tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2951809562323878563..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: क्षणिकायेंशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-75063872811305054302007-12-04T19:00:00.000+05:302007-12-04T19:00:00.000+05:30लोग नाराज़ हैंकि तुम्हें पूज़ता हूँ मैंमैं तो कुछ नह...लोग नाराज़ हैं<BR/>कि तुम्हें पूज़ता हूँ मैं<BR/>मैं तो कुछ नहीं कह्ता<BR/>ज़ब वे पत्थर पूजते हैं<BR/><BR/>आलोक जी<BR/>ये क्षणिकाएँ हैं? नहीं कालजयी रचनाएँ हैं. कमाल का लेखन.<BR/>बधाई इन शब्दों के चयन और भावों के लिए.<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59645722084677478802007-12-04T13:23:00.000+05:302007-12-04T13:23:00.000+05:30तुम सोचते होअच्छा नचाते होकठपुतलियों को-अपने बदन क...तुम सोचते हो<BR/>अच्छा नचाते हो<BR/>कठपुतलियों को-<BR/>अपने बदन के धागे<BR/>तुम्हें नहीं दीखते ?<BR/>बहुत खूब -यह पंक्तियाँ खूब कही आपने!!!!!!वाह वाह-!<BR/>-अलोक शंकर जी सारी क्षणिकायें पसंद आयींAlpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-88061838544586894602007-12-03T17:11:00.000+05:302007-12-03T17:11:00.000+05:30जबरदस्त लिखा है.....कायल हो गयाजबरदस्त लिखा है.....<BR/>कायल हो गयाभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-10829097322005057492007-12-03T16:59:00.000+05:302007-12-03T16:59:00.000+05:30bahut badhiya!bahut badhiya!jjhttps://www.blogger.com/profile/06410327105537336005noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17474402205611248282007-12-03T13:00:00.000+05:302007-12-03T13:00:00.000+05:30पत्थरों के दिल नहीं,उनके चेहरे सपाट हैंतुम्हारा तो...पत्थरों के दिल नहीं,<BR/>उनके चेहरे सपाट हैं<BR/>तुम्हारा तो दिल है ?<BR/><BR/>कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।<BR/><BR/>KYA BAAT KAHI HAI......ASAADHARAN TAREEKE SEAnupamahttps://www.blogger.com/profile/12917377161456641316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-4352984232916803092007-12-03T10:09:00.000+05:302007-12-03T10:09:00.000+05:30आलोक जी!अब भी तारीफ़ करनी होगी क्या :)सब कुछ तो भाई...आलोक जी!<BR/>अब भी तारीफ़ करनी होगी क्या :)<BR/>सब कुछ तो भाई लोग पहले ही कह चुके. अब सिर्फ़ बधाई स्वीकार करें.SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31124363224217556472007-12-03T10:00:00.000+05:302007-12-03T10:00:00.000+05:30आलोक जी,आपके इस गहरे प्रशंसक को आपकी रचनाओं की प्र...आलोक जी,<BR/>आपके इस गहरे प्रशंसक को आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहती है। आपकी क्षणिकायें पहली बार पढी किंतु इनकी गहरायी और आपके विषय चयन की प्रशंसा करने को बाध्य हूँ।<BR/><BR/>क्षुब्ध हो तुम,<BR/>ये पौधे बोलते क्यों हैं ?<BR/>क्यों चलते, झगड़ते , खड़े हैं<BR/>तुम्हारे विरूद्ध ?<BR/>बीज तो तुमने ही बोया था ।<BR/><BR/>तुम सोचते हो<BR/>अच्छा नचाते हो<BR/>कठपुतलियों को-<BR/>अपने बदन के धागे<BR/>तुम्हें नहीं दीखते ?<BR/><BR/><BR/>कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-56202432070287937292007-12-02T19:53:00.000+05:302007-12-02T19:53:00.000+05:30bahoot khoob wakai alok jee kam shabdon me jo kama...bahoot khoob wakai alok jee kam shabdon me jo kamal kshannikayein khojatee hain wo kamal har kshannika me maujud hai !!!