tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2858501169747811149..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: तुम्हारी मर्ज़ीशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48948494827068544652007-02-15T20:10:00.000+05:302007-02-15T20:10:00.000+05:30बहुत सुंदर , बधाई- आलोक शंकरबहुत सुंदर , बधाई<BR/>- आलोक शंकरAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-4462583544434116502007-02-15T20:09:00.000+05:302007-02-15T20:09:00.000+05:30बहुत सुन्दर , बधाईबहुत सुन्दर , बधाईAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13477212792792931792007-02-15T13:17:00.000+05:302007-02-15T13:17:00.000+05:30कुछ कविताएं बरबस दिल को छू जाती हैं। पंकज जी की कव...कुछ कविताएं बरबस दिल को छू जाती हैं। पंकज जी की कविता भी इन्हीं में से एक है। शब्दों की सादगी और लयबद्धता भावनाओं की सघनता से मिलकर हृदय को भीतर तक मानो आंदोलित कर देती है। <BR/><BR/>वो देखना तेरा मुझको थमकर,<BR/>कि मैंने देखा कई दफ़ा है।<BR/>न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,<BR/>मुझे लगा तुमने था पुकारा।।<BR/><BR/>ऐसा लगता है जैसे सब कुछ सामने प्रत्यक्ष घटित हो रहा हो। शब्दों तथा बिम्बों की सरलता कविता का सबसे सुंदर पक्ष है। इसके लिये पंकज जी को साधुवाद।SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3040750264044437002007-02-14T19:24:00.000+05:302007-02-14T19:24:00.000+05:30पंकजजी,प्यार के इस पर्व पर आपकी यह कविता और भी ज्य...पंकजजी,<BR/><BR/>प्यार के इस पर्व पर आपकी यह कविता और भी ज्यादा असरकारक लग रही है, आपने इतनी आसानी से मनोभावों को प्रेम-गीत में बदल दिया है कि आज तो बस इसे गुनगुनाते रहें।<BR/><BR/><B>वो देखना तेरा मुझको थमकर,<BR/>कि मैंने देखा कई दफ़ा है।<BR/>न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,<BR/>मुझे लगा तुमने था पुकारा।।<BR/>.<BR/>.<BR/>.<BR/>बता दो मुझको तुम आज आकर,<BR/>कि रिश्ता क्या है मेरा तुम्हारा।<BR/>मेरा तो दिल है तेरी अमानत,<BR/>क्या तेरा भी दिल है अब हमारा।।</B><BR/><BR/>बहुत ही सुन्दर कृति. बधाई स्वीकार करें।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58386446390853350752007-02-14T17:00:00.000+05:302007-02-14T17:00:00.000+05:30पंकज जी आप अनुपम गीतकार हैं| जो पंक्तियाँ मैनें सर...पंकज जी आप अनुपम गीतकार हैं| जो पंक्तियाँ मैनें सर्वाधिक पसंद की वे हैं:<BR/><BR/><BR/>वो देखना तेरा मुझको थमकर,<BR/>कि मैंने देखा कई दफ़ा है।<BR/>न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,<BR/>मुझे लगा तुमने था पुकारा।।<BR/><BR/>बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिये|राजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35609419310711907492007-02-14T15:23:00.000+05:302007-02-14T15:23:00.000+05:30man ko gudgudati ek saral,sundar prastuti....वो दे...man ko gudgudati ek saral,sundar prastuti....<BR/><BR/>वो देखना तेरा मुझको थमकर,<BR/>कि मैंने देखा कई दफ़ा है।<BR/>न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,<BR/>मुझे लगा तुमने था पुकारा।।<BR/><BR/><BR/>bahut pasand aai...bhadhaai ho aapkoAnupamahttps://www.blogger.com/profile/12917377161456641316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-81498477864700849662007-02-14T15:04:00.000+05:302007-02-14T15:04:00.000+05:30वैलेंटाइन दिवस के अवसर पर प्रेम के भाव जगाती एक अच...