tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post3503505763167763665..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: शुरूआतशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27956005090137443752007-05-23T19:02:00.000+05:302007-05-23T19:02:00.000+05:30खबरी जी, माफ करें। इतनी देर से आये कि कहने को कुछ ...खबरी जी, माफ करें। इतनी देर से आये कि कहने को कुछ बचा ही नहीं। सब कुछ तो साथी लोगों ने बोल दिया। आगे और भी बेहतर की आपसे उम्मीद है।SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65288511372663228632007-05-22T16:46:00.000+05:302007-05-22T16:46:00.000+05:30सराहनीय प्रयास देवेश भाईशुभकामनायेंसराहनीय प्रयास देवेश भाई<BR/>शुभकामनायेंUnknownhttps://www.blogger.com/profile/00434177086039562056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49263736138849954972007-05-22T00:15:00.000+05:302007-05-22T00:15:00.000+05:30देवेश जी,स्वस्थ आलोचना पुजारी की पूजा की तरह होती ...देवेश जी,<BR/><BR/>स्वस्थ आलोचना पुजारी की पूजा की तरह होती है. पुजारी चंदन घिसता है - शायद चंदन को कष्ट होता होगा - पर सुगंध तो तभी निकलती है.<BR/><BR/>आपने इतने स्नेह से मेरी आलोचना को स्वीकार किया, यह आपकी परिपक्वता का प्रतीक है. पर देखिये न! इसका नतीज़ा आपकी इस बेहतर <BR/><BR/>रचना के रूप में सामने है.<BR/><BR/>भावप्रवणता मात्र को मैने कभी कविता नहीं माना. नहीं तो अमृता प्रीतम के उपन्यास 'महाकाव्य' कहे जाने लगेंगे! राजीव जी से मेरी यह बहस <BR/>बहुत पुरानी है.<BR/><BR/>पर पूरी ईमानदारी से आपसे कहना चाहता हूँ, सिर्फ़ तारीफ़ कर देना तो काफ़ी नहीं.<BR/><BR/>आपके अंदर का कवि उभर कर सामने आ रहा है. ऐसे में यदि आप अपने भावों को साध नहीं पायेंगे तो स्वर बेसुरे हो जायेंगे. वीणा पर स्वयं <BR/><BR/>किया गया आघात भी सुंदर स्वरों की सृष्टि कर देता है, पर देर तक तो वही रागिनी सुनने का आनंद आता है जो किसी अच्छे वादक ने बजाई <BR/><BR/>हो. मेरे कथनों का मात्र इतना ही लक्ष्य है कि आप साधना के लिये प्रेरित हों, उसे मुकाम मान कर कहीं पहले रुक न जायें.<BR/><BR/>यह कविता पहले से बेहतर है, पर लय बार-बार टूटती है. शुरुआत में एक ही बात बार बार कही जा रही है. <BR/><I><BR/>न तुक को, न लय को लेकर कविता पढ़ना हे अधीर, <BR/>पढ़ना मेरे मन के पन्ने,बहता नीर कहीं पर पीर।।<BR/></I><BR/>लय-छंदों के प्रति मेरा आग्रह किसी अंधविश्वास के अंतर्गत नहीं है. यह तो वह माध्यम हैं जिनके कारण आपके हृदय के भाव ठीक-ठीक दूसरे के <BR/><BR/>हृदय में उतर सकते हैं. <BR/><BR/>कविता औसतन चलती रहती है. कुछ पंक्तियाँ अच्छी आती हैं, पर अगली वाली ही मज़ा बिगाड़ देती हैं.<BR/><BR/>अंततः एक बिन्दु पर जा कर यह लगता है कि कविता अच्छी हो गयी है -<BR/><BR/>गिरगिट के से रंग बदलना न कविता ने सीखा है।<BR/>लगी चित्र को तूलि सजाने भले भरा रंग फीका है।।<BR/>पानी से ही हलका नीला रंग माँग ले लाया हूँ, अंतरिक्ष पानी के जैसा मैं अंनंत मैं माया हूँ।। <BR/>साहिल पकड़े खड़ा सवेरा,मेरी त़ूली माप सकी है, सागर के मन का छोछापनमेरी तूली भाँप सकी है।। <BR/>सागर ने अपने तन ऊपर, ये कैसा उत्पात मचाया व्याकुल दिखता शांत हृदय सेदेखो बैठा घात लगाया।।