tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post3416199541805476182..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: एकलव्यशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77594185570944551262007-09-29T16:57:00.000+05:302007-09-29T16:57:00.000+05:30शब्द-संचयन बढ़िया है, लेकिन कविता ने मुझे प्रभावित...शब्द-संचयन बढ़िया है, लेकिन कविता ने मुझे प्रभावित नहीं किया।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59059733929854288592007-09-27T15:25:00.000+05:302007-09-27T15:25:00.000+05:30श्रीकान्त जीआप बहुत ही सशक्त वाणी के कवि हैं । एक-...श्रीकान्त जी<BR/>आप बहुत ही सशक्त वाणी के कवि हैं । एक-एक शब्द सधा हुआ और सार्थक । एकलव्य ही की तो<BR/>आवश्यकता है । द्रोण तो मिल ही जाएँगें । विशेष रूप से निम्न पंक्तियाँ पसन्द आईं -<BR/>है चाह नहीं देव ! <BR/>अर्जुन की धनुर्धरता ,<BR/>एकलव्य ही संतुष्ट मैं <BR/>बस शिष्य स्वीकारो।<BR/>बहुत-बहुत बधाई ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9876901984922939612007-09-27T13:43:00.000+05:302007-09-27T13:43:00.000+05:30अच्छी रचना है श्रीकांत जीअच्छी रचना है श्रीकांत जीSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1078250330193730292007-09-27T10:15:00.000+05:302007-09-27T10:15:00.000+05:30श्रीकांत जी,रचना सुन्दर... प्रश्न नहीं मेरे लियेबस...श्रीकांत जी,<BR/><BR/>रचना सुन्दर... <BR/><BR/>प्रश्न नहीं मेरे लिये<BR/>बस एक अंगूठा ,<BR/>कर लिये कृपाण हूँ<BR/>लो हाथ स्वीकारो।<BR/><BR/>एकलव्य आज ' कान्त'<BR/>उर में धधकता लावा<BR/>असहाय ' युग एकलव्य' को<BR/>इस बार उबारो। <BR/><BR/><BR/>भाव सुंदर ....गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-72381781346571549982007-09-27T08:45:00.000+05:302007-09-27T08:45:00.000+05:30बहुत ही सुंदर लगी आपकी यह रचना श्रीकांत जी भाव बहु...बहुत ही सुंदर लगी आपकी यह रचना श्रीकांत जी <BR/>भाव बहुत सही और सुंदर लगे इस के ...<BR/><BR/>उर ज्वाल नहीं संभलती<BR/>गुरुवर ! शरण में लो<BR/>मम् शीष भी है समर्पित<BR/>चरणों में बिठा लो।रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29306938756121137322007-09-27T08:05:00.000+05:302007-09-27T08:05:00.000+05:30आदरणीय श्रीकांत जी,एकलव्य को द्रोण कभी नहीं मिले। ...आदरणीय श्रीकांत जी,<BR/><BR/><BR/>एकलव्य को द्रोण कभी नहीं मिले। और फिर एकलव्य ही द्रोण से अधिक विशाल हो कर इतिहास पर बिना अंगूठे का एसा हस्ताक्षर कर गये जो आज भी युग-पथप्रदर्शक है। <BR/><BR/>एकलव्य आज ' कान्त'<BR/>उर में धधकता लावा<BR/>असहाय ' युग एकलव्य' को<BR/>इस बार उबारो। <BR/><BR/>आपके भीतर के एकलव्य को सादर नमन।<BR/><BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-56571884300148933722007-09-26T20:38:00.000+05:302007-09-26T20:38:00.000+05:30श्रीकांत जी,सुन्दर रचना!!प्रश्न नहीं मेरे लियेबस ए...श्रीकांत जी,<BR/>सुन्दर रचना!!<BR/><BR/>प्रश्न नहीं मेरे लिये<BR/>बस एक अंगूठा ,<BR/>कर लिये कृपाण हूँ<BR/>लो हाथ स्वीकारो।<BR/><BR/>एकलव्य आज ' कान्त'<BR/>उर में धधकता लावा<BR/>असहाय ' युग एकलव्य' को<BR/>इस बार उबारो। <BR/><BR/>ये भाव पसंद आए।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.com