:302009-06-10T06:50:41.335+05:30bahut prabhavit hua,sachchai ka yatharth parak var...bahut prabhavit hua,sachchai ka yatharth parak varnan,dhanyawad.Mansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35358902369641846492009-06-10T00:49:02.777+05:302009-06-10T00:49:02.777+05:30बहुत अच्छी कविता लगी.
धन्यवादबहुत अच्छी कविता लगी.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15503508090757724002009-06-09T22:36:32.668+05:302009-06-09T22:36:32.668+05:30HINDI YUGM PAR KAVIVAR SUSHEEL
KUMAR JEE KEE KAVIT...HINDI YUGM PAR KAVIVAR SUSHEEL<br />KUMAR JEE KEE KAVIT" GHAR AUR GHAR<br />KAA ANTAR" PADH KAR BAHUT ACHCHHA<br />LAGAA HAI.YUN TO UNKEE KAVITAAON<br />MEIN PRAKRITI KAA SWAR MUKHYA HOTA<br />HAI LEKIN JEEVAN SE SAMBANDHIT UN<br />KEE YE KAVITA NISSANDEH BEJOD HAI,<br />MUN KO JHAKJHORNE WALA AESA YTHARTH<br />MAINE ANYATRA KAM HEE DEKHA HAI.<br />KAVITA JITNEE LAMBEE HAI UTNE HEE<br />UNCHE BHAAV HAIN.SASHAKT BHASHA-<br />SHAELEE MEIN LIKHEE IS KAVITA KO<br />PADHVAANE KE LIYE MAIN HINDI YUGM<br />KO SALAAM KARTAA HOONPRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5624781139480312472009-06-09T22:07:42.141+05:302009-06-09T22:07:42.141+05:30सुशील जी, कविता में ही नहीं गद्य में भी नए मुहावरे...सुशील जी, कविता में ही नहीं गद्य में भी नए मुहावरे गढ़ते हैं, इसलिए किसी किसी को लम्बाई की शिकायत हो सकती है, लेकिन कविता नए अर्थों को , नए प्रतिमानों को जगह देती हुई सफलता से अपनी बात कह रही है।<br /><br />बधाई!!<br /><br />Rati SaxenaAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59053112018055367452009-06-09T21:43:11.128+05:302009-06-09T21:43:11.128+05:30अच्छी लगी कविता .अच्छी लगी कविता .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.com