<BR/><BR/>यद्यपि अंतिम दो पंक्तियों का अर्थ मैं ठीक-ठीक नहीं समझ सका. पर आगे भी अच्छी पंक्तियाँ हैं -<BR/><BR/>इसमें-मुझमें अंतर कितना <BR/>इसका व्याकुल केवल तन है,<BR/>लेकिन देखो मेरा व्याकुल <BR/>तन है, मन है,जीवन है। <BR/>चित्र बनाकर ये मटमैला,<BR/>मिट्टी से अभिषेक किया है,<BR/>सूरज नहीं कहूँगा लेकिन,<BR/>नन्हा सा टिमटिम दीया है।।<BR/>मेरे दीये बुझ मत जाना<BR/>मेरे बुझने से पहले,<BR/>हवा न चलना तेज ज़रा भी,<BR/>नये सवेरे से पहले।। <BR/><BR/>आगे फिर मामला बिगड़ जाता है. पर अंतिम चार पंक्तियाँ अच्छी हैं. छाप छोड़ जाती हैं-<BR/>चिल्लाता हूँ मैं पागल बन,गूँज वहीं रह जाती है,खिजलाता हूँ,खीज स्वयं कोबन नासूर सताती है।।<BR/>घुटता हूँ अंदर ही अंदरपर न किसी से कह पाता हूँ,अपने भावों को मैं खुद ही, मरहम बनकर सहलाता हूं......। <BR/><BR/>तो खबरी जी, आपकी खबर तो रख ही रहा हूँ. आपका गद्य तो बहुत ही प्रभावशाली है, उम्मीद है कि आपकी कविता भी उन्नति के नये सोपान चढ़ेगी. <BR/><BR/><BR/>स्नेह सहित, आपका बंधु;<BR/>शिशिरShishir Mittal (शिशिर मित्तल)https://www.blogger.com/profile/05051950515877629225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36613129087737842712007-05-21T16:09:00.000+05:302007-05-21T16:09:00.000+05:30जिस विषय पर ये कविता लिखी गयी है, यह विषय मुझे बहू...जिस विषय पर ये कविता लिखी गयी है, यह विषय मुझे बहूत ज्यादा पसंद है,इसलिये इतनी बडी कविता बोझिल सी नही लगी।<BR/><BR/>वैसे सच कहूँ तो देख के थोडा डर गयी थी पर पहली पक्ति ने ही बांध लिया...<BR/>पूछ रही है कविता मेरी,क्या तुम मुझमें डूब सकोगे?अथवा कर स्नान ऊपरी,फिर अपने गन्तव्य चलोगे।।<BR/><BR/>और डूबने को तैयार हो गयी, <BR/><BR/>कब किनारा आया, और किनारा आय भी या नही आया...<BR/><BR/>घुटता हूँ अंदर ही अंदरपर न किसी से कह पाता हूँ,अपने भावों को मैं खुद ही, मरहम बनकर सहलाता हूं......। <BR/><BR/>इसे किनारा कैसे कह सकते हैं, कविता की अंतिम पंक्ति होते हूए अभी दूर की आंतरिक यात्रा की तरफ ले जाने को तैयार सी है।<BR/><BR/>बहूत अच्छी लगी ये कविता... बधाई।गरिमाhttps://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47982759802006021342007-05-21T14:06:00.000+05:302007-05-21T14:06:00.000+05:30देवेश जी आप की काविता बहुत ही बडी हैदेवेश जी आप की काविता बहुत ही बडी हैAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/16883786301435391374noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31908157453866617712007-05-21T11:17:00.000+05:302007-05-21T11:17:00.000+05:30देवेश जी,हिन्द-युग्म परिवार में आप का स्वागत है.. ...देवेश जी,<BR/><BR/>हिन्द-युग्म परिवार में आप का स्वागत है.. कविता अच्छी बन पडी है इसमे कोई दो राय नही है..इतनी लम्बी कविता पढ्ते पढते मैं विषय भटक गया फिर भी मैने आपके मन के भाव पढ लिये.. जरा मेहनत ज्यादा करनी पडी<BR/>बधायी स्वीकारेंMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63037313375523553162007-05-21T10:05:00.000+05:302007-05-21T10:05:00.000+05:30मित्र लंबी कविता है , परंतु अपनी बात कहने में सक्ष...मित्र लंबी कविता है , परंतु अपनी बात कहने में सक्षम बन पड़ी है। कुछ पंक्तियों बहुत हीं अच्छी लगीं तो कहीं-कहीं दुहराव भी था।<BR/><BR/>न तुक को, न लय को ले कर <BR/>कविता पढ़ना हे अधीर, <BR/>पढ़ना मेरे मन के पन्ने,<BR/>बहता नीर कहीं पर पीर।<BR/><BR/>घुटता हूँ अंदर ही अंदर पर <BR/>न किसी से कह पाता हूँ,<BR/>अपने भावों को मैं खुद ही,<BR/>मरहम बनकर सहलाता हूं।