वैलेंटाइन दिवस के अवसर पर प्रेम के भाव जगाती एक अच्छी कविता।विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41790279585926314272007-02-14T15:02:00.000+05:302007-02-14T15:02:00.000+05:30वो देखना तेरा मुझको थमकर,कि मैंने देखा कई दफ़ा है।...वो देखना तेरा मुझको थमकर,<BR/>कि मैंने देखा कई दफ़ा है।<BR/>न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,<BR/>मुझे लगा तुमने था पुकारा।।<BR/>.<BR/>..<BR/>.<BR/>बहुत सुन्दर लिखा है पंकज जी<BR/>बहुत बहुत बधाईGaurav Shuklahttps://www.blogger.com/profile/12422162471969001645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-52223847767288355102007-02-14T12:30:00.000+05:302007-02-14T12:30:00.000+05:30बता दो मुझको तुम आज आकर,कि रिश्ता क्या है मेरा तुम...बता दो मुझको तुम आज आकर,<BR/>कि रिश्ता क्या है मेरा तुम्हारा।<BR/>मेरा तो दिल है तेरी अमानत,<BR/>क्या तेरा भी दिल है अब हमारा।।<BR/><BR/>BAHUT HI GEHARA BHAAV LIYE HAIN YAH PANKITYAAN ...<BR/><BR/>गुजार लेते हैं बिन तेरे भी,<BR/>हज़ारों लम्हों को बेख़ुदी में।<BR/>नज़र-नज़र में तुम्हीं बसी हो,<BR/>है लाज़मी अब तेरा नज़ारा।।<BR/><BR/>J0 BAS GAYA IS DIL MEIN AB USKE SIVA NAZAR BHI KYA AAYEGA ....रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14076046866213691682007-02-14T06:17:00.000+05:302007-02-14T06:17:00.000+05:30"स वै नैव रैमे । तस्मादेकाकी न रमते । स द्वितीयमैच..."स वै नैव रैमे । तस्मादेकाकी न रमते । स द्वितीयमैच्छत । (निश्चय ही वही रमा नही । इसलिये एकाकी रमता नहीं । उसने दूसरे की इच्छा की।)- वृहदारण्यकोपनिषद " ...से लेकर "तुम्हारे सिवा कुछ ना चाहत करेंगे, कि जब तक जियेंगे मोहोब्बत करेंगे"..के जमाने तक और निसन्देह आने वाले हजारों सालों तक, हर क्षण, कहीं ना कहीं, कोई ना कोई ऎसा जरूर होगा जो कुछ ना कुछ पंकज जी की इस कविता सा लिख रहा हो । प्रलय(कयामत) का दिन(रात) होगा(होगी) जब भी ऐसा लिखना बंद हो जायेगा ।<BR/> तो कहना बस इतना है कि, इतनी चालू सी भावना जो एक खास उम्र के बाद, धरती के आधे भाग की बाकी आधे भाग के लिये खुद ब खुद हो ही जाती है, उस पर कुछ नया ढूंढना अप्राक्रतिक सा है ।<BR/> बेहद चालू ढंग से सिर्फ़ १२ पंक्तियों मे(अंतिम चार दुहराव की मारी), उल्फ़त मे बेकरारी, अपना स्वाभिमान...<BR/>"बता दो मुझको तुम आज आकर,<BR/>कि रिश्ता क्या है मेरा तुम्हारा। "<BR/> और अपनी 'उसे' इतनी स्वतन्त्रता की <BR/>"तुम्हारी मर्ज़ी है साथ आओ,<BR/>तुम्हारी मर्ज़ी करो किनारा।। ".....और यही तक ही नहीं एक नैसर्गिक सा अबोध प्रश्न..<BR/>"बता दो मुझको तुम आज आकर,<BR/>कि रिश्ता क्या है मेरा तुम्हारा।<BR/>मेरा तो दिल है तेरी अमानत,<BR/>क्या तेरा भी दिल है अब हमारा।।"<BR/> अर्थात....आज वलेन्टाइन दिवस के पावन अवसर पर हे कमलनयनी, मैं जो तुम्हारी अनुपस्थिति मे काटे गये उन हजारों युगों लम्बे क्षणों का साक्षी हूं, जो तुम्हे मेरी चिपकू टाइप नजरों पर तुम्हारी क्रोधसिक्त दृष्टि को भी प्रेम ही मानता आया हूं, आज खुल कर कह रहा हूं, मर्जी है चाहो किनारा कर लो..पर प्रेम है तुम्ही से..मेरी जां तुम्ही से...मैंने तो अपने हृदय की यथास्थिति यथावत रख दी है, आप से भी यही आशा है... :)<BR/> पंकज जी उपर जो भी लिखा है वो, बस आज के तथाकथित प्रेम दिवस के अवसर पर प्रज्जवलित अग्नि मे आपकी कविता के घी के बाद उठती लपटें हैं ....बस ।<BR/> कविता के लिये बधायी...Upasthithttps://www.blogger.com/profile/14139346378568249916noreply@blogger.com