tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2471507917817580460..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: रंगमंचशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74790873216835632232008-04-02T13:06:00.000+05:302008-04-02T13:06:00.000+05:30रंजना जी,जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं वैस...रंजना जी,<BR/><BR/>जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही प्रेम के भी.. आप की कविता पढ कर एक गाना याद आ गया...<BR/><BR/>इक राधा, इक मीरा<BR/>दोनों ने श्याम को चाहा<BR/>अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो<BR/>इक प्रेम दीवानी.. इक दरस दीवानी<BR/><BR/>जिसके साथ प्यार की यादें हों या दर्द हों वह अकेला कैसे होगा :)<BR/><BR/>सुन्दर कविता के लिये बधाईMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-39618537967145380292008-03-30T16:49:00.000+05:302008-03-30T16:49:00.000+05:30तेरे नाम को दिल में चुपचाप ले केइस दुनिया के रंगमं...<B>तेरे नाम को दिल में चुपचाप ले के<BR/>इस दुनिया के रंगमंच से जुदा हो जाऊँगी !!</B><BR/><BR/>Sunder Rachnadevanshukashyaphttps://www.blogger.com/profile/10485774882632354674noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-2714157615168585492008-03-29T13:24:00.000+05:302008-03-29T13:24:00.000+05:30वे प्रभु आपको अवश्य दर्शन देंगे या हो सकता है आप उ...वे प्रभु आपको अवश्य दर्शन देंगे या हो सकता है आप उनसे मिल भी चुकीं हों, क्यूं कि वे हमेशा हमारे पास उसी रूप में नही आते जिसमें हम उन्हें देखना चाहते हैं । सुंदर भावों को दर्शाती सुंदर कविता पर दुखांत नही सुखांत होना चाहिये ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57451637526843395032008-03-29T13:07:00.000+05:302008-03-29T13:07:00.000+05:30मीरा ने पाया था अपने सावरे से श्याम को ..रख विश्वा...मीरा ने पाया था अपने सावरे से श्याम को ..रख विश्वास अरे पगली , भक्तों के आंसू में गर न मुस्कायेंगे फिर भगवान् शरण कहाँ पाएंगे???..विश्वास है तो भगवान् को भी होना ही होगा ..प्रेम है तोह निर्गुण को रूप धरना ही होगा... <BR/>kavita malaiyakavita malaiyahttps://www.blogger.com/profile/11686144650716633329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65503079915549713892008-03-28T23:39:00.000+05:302008-03-28T23:39:00.000+05:30तुम हो या नहीहो भी तो कहाँ हो??कण कण में बसे हो मग...तुम हो या नही<BR/>हो भी तो कहाँ हो??<BR/>कण कण में बसे हो मगर सिर्फ कहने के लिए| भकत कि वेदना चिरंतर है|<BR/><BR/>देख रही हूँ ..........<BR/>.....क्या सच में अपनाओगे मुझे??<BR/>भक्ति के पथ पे या प्रेम के पथ पर चलना कितना विकट है|<BR/><BR/>और कर दूंगी ....<BR/>अपने जीवन का अंत यूं ही<BR/>किसी दुखद नाटक के अंत सा<BR/>मगर भकत भी जब जिद पर उतर आता है तो प्रभु को भी आना ही पड़ता है|<BR/><BR/>...........इस दुनिया के रंगमंच से जुदा हो जाऊँगी !!<BR/>काव्य के भाव कि चरम सीमा|<BR/><BR/>प्रेम लक्षणा भक्ति कि बात हो तो मीरा सा सहज इस भाव को और कौन व्यक्त कर शकता है| रंजू जी ने भी मिराभाव के सहारे, अपने मन कि भावनाओ को बड़े सुंदर एवं सुचारू रूप से वाचा दी है| रंजू जी को भाव में और सूक्ष्मता लाने कि जरुरत है|<BR/>गिरीश जोशीGIRISH JOSHIhttps://www.blogger.com/profile/00013592600068978019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17261385035795623822008-03-28T15:53:00.000+05:302008-03-28T15:53:00.000+05:30यह प्रश्न.......जाने कब सेपर हैं प्रभु तुमसे.........यह प्रश्न.......जाने कब से<BR/>पर हैं प्रभु तुमसे<BR/>.......तुम्हारी क्रीडा का जवाब नहीं<BR/>मरहम वहाँ लगते हो <BR/>जहाँ घाव नहीं<BR/>.........मीरा की प्रतीक्षा-मर्मस्पर्शीसरस्वती प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17703718319130702260noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-23630385801445050192008-03-28T11:41:00.000+05:302008-03-28T11:41:00.000+05:30मन को छू गयी आपकी कविता |अच्छी रचना के लिए बधाई .....मन को छू गयी आपकी कविता |अच्छी रचना के लिए बधाई ....सीमा सचदेवseema sachdevahttps://www.blogger.com/profile/15533434551981989302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37616683590278414782008-03-27T23:16:00.000+05:302008-03-27T23:16:00.000+05:30रंजू जी , यह रचना सगुण है या निर्गुण? मतलब कि प्रि...