अभिषेक पाटनीhttps://www.blogger.com/profile/10218693023761216554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-16891803712324964222007-12-02T12:24:00.000+05:302007-12-02T12:24:00.000+05:30कहते हैं , दीवारों के कान हैंकभी तन्हा रहोतो पता च...कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।---<BR/><BR/><BR/>अरे यार मन की बात कही है.<BR/>बहुत सुंदर .<BR/><BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-32157654363313442782007-12-01T23:07:00.000+05:302007-12-01T23:07:00.000+05:30तुम सोचते होअच्छा नचाते होकठपुतलियों को-अपने बदन क...तुम सोचते हो<BR/>अच्छा नचाते हो<BR/>कठपुतलियों को-<BR/>अपने बदन के धागे<BR/>तुम्हें नहीं दीखते ?<BR/><BR/>-----<BR/><BR/>पत्थरों के दिल नहीं,<BR/>उनके चेहरे सपाट हैं<BR/>तुम्हारा तो दिल है ?<BR/><BR/>-----<BR/><BR/>कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।<BR/><BR/>दिल को छूनेवाली पंक्तियाँ...बहुत खूब <BR/><BR/>सुनीता यादवDr. sunita yadavhttps://www.blogger.com/profile/00087805599431710687noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41559904186037205852007-12-01T22:47:00.000+05:302007-12-01T22:47:00.000+05:30बहुत अच्छा अलोक जीये पंक्तिया बहुत पसंद आई....कहते...बहुत अच्छा अलोक जी<BR/>ये पंक्तिया बहुत पसंद आई....<BR/><BR/>कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।<BR/><BR/>बधाईShailesh Jamlokihttps://www.blogger.com/profile/17057836670556828623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41928315898227452012007-12-01T22:29:00.000+05:302007-12-01T22:29:00.000+05:30आलोकजी,क्षुब्ध हो तुम,ये पौधे बोलते क्यों हैं ?क्य...आलोकजी,<BR/><BR/><BR/>क्षुब्ध हो तुम,<BR/>ये पौधे बोलते क्यों हैं ?<BR/>क्यों चलते, झगड़ते , खड़े हैं<BR/>तुम्हारे विरूद्ध ?<BR/>बीज तो तुमने ही बोया था ।<BR/><BR/>--<BR/>वाह, गागर में सागर भर दिया !<BR/>बधाई स्वीकारें.दिवाकर मणिhttps://www.blogger.com/profile/03148232864896422250noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55125551517759252492007-12-01T20:52:00.000+05:302007-12-01T20:52:00.000+05:30लोग नाराज़ हैंकि तुम्हें पूज़ता हूँ मैंमैं तो कुछ नह...लोग नाराज़ हैं<BR/>कि तुम्हें पूज़ता हूँ मैं<BR/>मैं तो कुछ नहीं कह्ता<BR/>ज़ब वे पत्थर पूजते हैं ।<BR/><BR/>अपने बदन के धागे<BR/>तुम्हें नहीं दीखते ?<BR/><BR/>तुम्हारा तो दिल है ?<BR/><BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।<BR/><BR/>बहुत हीं खूबसूरत एवं सधी हुई क्षणिकाएँ हैं आलोक जी। बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14221250581962063022007-12-01T20:49:00.000+05:302007-12-01T20:49:00.000+05:30"तुम सोचते होअच्छा नचाते होकठपुतलियों को-अपने बदन ..."तुम सोचते हो<BR/>अच्छा नचाते हो<BR/>कठपुतलियों को-<BR/>अपने बदन के धागे<BR/>तुम्हें नहीं दीखते ?"<BR/><BR/>"कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।"<BR/><BR/>आह-वाह.......क्या बात है.....क्षणिकाएँ लाजवाब बन पड़ी हैं........आपने भी खूब हाथ आजमाया.....