tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post3233047337131338106..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: आँखों में अटका था बस एक ही सपनाशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-22444232185875903072010-03-25T20:07:34.107+05:302010-03-25T20:07:34.107+05:30Wah..bibyojna kamaal ki hai..badhai...kaviyatri si...Wah..bibyojna kamaal ki hai..badhai...kaviyatri sirf khab nahi dekhti..woh zameenee samvedanaon se avibhoot kar jati hai...aisee kavitayein padh kar deer tak chup-chaap rahne ko man karta hai...wah wah....Safarchandhttps://www.blogger.com/profile/15362905291830639168noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49644509353471803412010-03-25T19:39:00.534+05:302010-03-25T19:39:00.534+05:30aap sabhi ka kavita pasand karne ke liye aur apne ...aap sabhi ka kavita pasand karne ke liye aur apne vichar likhne ke liye bahut bahut dhnyavad.aasha hai aap ke amulya sneh shabd yun hi milte rahenge<br />dhnyavad<br />rachanarachananoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35349473107241024802010-03-24T19:42:48.849+05:302010-03-24T19:42:48.849+05:30कविता में मेरी ही बात है एक एक पंक्तियों से स्वयं ...कविता में मेरी ही बात है एक एक पंक्तियों से स्वयं को जोड़ता हूँ .<br />बधाई<br />शिप्राshipranoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-19725576893011780322010-03-24T01:55:02.171+05:302010-03-24T01:55:02.171+05:30रचना,
अभी तक
छलछला गईं हैं आँखें
डबडबा गईं हैं आँ...रचना,<br />अभी तक <br />छलछला गईं हैं आँखें<br />डबडबा गईं हैं आँखें<br />टूटे सपनों की वेदना से<br />मिल आईं हैं आँखें <br />एक नहीं हजारॊं सपनों की<br />टूटी देहरी से झाँक आईं हैं यह आँखे<br />सच मुच रुला दिया है आपने। माँ बाप का नि:स्वार्थ प्रेम और त्याग मूर्त्त हो गया इस रचना में। बधाई आपको।शशि पाधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55743287831850732092010-03-23T23:32:19.568+05:302010-03-23T23:32:19.568+05:30तागी थी जिस धागे से रजाई
उनकी उम्र पूरी हुई
रुई ...तागी थी जिस धागे से रजाई <br />उनकी उम्र पूरी हुई <br />रुई भी खिसक के किनारे हुई <br />ठंडी रजाई में सिकुड़ता रहा <br />कि गर्मी तुझ तक पहुँचती रहे <br /><br /> कविता पढ़ते ही मन उन्ही दिनों में चला गया मम्मी पापा के सब त्याग जैसे आपकी कविता मैं सॅंजो गये हों आपकी कविता पढ़ते पढ़ते एक फिल्म सी बन जाती है आँखों के सामने और मैं डूब जाती हूँ उसमे ऐसे ही लिखती रहिएamitanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-154857205297329462010-03-22T18:54:17.384+05:302010-03-22T18:54:17.384+05:30कविता में कितनी वास्विकता है मेरे दिल के बहुत करीब...कविता में कितनी वास्विकता है मेरे दिल के बहुत करीब से गुजरी है ये कविता .<br />लेखिका को बधाई<br />नेहाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-83456531964649939282010-03-20T12:49:41.120+05:302010-03-20T12:49:41.120+05:30वास्तविकता का सजीव चित्रण किया है,
बहुत मार्मिक भा...वास्तविकता का सजीव चित्रण किया है,<br />बहुत मार्मिक भाव,अच्छी रचना ,<br />बधाई!neeti sagarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-84404306325259244972010-03-20T07:43:31.944+05:302010-03-20T07:43:31.944+05:30रचना कल ही पढ़ ली थी..
मगर कमेन्ट देने के बजाय ...रचना कल ही पढ़ ली थी..<br /><br />मगर कमेन्ट देने के बजाय मन चकती लगी कमीज ..और कपडे से बंधी सायकल कि गद्दी पर बरसों पीछे चला गया....<br />चप्पल तो खैर ...अब भी मोची से सिली जाती है...<br /><br /><br />फिर पिता कि ओढी वो रजाइयां भी याद आने लगीं...जिनकी रूई...एकदम ...<br />जैसे आपने कविता में ज़िक्र किया है.......<br /><br />फिर लगा..कमेंट देने से पहले ये जरूरी है...<br /><br />कि एक नज़र खुद अपने घर पर ही डाल ली जाए...<br /><br /><br /><br /><br />आगे कुछ ना कहा जाएगा रचना जी..manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-73047612758897819272010-03-19T21:06:15.011+05:302010-03-19T21:06:15.011+05:30मार्मिक दृश्यों की गांठ खोल दी, आंसू छलक उठेमार्मिक दृश्यों की गांठ खोल दी, आंसू छलक उठेरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35185063164117704912010-03-19T20:49:16.963+05:302010-03-19T20:49:16.963+05:30रचना जी की यह मार्मिक रचना मन को छू गयी. रचना क्या...रचना जी की यह मार्मिक रचना मन को छू गयी. रचना क्या है जीवन के करुण बिम्ब-चित्र है सामने ला दिए गए hain..बच्चों के सुनहले भविष्य के लिए अपने अरमानों को तिलांजलि देनेवाले माता-पिता को सफलता की सीढियों पर चढ़ चुके बच्चों के पराया होते जाने से जो अंतर्वेदना होती है उसका बड़ा ही सधा और मर्मस्पर्शी अंकन किया है रचना जी ने. मेरी तरफ से उन्हें ढेर सारी बधाई और भविष्य में ऐसी ही सुंदर रचनाओं की उनसे उम्मीद रहेगी.KESHVENDRA IAShttps://www.blogger.com/profile/08624176577796237545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85030708227856483302010-03-19T20:24:50.801+05:302010-03-19T20:24:50.801+05:30जब भी जला चूल्हा
तेरी ही ख्वाहिशें पकीं ......
पं...जब भी जला चूल्हा <br />तेरी ही ख्वाहिशें पकीं ......<br />पंख लगे और तू उड़ने लगा <br />ऊँचा उठा तो <br />ये न देखा <br />कि तेरे पैर उनके कन्धों पर हैं <br />उनके चाल की सीवन उधड गई <br />तेरी रफ़्तार बढती रही....<br />अत्यंत मार्मिक चित्रण। अच्छी कविता।Bhawnahttps://www.blogger.com/profile/10847980130872580117noreply@blogger.com