tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post3942462733950422114..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: तुम कहाँ थे?शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-16420544880809768262007-10-24T10:55:00.000+05:302007-10-24T10:55:00.000+05:30राजीव जी !पहली पंक्ति पढ्ते ही समझ आ जाता है...कि ...राजीव जी !<BR/><BR/>पहली पंक्ति पढ्ते ही समझ आ जाता है...कि ये रचना आपकी है....<BR/>सबसे अलग हठकर ,अलग तेवर रखने वाली भाव-प्रधान कृति के लियें आपकी लेखनी अनुपम है.....<BR/><BR/>बहुत सुन्दर...मनो-मस्तिष्क को झकझोर देने वाली रचना.....दिमाग पर सीधा असर करती है....<BR/><BR/>बधाई...गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82996057601520093342007-10-24T10:40:00.000+05:302007-10-24T10:40:00.000+05:30राजीव जी कविता हर बार की तरह प्रभावी है । अन्त ऐसा...राजीव जी कविता हर बार की तरह प्रभावी है । अन्त ऐसा सोचा न था पर वो भी चमत्कारी सा लगा । चित्र असंगत सा है । श्रृंगारिक कविता का भान कराता है।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5681828097974328082007-10-24T10:13:00.000+05:302007-10-24T10:13:00.000+05:30राजीव जी,चिरपरिचित अंदाज में विसंगतियों पर कुठाराघ...राजीव जी,<BR/>चिरपरिचित अंदाज में विसंगतियों पर कुठाराघात करती सुन्दर रचना. <BR/>अन्तिम छंद पढ कर पहले लगा कि शायद उस डिव्वे में बम्ब था.. दोवार पढा तो पता चला कि शायद उसमें चुडिया थी उन नेताओं के लिये जो शाब्दिक खेल ज्यादा खेलते हैं... या समाज के उस तबके के लिये जो अपनी मर्यादा और कर्तव्य से अनजान है.<BR/><BR/>मुझे सजीव जी की टिप्पणी से इत्तेफ़ाक है कि चित्र कविता से मेल नहीं खा रहा.Mohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40342699115612717652007-10-24T09:24:00.000+05:302007-10-24T09:24:00.000+05:30राजीव जी बिल्कुल नए अंदाज़ में, बहुत ही गहरी चोट क...राजीव जी बिल्कुल नए अंदाज़ में, बहुत ही गहरी चोट करती है आखिरी पंक्तियाँ, आपका बागी अंदाज़ हर बार उभर आ ही जाता है, जाने अनजाने, बस जो तस्वीर आपने लगाई है वो नही अच्छी लगी, वह कविता के भाव से नही मेल खाती.... सशक्त रचना के लिए बधाईSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70039590142778516582007-10-23T19:16:00.000+05:302007-10-23T19:16:00.000+05:30बन्धुवर राजीव जी.. खादीगिरि...जलाये जा रहे थे मुहल...बन्धुवर राजीव जी<BR/><BR/>.. खादीगिरि<BR/>...<BR/>जलाये जा रहे थे मुहल्ले<BR/>तुम कहाँ थे?<BR/><BR/><BR/>.. पुरानी गर्लफ्रेंड के<BR/>नये ब्वायफ्रेंड की दिलचस्पी लडको में है?<BR/>कौन से क्रीकेटर नें फरारी खरीदी?<BR/>कौन सा बिजनेसमेन देश से फरार है? <BR/><BR/><BR/>...<BR/>देश का सिसटम तो जैसे सर्कस है<BR/>अब कोई नहीं देखता.... <BR/><BR/><BR/>...सिगरेट से सुलगते इस देश की कोई तो आखिरी कश होगी? <BR/><BR/><BR/>....यह भेंट है रखो, बाँट लो आपस में<BR/>कहता वह ओझल था, आँखों से पल भर में<BR/>खोला जब डब्बे को, हाँथों से छूट गया<BR/>बिखर गयी सडक पर चूडियाँ चूडियाँ...<BR/><BR/>आपकी कविता की शैली का ही एक ट्रेडमार्क नहीं है अपितु यह विषय का भी है। आपके रचनाओं मै उठने वाले राष्ट्रीय संदर्भ के प्रश्न पाठक को मात्र झकझोरते ही नहीं है बल्कि उसे झिंझोड़ डालते हैं हर बार वही शैली फिर भी बड़ी उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा आपकी कविता की बड़ा सा कलेजा भी चाहिये आपकी रचना को पढ़कर स्वयं को संयत रखने के लिये आपकी यह पहचान हम सब मित्रों के लिये गौरव की बात है<BR/><BR/>एक और सफल रचना के लिये बधाईAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-25129158921111531242007-10-23T15:40:00.000+05:302007-10-23T15:40:00.000+05:30मैं यूं ही भटकता हुआ सडक पर जाता थाकि फेरीवाले नें...