tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2573741868429876758..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: लहू सभी का है जब एक तो ये मज़हब क्याशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9480222204339586952008-09-24T22:02:00.000+05:302008-09-24T22:02:00.000+05:30achha laga padhkar.ALOK SINGH "SAHIL"achha laga padhkar.<BR/>ALOK SINGH "SAHIL"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9546081723342361252008-09-24T00:51:00.000+05:302008-09-24T00:51:00.000+05:30दिल को छूती चन्द लाइने जिनको पढ कर सुकून मिलावीनस ...दिल को छूती चन्द लाइने जिनको पढ कर सुकून मिला<BR/><BR/>वीनस केसरीवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-27387205050394864412008-09-23T23:45:00.000+05:302008-09-23T23:45:00.000+05:30निखिल जी के विश्लेषण मैं भी इत्तेफाक रखता हूँ। फिर...निखिल जी के विश्लेषण मैं भी इत्तेफाक रखता हूँ। <BR/><BR/>फिर भी मुझे ग़ज़ल काफी पसंद आई। अच्छी बात यह है कि आपके शे'रों में इतिहास और वर्तमान दोनों दिखता है। आपका पका हुआ अनुभव हम तक मिसरों के माध्यम से पहुँचता है।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-72460061865668770552008-09-23T23:37:00.000+05:302008-09-23T23:37:00.000+05:30जो शे’र सबसे ज्यादा पसंद आया:लहू सभी का है जब एक त...जो शे’र सबसे ज्यादा पसंद आया:<BR/><BR/>लहू सभी का है जब एक तो ये मज़हब क्या<BR/>इसेक बात पे मैं अज़ल से ही हैराँ हूँ ...<BR/><BR/>धन्यवादतपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-44789364771686462362008-09-23T19:13:00.000+05:302008-09-23T19:13:00.000+05:30मुझे तो बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल सादररचनामुझे तो बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल <BR/>सादर<BR/>रचनाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26498536493376814162008-09-23T15:23:00.001+05:302008-09-23T15:23:00.001+05:30क्यों अपने शहर के माहौल से हिरासाँ हूँ ख़ुद अपने स...क्यों अपने शहर के माहौल से हिरासाँ हूँ <BR/>ख़ुद अपने साए से लोगो रहा पशेमाँ हूँ <BR/><BR/>कहीं पे कोई ठिकाना नहीं मिला मुझ को<BR/>सबब ये कह रहे हैं सब कि मैं मुसलमाँ हूँ <BR/>ये बहुत ही नायाब पंक्तियाँ हैं....आज के समय की त्रासदी...<BR/><BR/>जवाब जिन के न दे पाये हैं मसीहा भी <BR/>उन्हीं सवालों से अक्सर रहा गुरेज़ाँ हूँ <BR/>एक बेहद ज्वलंत सवाल वाले शेर के बाद इस शेर से बचा जा सकता था..इसके बगैर भी पूरी रचना मुकम्मल होती....<BR/><BR/>शह्र में घूमना फिरना है मेरी फितरत पर <BR/>यूँ अपने आप में चलता हुआ सा ज़िन्दाँ हूँ <BR/>पहले शेर के आस-पास इसके भी मायने घूम रहे हैं....<BR/> <BR/>हरेक शख्स के मज़हब से यूँ तो उल्फत है <BR/>ये कह रहे हैं खिरदमंद बहुत नादाँ हूँ <BR/><BR/>धुआँ ये नफरतों का ता-फलक पहुँचता देख <BR/>मैं अपनी आंखों से किस कद्र तो परेशाँ हूँ <BR/>ये पहला शेर होता तो क्या बात होती...फ़िर शायद शेर न. ३/४ से मुक्ति मिल जाती....<BR/><BR/>लहू सभी का है जब एक तो ये मज़हब क्या<BR/>इसेक बात पे मैं अज़ल से ही हैराँ हूँ <BR/><BR/>खलल में डाल दी जिस ने तेरी इबादत तक <BR/>मुझे लगा है मसीहा कि मैं वो शैताँ हूँ<BR/><BR/>आख़िर में प्रेम जी फ़िर निखर आए हैं....<BR/><BR/>सादर,<BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55612721258992263982008-09-23T15:23:00.000+05:302008-09-23T15:23:00.000+05:30क्यों अपने शहर के माहौल से हिरासाँ हूँ ख़ुद अपने स...क्यों अपने शहर के माहौल से हिरासाँ हूँ <BR/>ख़ुद अपने साए से लोगो रहा पशेमाँ हूँ <BR/><BR/>कहीं पे कोई ठिकाना नहीं मिला मुझ को<BR/>सबब ये कह रहे हैं सब कि मैं मुसलमाँ हूँ <BR/>ये बहुत ही नायाब पंक्तियाँ हैं....आज के समय की त्रासदी...<BR/><BR/>जवाब जिन के न दे पाये हैं मसीहा भी <BR/>उन्हीं सवालों से अक्सर रहा गुरेज़ाँ हूँ <BR/>एक बेहद ज्वलंत सवाल वाले शेर के बाद इस शेर से बचा जा सकता था..