<BR/><BR/>इन पंक्तियों में आपके क्या कहने। हिन्द-युग्म पर आपका स्वागत करता हूँ।<BR/>अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46305549108883309002007-05-21T08:35:00.000+05:302007-05-21T08:35:00.000+05:30आपने कवि मन और कविता की सटीक मीमांसा को लयबद्ध शब्...आपने कवि मन और कविता की सटीक मीमांसा को लयबद्ध शब्दों में पिरोया है। लेकिन जैसे हम कामायनी जैसे महाकाव्य की पंक्तियाँ भी एक साथ बहुत नहीं पढ़ते हैं, वैसे ही आपकी इस कविता की सभी छंदों को पढ़ना कष्टकर लगता है। हाँ यदि कहने का तरीका अद्वितीय होता, बातें अपूर्व होतीं तो पाठक का सारा ध्यान कविता पर ही होता। फ़िर भी कहूँगा कि अतिसुंदर और मेहनत वाला प्रयास है।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91561583635672378072007-05-20T23:56:00.000+05:302007-05-20T23:56:00.000+05:30रात के बारह बज गये है, यानि अब वक्त है मेरे आत्मवि...रात के बारह बज गये है, यानि अब वक्त है मेरे आत्मविश्लेषण का।<BR/>राजीव जी और गिरिराज जी की टिप्पणी के मुताबिक इस बात में न उलझा जाय कि कविता कैसी हो, बढी बात है कविता में जो कहा जा रहा है उसका स्वरूप कैसा है? बतौर तुषार जी कविता बहुत लम्बी थी, ये सच है, मै बता दूँ कि यह कविता अंतर्द्वंद का नतीजा है, जो मैंने एक भाग भर प्रकाशित की थी ,मूल कविता और भी लम्बी तथा नौ चरणों की है। यह कविता मैंने बतौर प्रयोग प्रकाशित की थी, जानने कि इस प्कार की कविता को कितने पाठक मिल पाते हैं?<BR/>मैंने ईमानदार टिप्पणियों की अपील की थी, उसका अभाव रहा( वैसे तो टिप्पणियों का भी अभाव रहा, शायद छुट्टी का दिन था या॰॰॰॰) अभी कल कुछ उम्मीद है, कविता सृजन में और मेहनत करूँगा। अगली बार से वही परिचित अंदाज॰॰॰॰॰। तब तक शुभ रात्री।देवेश वशिष्ठ ' खबरी 'https://www.blogger.com/profile/03089045465753357873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-73833506265108569762007-05-20T19:51:00.000+05:302007-05-20T19:51:00.000+05:30घुटता हूँ अंदर ही अंदर परन किसी से कह पाता हूँ,अपन...घुटता हूँ अंदर ही अंदर पर<BR/>न किसी से कह पाता हूँ,<BR/>अपने भावों को मैं खुद ही,<BR/>मरहम बनकर सहलाता हूं...<BR/><BR/>बहुत ही सुंदर एहसास है ... <BR/>आपका यहाँ स्वागत है......रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-18766713024591822322007-05-20T19:01:00.000+05:302007-05-20T19:01:00.000+05:30बापरे! कितनी बडी कविता है। माफ करें मै कहने से खु...बापरे! कितनी बडी कविता है। माफ करें मै कहने से खुद को रोक ना पाया। :D आपने जैसी कविता लिखी है मुझे ऐसी कविताएँ बहोत पसंद है। ऐसी कविताँ मै मराठी में लिखता हूँ। <BR/><BR/>आपका हिन्द-युग्म पर इस कविता के साथ जोरदार स्वागत है। आपकी और कविताओं की प्रतिक्षा रहेगी।<BR/><BR/>तुषार जोशी, नागपुरTushar Joshihttps://www.blogger.com/profile/03931011991029693685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29580920569807940572007-05-20T15:59:00.000+05:302007-05-20T15:59:00.000+05:30सुन्दर कविता है।सुन्दर कविता है।आशीष "अंशुमाली"https://www.blogger.com/profile/07525720814604262467noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91337498133030118932007-05-20T15:39:00.000+05:302007-05-20T15:39:00.000+05:30देवेश जी, बहुत अच्छी रचना है,..हमे मालूम था आपमें ...देवेश जी, बहुत अच्छी रचना है,..हमे मालूम था आपमें प्रतिभा छिपी है बस उसे जगाने की आवश्यकता है,..