मैं यूं ही भटकता हुआ सडक पर जाता था<BR/>कि फेरीवाले नें कहा ठहरो “युवक”<BR/>यह भेंट है रखो, बाँट लो आपस में<BR/>कहता वह ओझल था, आँखों से पल भर में<BR/>खोला जब डब्बे को, हाँथों से छूट गया<BR/>बिखर गयी सडक पर चूडियाँ चूडियाँ...<BR/><BR/>राजीव जी,<BR/>यह अंत थोड़ा असमंजस में डालता है। लेकिन कविता की पृष्ठभूमि इसे फिर बाँध लेती है। बाकी कविता सच को चरितार्थ करती है। तथाकथित बुद्धिजीवियों पर आपके व्यंग्यात्मक बाण सटीक लगे हैं। बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-72004439510593299732007-10-23T15:21:00.000+05:302007-10-23T15:21:00.000+05:30राजीव जीओज गुण आपकी कविता की पहचान बन गया है । चूड...राजीव जी<BR/>ओज गुण आपकी कविता की पहचान बन गया है । चूड़ियों का चित्र देखकर कुछ भ्रम हुआ था । विचार प्रधान शैली<BR/>में लिखी कविता प्रभावशाली है । ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनको हम अनदेखा कर जाते हैं । इस ओर आपने सही<BR/>संकेत किया है । एक ओजस्वी कवि को बधाई ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30820357378248934832007-10-23T14:29:00.000+05:302007-10-23T14:29:00.000+05:30राजीव जी,कविता पढता जा रहा था.. अचानक 2 लाइनें और ...राजीव जी,<BR/><BR/>कविता पढता जा रहा था.. अचानक 2 लाइनें और मेरे पवर-ब्रेक.. एकदम स्तब्ध.<BR/>कमाल करती है आपकी लेखनी..<BR/><BR/>जैसे कोई तीर गति से जाता हुआ लक्ष पर टकराता है और बस... हो गया जो होना था..<BR/>-बधाईभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-84565000056705173662007-10-23T11:44:00.000+05:302007-10-23T11:44:00.000+05:30खोला जब डब्बे को, हाँथों से छूट गयाबिखर गयी सडक पर...खोला जब डब्बे को, हाँथों से छूट गया<BR/>बिखर गयी सडक पर चूडियाँ चूडियाँ...<BR/>achha vyangatmak prateek ka prayog kiya hai aapne.डाॅ रामजी गिरिhttps://www.blogger.com/profile/08761553153026906318noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34776332016020219952007-10-23T11:01:00.000+05:302007-10-23T11:01:00.000+05:30सिवाए अंत के बाकी कविता अच्छी बन पडी है.सिवाए अंत के बाकी कविता अच्छी बन पडी है.Avanish Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03737794502488533991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-156659515112925402007-10-23T10:10:00.000+05:302007-10-23T10:10:00.000+05:30राजीव जी ...इसका अंत अलग से हट के था यह भेंट है...राजीव जी ...इसका अंत अलग से हट के था <BR/><BR/>यह भेंट है रखो, बाँट लो आपस में<BR/>कहता वह ओझल था, आँखों से पल भर में<BR/>खोला जब डब्बे को, हाँथों से छूट गया<BR/>बिखर गयी सडक पर चूडियाँ चूडियाँ...<BR/><BR/>एक और रचना आपकी आज के सच के करीब <BR/>शुभकामनाएं <BR/><BR/>रंजूरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49698385226601632032007-10-23T10:05:00.000+05:302007-10-23T10:05:00.000+05:30नाज़िम हिकमत की कविता याद आ गई...एक दिन मेरे देश क...नाज़िम हिकमत की कविता याद आ गई...<BR/>एक दिन मेरे देश की जनता अराजनीतिक बुद्धिजीवियों से पूछेगी।<BR/>वह उनसे पूछेगी कि तुम उस समय क्या कर रहे थे जब देश ...<BR/>बाकी याद नहीं है। लेकिन कविता के तेवर आपकी कविता जैसे ही हैं।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-90715230493586503092007-10-23T09:51:00.000+05:302007-10-23T09:51:00.000+05:30Kavita jis flow me chal rahi thi laga nahi tha ki ...Kavita jis flow me chal rahi thi laga nahi tha ki aise khatam ho sakti hai...suddenly it took u u turn and changed the whole meaning of poem to readers perspective....i liked tis surprise....going best...of its mood...Anupamahttps://www.blogger.com/profile/12917377161456641316noreply@blogger.com