इसके बगैर भी पूरी रचना मुकम्मल होती....<BR/><BR/>शह्र में घूमना फिरना है मेरी फितरत पर <BR/>यूँ अपने आप में चलता हुआ सा ज़िन्दाँ हूँ <BR/>पहले शेर के आस-पास इसके भी मायने घूम रहे हैं....<BR/> <BR/>हरेक शख्स के मज़हब से यूँ तो उल्फत है <BR/>ये कह रहे हैं खिरदमंद बहुत नादाँ हूँ <BR/><BR/>धुआँ ये नफरतों का ता-फलक पहुँचता देख <BR/>मैं अपनी आंखों से किस कद्र तो परेशाँ हूँ <BR/>ये पहला शेर होता तो क्या बात होती...फ़िर शायद शेर न. ३/४ से मुक्ति मिल जाती....<BR/><BR/>लहू सभी का है जब एक तो ये मज़हब क्या<BR/>इसेक बात पे मैं अज़ल से ही हैराँ हूँ <BR/><BR/>खलल में डाल दी जिस ने तेरी इबादत तक <BR/>मुझे लगा है मसीहा कि मैं वो शैताँ हूँ<BR/><BR/>आख़िर में प्रेम जी फ़िर निखर आए हैं....<BR/><BR/>सादर,<BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-60339567813896674922008-09-23T13:51:00.000+05:302008-09-23T13:51:00.000+05:30@गुमनाम(anonymous) जी, यदि आपको किसी की कमी निकालन...@गुमनाम(anonymous) जी, यदि आपको किसी की कमी निकालनी है तो सामने आकर निकालिये इस तरह छुप कर किसी को बुरा भला कहना अच्छी बात नही होती....<BR/><BR/>सुमित भारद्वाजUnknownhttps://www.blogger.com/profile/15870115832539405073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-52092014230230668632008-09-23T13:50:00.000+05:302008-09-23T13:50:00.000+05:30सहजवाला जी,गजल मे शब्दो का चयन बहुत ही अच्छा है, य...सहजवाला जी,<BR/>गजल मे शब्दो का चयन बहुत ही अच्छा है, यह काफिया "आँ" निभाना बहुत मुशकिल होता है, आपने अच्छी तरह निभाया है<BR/>लेकिन आपकी इस गजल मे मुझे कुछ कम प्रभाव लग रहा हैUnknownhttps://www.blogger.com/profile/15870115832539405073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40986946201322410642008-09-23T12:00:00.000+05:302008-09-23T12:00:00.000+05:30जल्दी में लिखी गई ग़ज़ल है....दो-तीन शेरों के मायने ...जल्दी में लिखी गई ग़ज़ल है....दो-तीन शेरों के मायने बिल्कुल एक-से हैं.....<BR/>फ़िर भी शिल्प और शब्द-चयन में आपका कोई जवाब नहीं....<BR/>निखिलNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-24909790411018676832008-09-23T11:13:00.000+05:302008-09-23T11:13:00.000+05:30खलल में डाल दी जिस ने तेरी इबादत तकमुझे लगा है मसी...खलल में डाल दी जिस ने तेरी इबादत तक<BR/>मुझे लगा है मसीहा कि मैं वो शैताँ हूँ<BR/><BR/>bahut sundar prem jiAlok Shankarhttps://www.blogger.com/profile/03808522427807918062noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47435873681627650742008-09-23T10:25:00.000+05:302008-09-23T10:25:00.000+05:30जावेद अखतर हूँ , शबाना आजमी भी हूँअजहरुद्दीन हूँ, ...जावेद अखतर हूँ , शबाना आजमी भी हूँ<BR/>अजहरुद्दीन हूँ, सलमान खान हूँ मैं<BR/>मगर सहजावाला अधिक जानते हैं<BR/>ठिकाना मेरा पहचानते हैं<BR/>इन जैसों ही से मैं शर्मिन्दा हूँ<BR/><BR/>यही मेरा घर ना कि जापान हूँ<BR/><BR/>ये क्यों मेरा परिचय कि मैं मुसलमाँ हूँAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-89660119382759716892008-09-23T10:09:00.000+05:302008-09-23T10:09:00.000+05:30सहजवाला जी अच्छी प्रस्तुतिसहजवाला जी अच्छी प्रस्तुतिneelamhttps://www.blogger.com/profile/00016871539001780302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-73081850187544881272008-09-23T08:08:00.000+05:302008-09-23T08:08:00.000+05:30कि मैं वो शैताँ हूँ आप वाकई शैतान हैं जब देखो मुसल...कि मैं वो शैताँ हूँ आप वाकई शैतान हैं जब देखो मुसलमानों के इबादत पर औंधे पड़े मिलते हो जाओ खतना करवाओ कौन रोकता है कमलादास भी इन्तजार में बैठी है बुरका पहने बुढापे मेंयाही होता है कभी तुलसी को लपेटते हो कभी ख़ुद रिरयाते हो असहाज्वालाजी सारी दुनिया परेशां है इन से आपको क्या किसी दोशीजा से मुहब्बत वगैरा तो नहीं है paratham paathakAnonymousnoreply@blogger.com