<BR/><BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40447024186108203632007-12-01T19:42:00.000+05:302007-12-01T19:42:00.000+05:30बहुत सुंदर और बहुत ही दिल को छु लेने वाली क्षणिक...बहुत सुंदर और बहुत ही दिल को छु लेने वाली क्षणिकायें है आपकी आलोक जी ...वैसे तो सब एक से बढ़ के एक हैं मुझे यह बेहद पसन्द आयीं <BR/><BR/>तुम सोचते हो<BR/>अच्छा नचाते हो<BR/>कठपुतलियों को-<BR/>अपने बदन के धागे<BR/>तुम्हें नहीं दीखते ?<BR/>*****<BR/><BR/>कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका दिल भी है ।<BR/><BR/>बहुत पसंद आई।रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-53682097993966790872007-12-01T19:22:00.000+05:302007-12-01T19:22:00.000+05:30आलोक शंकर जी का क्षणिकाओं में प्रवेश दमदार है। मुझ...आलोक शंकर जी का क्षणिकाओं में प्रवेश दमदार है। मुझे कठपुतली वाली बहुत पसंद आई।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-69521133575554016212007-12-01T17:12:00.000+05:302007-12-01T17:12:00.000+05:30अलोक जीभुत सुंदर लिखा है. लोग नाराज़ हैंकि तुम्हें ...अलोक जी<BR/>भुत सुंदर लिखा है. <BR/>लोग नाराज़ हैं<BR/>कि तुम्हें पूज़ता हूँ मैं<BR/>मैं तो कुछ नहीं कह्ता<BR/>ज़ब वे पत्थर पूजते हैं ।<BR/><BR/>पत्थरों के दिल नहीं,<BR/>उनके चेहरे सपाट हैं<BR/>तुम्हारा तो दिल है ?<BR/>grt linesशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-54133047912226364142007-12-01T16:44:00.000+05:302007-12-01T16:44:00.000+05:30सर जी, इन्हें आप क्षणिकाएँ क्यों कहते हैं ? अपने अ...सर जी, इन्हें आप क्षणिकाएँ क्यों कहते हैं ? अपने अन्दर जो एक काल छिपाए बैठी हैं ...... बहुत गंभीर, बहुत सहज. क्षणिकाएँ थीं या क्या था ... फिर कभी सोचूँगा .. फिलहाल तो इन ने क्षण भर में आप का कायल कर दिया.अमिताभ मीतhttps://www.blogger.com/profile/06968972033134794094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-44684593099632401882007-12-01T16:33:00.000+05:302007-12-01T16:33:00.000+05:30लोग नाराज़ हैंकि तुम्हें पूज़ता हूँ मैंमैं तो कुछ नह...लोग नाराज़ हैं<BR/>कि तुम्हें पूज़ता हूँ मैं<BR/>मैं तो कुछ नहीं कह्ता<BR/>ज़ब वे पत्थर पूजते हैं ।<BR/><BR/>पत्थरों के दिल नहीं,<BR/>उनके चेहरे सपाट हैं<BR/>तुम्हारा तो दिल है ?<BR/><BR/>ये कुछ अधिक पसन्द आई। वैसे हर एक क्षणिका लाज़वाब है आलोक जी।<BR/>आपकी अगली क्षणिकाओं की प्रतीक्षा रहेगी।गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-16259768136607804912007-12-01T16:08:00.000+05:302007-12-01T16:08:00.000+05:30..........इन्हें क्षणिकायें बस आकार के आधार पर ही .............इन्हें क्षणिकायें बस आकार के आधार पर ही कह सकते हैं पर मेरे लिये गम्भीर और सुर्दीघ प्रभावकारीAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63382556571970553902007-12-01T14:22:00.000+05:302007-12-01T14:22:00.000+05:30कहते हैं , दीवारों के कान हैंकभी तन्हा रहोतो पता च...कहते हैं , दीवारों के कान हैं<BR/>कभी तन्हा रहो<BR/>तो पता चले<BR/>उनका भी दिल है ।<BR/>अलोक जी आपकी रचनाओं का हमेशा ही कायल रहा हूँ, और तो आपने इतनी सुंदर क्षणिकाएँ देकर मन खुश कर दिया सब एक से बढ़कर एक हैं बधाईSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com