tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post3631437307308857867..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: सन्नी चंचलानी कहते हैंशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1179476982059545942008-06-11T21:54:00.000+05:302008-06-11T21:54:00.000+05:30VERY GOOD BEST OF LUCKVERY GOOD <BR/>BEST OF LUCKLAVhttps://www.blogger.com/profile/16077914669137072952noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17479066091889616772008-02-04T13:54:00.000+05:302008-02-04T13:54:00.000+05:30आप सभी ने मुझे पड़ने, सराहने व मार्गदर्शन करने के ...आप सभी ने मुझे पड़ने, सराहने व मार्गदर्शन करने के लिए समय दिया उसके लिए ह्रदय से धन्यवादSunny Chanchlanihttps://www.blogger.com/profile/02921620323003577787noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77930441638109111342008-02-03T12:03:00.000+05:302008-02-03T12:03:00.000+05:30एक अलग तरह की कविता लगी.अच्छी सोच है. लिखते रहिये!...एक अलग तरह की कविता लगी.<BR/>अच्छी सोच है. <BR/>लिखते रहिये!Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65690074742134639532008-01-31T19:51:00.000+05:302008-01-31T19:51:00.000+05:30दिवाकर जी से सहमत हूँ , मगर कविता ने मुझे खींचा है...दिवाकर जी से सहमत हूँ , मगर कविता ने मुझे खींचा है.. <BR/><BR/>खासकर ये भाग..<BR/>या <BR/>गाँव की सादगी पर सजाऊँ<BR/>सुरीले गीतों के बोल<BR/>उकेरूँ उगता सूरज कागज की पीठ पर<BR/>खीच लाऊँ खरीब की फसल, लहलहाते खेत <BR/><BR/>बहा लाऊँ कागज पर <BR/>गाँव की नदियाँ, तालाब और पोख्रर<BR/>बिखेर दूँ सावन के झूले, अमरूदों के बगीचे<BR/><BR/>क्या करूँ<BR/>लिखना तो बहुत कुछ चाह्ता हूँ<BR/><BR/>-सुन्दर सोच..भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-19009115877514026382008-01-31T08:40:00.000+05:302008-01-31T08:40:00.000+05:30क्या करूँलिखना तो बहुत कुछ चाह्ता हूँलेकिन अन्तरात...क्या करूँ<BR/>लिखना तो बहुत कुछ चाह्ता हूँ<BR/>लेकिन अन्तरात्मा सो गयी है<BR/>कविता-कहानी रचने के लिये <BR/>कच्चा माल तो बहुत है <BR/>लेकिन 'हर चीज बिकाऊँ' <BR/>वाले बाजार में<BR/>रचनात्मकता खो गयी है।<BR/>"very nice poetry"<BR/>Regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-84110506215439721862008-01-30T21:58:00.000+05:302008-01-30T21:58:00.000+05:30सन्नी जी, आपकी बात कि लिखने को कच्चा माल तो बहुत ह...सन्नी जी, आपकी बात कि लिखने को कच्चा माल तो बहुत है पर लिखने के लिए रचनात्मकता खो गई है, इस बात में ऊपरी तौर पर भले ही देखा जाए तो सही लगता है पर थोड़ा भी अन्तर में जाएँ तो पता चलेगा कि यह ‘खो गई नहीं सो गई है’ । यह कहीं बाहर नहीं थी कि गिर गई या कहीं खो गई । यह अपने अन्दर ही है और इसे जगाना आना चाहिए । और जगाने के साधन हैं एक तो आपका कथित कच्चा माल जिसे शास्त्रीय भाषा में उद्दीपन कह सकते हैं । दूसरे आप अपनी अन्तरात्मा की सुनें, अपने दिल की सुनें तो वह कविता में ही बोलेगा । फिर क्या बस आपको अभिव्यक्त करना आना चाहिए । अब मनुष्य की रचनात्मकता इसमें है कि वह अपनी अन्तरात्मा के कितना निकट है, अपने दिल के कितना निकट है, और उसे शब्दों में अनूदित करने में कितना सिद्ध है । जब सिद्ध शब्द आ गया तो इससे इसका साधन भी आ जाता है, वह है साधना । यह अपनी रचनात्मकता को जगाने का एक और साधन है । इस साधना को अभ्यास कह सकते हैं । किसी किसी काव्यशास्त्री का मत है कि सायास कविता गढ़ी हुई सी लगती है और उसमें स्वाभाविकता नहीं होती, पर काव्यप्रकाश में इसे भी कविता का एक कारण बताया गया है । काव्य के तीन हेतु हैं- प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास । सायास होने से ही कविता गढ़ी हुई नहीं लगने लगती, गढ़ी हुई तो तब लगती है जब उस कविता में कहा जाने वाला भाव जबरदस्ती गढ़ा गया हो । जब अपने दिल की ही आवाज आप कविता में दे रहे हैं और आपका जो सचेत प्रयास है उसे अभिव्यक्त करने में ही लगा है, अनुशासित करने में ही लगा है तो यह कविता को बनावटी नहीं दिखाता बल्कि इससे कविता सुन्दर हो जाती है । कविता का अनुशासित होना (अनुशासन का अर्थ यहाँ छन्द तथा काव्य नियमों की बाध्यता नहीं है) ही है जो कविता को मत्त (पागल) के प्रलाप से अलग करता है । नहीं तो पागल भी वही बोलता है जो उसके मन में, दिल में आता है । इसका अर्थ यह नहीं समझ लेना चाहिए कि केवल अभ्यास ही चाहिए, मम्मट (तथा अन्यों ने भी) ने प्रतिभा, व्युत्पत्ति तथा अभ्यास- तीनों को सम्मिलित रूप से ही एक काव्य का हेतु कहा है, ये तीनों अलग अलग काव्य के तीन हेतु नहीं हैं ।<BR/><BR/>ये बातें वैसे मैने केवल आपकी कविता पर ही नहीं लिखी हैं बल्कि जब रचनात्मकता की बात आई है तो इससे सम्बन्धित कुछ शास्त्रीय बात को सामने रखना उचित लगा जो विषय से निकट रूप से सम्बन्धित लगी । दोनों ही बातें कविता की रचना से सम्बन्धित हैं ।दिवाकर मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/15376537950079751261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76070157847351975982008-01-30T19:19:00.000+05:302008-01-30T19:19:00.000+05:30बहा लाऊँ कागज पर गाँव की नदियाँ, तालाब और पोख्ररबि...बहा लाऊँ कागज पर <BR/>गाँव की नदियाँ, तालाब और पोख्रर<BR/>बिखेर दूँ सावन के झूले, अमरूदों के बगीचे<BR/><BR/> sanni जी acchhi कविता.badhai हो<BR/> alok singh "sahil"Anonymousnoreply@blogger.com