tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post3698489943216643300..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: साप्ताहिक समीक्षा- १७शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59198729243484156042008-01-27T19:22:00.000+05:302008-01-27T19:22:00.000+05:30सर जी इतने सार्थक मूल्यांकन के लिए धन्यवाद. आलोक स...सर जी इतने सार्थक मूल्यांकन के लिए धन्यवाद.<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64853797391417846002007-11-29T20:14:00.000+05:302007-11-29T20:14:00.000+05:30ॠषभदेव जी,हमेशा की तरह बड़ी हीं सार्थक एवं मूल्यवान...ॠषभदेव जी,<BR/>हमेशा की तरह बड़ी हीं सार्थक एवं मूल्यवान समीक्षा की है आपने। इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-38789030649982197302007-11-29T08:10:00.000+05:302007-11-29T08:10:00.000+05:30आदरणीय ऋषभदेवजी,आपकी टिप्पणियाँ ऐसी लगती हैं जैसे ...आदरणीय ऋषभदेवजी,<BR/>आपकी टिप्पणियाँ ऐसी लगती हैं जैसे भरी कक्षा में शिक्षक कुछ छात्रों को एकाध नसीहत दे जाता है मगर वही एक-दो वाक्य उसके लिए ज़िंदगी भर काम आते हैं....<BR/>आपकी सारगर्भित समीक्षा के लिए धन्यवाद.....<BR/>हाँ, कभी-कभी ऐसा लगता है कि आप शुरू कि कविताओं पर ज्यादा शब्द खर्च करते हैं और क्रम में नीचे आने वाली कवितायें आपकी व्यस्तता का "शिकार" हो जाती हैं...<BR/>कृपया सभी कविताओं का अपना पूरा प्यार दें..<BR/><BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91458875782338946062007-11-28T00:49:00.000+05:302007-11-28T00:49:00.000+05:30आदरणीय ऋषभ जी,आपके इस स्तम्भ से हम पाठकों को भी बह...आदरणीय ऋषभ जी,<BR/><BR/>आपके इस स्तम्भ से हम पाठकों को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हम हर कविता को नई नज़र से देख पाते हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-6160074087795916692007-11-26T16:02:00.000+05:302007-11-26T16:02:00.000+05:30कविताओं के प्रति नई समझ विकसित करने का एक मात्र इश...कविताओं के प्रति नई समझ विकसित करने का एक मात्र इशारा आपकी तरफ से मिलता है। आपका भी प्रेम बना रहे।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74291491377039803052007-11-26T10:14:00.000+05:302007-11-26T10:14:00.000+05:30धन्यवाद ऋषभदेव जी.... जी हाँ यह लफ्ज़ मुझे भी बहु...धन्यवाद ऋषभदेव जी.... जी हाँ यह लफ्ज़ मुझे भी बहुत अच्छे नही लगे थे .पर कुछ और ध्यान में आए नही :) ध्यान रखूंगी इस का आगे से :)रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-44798266453188311702007-11-26T09:59:00.000+05:302007-11-26T09:59:00.000+05:30आदरणीय ऋषभदेव शर्मा जी"वक्तव्य की अधिकता से बोझिल ...आदरणीय ऋषभदेव शर्मा जी<BR/>"वक्तव्य की अधिकता से बोझिल कविता" मेरी रचना पर आपके इस कथन से मेरी सहमति है। रचना खास मन:स्थिति की है और इसी लिये मैं न्याय नहीं कर सका। किंतु आपके मार्गदर्शन को ध्येय बना कर मेरी कोशिश रहेगी कि एसी त्रुटियाँ कम हों। आभार।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1115192509368785452007-11-26T08:29:00.000+05:302007-11-26T08:29:00.000+05:30इस बार आप सीधे समीक्षा पर आ गए, आपकी भूमिका की कमी...इस बार आप सीधे समीक्षा पर आ गए, आपकी भूमिका की कमी खली, शयद समयाभाव..... समझा जा सकता है..... समीक्षाएं ..... हमेशा की तरह सार्थकSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com