वो काम पिछ्ली बार की टिप्पणीयों ने कर दिया,..बहुत सुंदर और मन को बांधे रखती है आपकी कविता...आपके मन के भावों को उजागर करती है....हम सच्चे दिल से आपका स्वागत करते है,..<BR/><BR/>सुनीता चोटिया(शानू)सुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67259482518836047402007-05-20T14:21:00.000+05:302007-05-20T14:21:00.000+05:30देवेश जी,हिन्द युग्म पर आपका हार्दिक स्वागत है। मै...देवेश जी,<BR/><BR/>हिन्द युग्म पर आपका हार्दिक स्वागत है। मैं आपकी इस बात से पूर्णतया समहत हूँ कि कविता भावों से बनती है। भाव ही कविता का मूल है इसके बगैर तुक और लय व्यर्थ है, मगर यह भी सही है कि लयपूर्ण कविता में भाव ज्यादा खूबसूरत लगते है, मैं राजीवजी से समहत हूँ, इस पर गंभीर चर्चा होती रहेगी। <BR/><BR/>आपकी कुछ पंक्तियाँ जो विशेष तौर पर पसंद आयी -<BR/><BR/><B>"न तुक को, न लय को ले कर <BR/>कविता पढ़ना हे अधीर, <BR/>पढ़ना मेरे मन के पन्ने,<BR/>बहता नीर कहीं पर पीर.."<BR/><BR/>घुटता हूँ अंदर ही अंदर पर <BR/>न किसी से कह पाता हूँ,<BR/>अपने भावों को मैं खुद ही,<BR/>मरहम बनकर सहलाता हूं......।</B><BR/><BR/>- गिरिराज जोशी "कविराज"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-18897031315992114612007-05-20T12:43:00.000+05:302007-05-20T12:43:00.000+05:30घुटता हूँ अंदर ही अंदर पर न किसी से कह पाता हूँ,अप...घुटता हूँ अंदर ही अंदर पर <BR/>न किसी से कह पाता हूँ,<BR/>अपने भावों को मैं खुद ही,<BR/>मरहम बनकर सहलाता हूं......।<BR/><BR/>क्यों विचलित हो क्यों शंकित हो <BR/> तुम कितना अच्छा लिखता हो <BR/> जीवनभावों को सहजता से वर्णित कर<BR/> तुम मन को हर लेते होAdminhttps://www.blogger.com/profile/13066188398781940438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29881747871197478512007-05-20T11:49:00.000+05:302007-05-20T11:49:00.000+05:30देवेश जी,स्वागत है आपका हिन्द युग्म पर। कविता भावो...देवेश जी,<BR/><BR/>स्वागत है आपका हिन्द युग्म पर। कविता भावों से बनती है, अब गद्य और पद्य कविता की परिभाषा निर्धारित नही करते, उसकी भाव प्रबलता और संप्रेषणीयता यह कार्य करती है। आपमे वह संबल और स्तर है। <BR/><BR/>"न तुक को, न लय को ले कर <BR/>कविता पढ़ना हे अधीर, <BR/>पढ़ना मेरे मन के पन्ने,<BR/>बहता नीर कहीं पर पीर.."<BR/><BR/>घुटता हूँ अंदर ही अंदर पर <BR/>न किसी से कह पाता हूँ,<BR/>अपने भावों को मैं खुद ही,<BR/>मरहम बनकर सहलाता हूं......। <BR/><BR/>कविता पर आपका दृष्टिकोण स्वागत योग्य है। इस पर गंभीर चर्चा होती रहेगी। रचना बहुत अच्छी है।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42360054364628686302007-05-20T11:47:00.000+05:302007-05-20T11:47:00.000+05:30सुन्दर रचना है।बधाई।मेरे मन में भीनी बारिश, बाकी म...सुन्दर रचना है।बधाई।<BR/><BR/>मेरे मन में भीनी बारिश, बाकी में केवल पाला।पाले में भी ठंडे का सुखले लेता चलने वाला।।<BR/>चंचल नहीं चपलता का देखोइसमें परिमाण अहो।मरने वाले थकियारे तुमरुको जरा विश्राम करो।।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30456243802527046422007-05-20T11:38:00.000+05:302007-05-20T11:38:00.000+05:30bhut acha arht nikaalti hai aapki byi kavita keep ...bhut acha arht nikaalti hai aapki byi kavita keep it up?viki....................https://www.blogger.com/profile/15656757267998829585noreply@blogger.com