रंजू जी , यह रचना सगुण है या निर्गुण? मतलब कि प्रियतम सचमुच में कोई प्रियतम हीं है या भगवान हैं या अपनी हीं जिंदगी। वैसे हर एक अर्थ में रचना सफल है।<BR/>शिल्प में मुझे लगा कि कुछ और अच्छा हो सकता था। आप शब्दों का और भी बढिया और सुगढ प्रयोग कर सकती थीं। वैसे यह मेरा मंतव्य है :)<BR/><BR/>बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>-विश्व दीपक ’तन्हा’विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31248212281175149262008-03-27T21:44:00.000+05:302008-03-27T21:44:00.000+05:30इस दुनिया के रंगमंच से जुदा हो जाऊँगी !बहुत खूब रं...इस दुनिया के रंगमंच से जुदा हो जाऊँगी !<BR/><BR/>बहुत खूब रंजना जी.....<BR/>********<BR/>थंक गयीं है अब पंथ निहार के<BR/>क्या सच में अपनाओगे मुझे??<BR/>और हैं न ऐसे ही<BR/>कई अनसुलझे से सवाल......<BR/>या मीरा सी मैं यूं ही<BR/>एक आस पर ....<BR/>बस यूं ही जीती जाऊँगी<BR/>**************<BR/><BR/>आपकी लेखन कला का ज़वाब नही.."राज"https://www.blogger.com/profile/17803945586042941740noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41344016385924733422008-03-27T21:03:00.000+05:302008-03-27T21:03:00.000+05:30रति प्रेम अऔर् वियोग का कितना मनमोहक वरदन किया ...रति प्रेम अऔर् वियोग का कितना मनमोहक वरदन किया है बहुत ही अच्छा प्रयाश हैvivek "Ulloo"Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08517005469491054267noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42617022498955921952008-03-27T19:05:00.000+05:302008-03-27T19:05:00.000+05:30रंजना जीअनुराग कब आसक्ति के रास्ते होते हुये पारलौ...रंजना जी<BR/><BR/>अनुराग कब आसक्ति के रास्ते होते हुये पारलौकिक पथ की और उन्मुख कर देता है पता ही नहीं चलता ... और फ़िर रचनाकार तो वैसे भी चिर वियोग का आवाहन ही करते हैं. संयोग तो बहुधा काव्य का अंत लाता है ...... और कान्हा की भक्ति से अधिक तो प्रेम रस हो ही नहीं सकता .... शुभकामनाएं आपकी रचनाओं के नये मोड़ की .....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-51547052354382746282008-03-27T18:08:00.000+05:302008-03-27T18:08:00.000+05:30बधाई रंजू जी , सुंदर रचना है, पर ना जाने क्यों अधू...बधाई रंजू जी , सुंदर रचना है, पर ना जाने क्यों अधूरी सी लगती है, क्या आप इसकी दूसरी कड़ी भी लिखेंगी ?<BR/>पूजा अनिलAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-75153998941220652852008-03-27T17:25:00.000+05:302008-03-27T17:25:00.000+05:30रचना में आध्यात्मिक अहसास है। "बिटर बिटर" का प्रयो...रचना में आध्यात्मिक अहसास है। "बिटर बिटर" का प्रयोग अच्छा बन पडा है।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11659426611192096062008-03-27T16:48:00.000+05:302008-03-27T16:48:00.000+05:30अति सुंदर देख रही हूँ बिटर -बिटरतेरी पत्थर की मूरत...अति सुंदर <BR/>देख रही हूँ बिटर -बिटर<BR/>तेरी पत्थर की मूरत को<BR/>तेरे दर्शन की यह प्यासी आँखे<BR/>थंक गयीं है अब पंथ निहार के<BR/>क्या सच में अपनाओगे मुझेanjuhttps://www.blogger.com/profile/05253751080116301279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-33899889273262401612008-03-27T16:22:00.000+05:302008-03-27T16:22:00.000+05:30रंजू जीरचना सुन्दर है और लौकिक में अलौकिक की छवि अ...रंजू जी<BR/>रचना सुन्दर है और लौकिक में अलौकिक की छवि अति सुन्दर झलक रही है। बधाई स्वीकारेंशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-20651912442610155982008-03-27T15:35:00.000+05:302008-03-27T15:35:00.000+05:30bahut sunder . subhkamnayebahut sunder . subhkamnayeMukesh Garghttps://www.blogger.com/profile/12785030120693046928noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64833513939465695792008-03-27T13:10:00.000+05:302008-03-27T13:10:00.000+05:30आपकी रचना , चित्र के साथ अर्थ पूर्ण हो रही है | अच...आपकी रचना , चित्र के साथ अर्थ पूर्ण हो रही है |<BR/> अच्छा लिखा है |<BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48352680905587983692008-03-27T12:56:00.000+05:302008-03-27T12:56:00.000+05:30आह! बस चंद आँसू और! फ़िर इन आँसूओं से धुलकर नयन स्व...आह! बस चंद आँसू और! फ़िर इन आँसूओं से धुलकर नयन स्वच्छ हो जाएँगे और स्र्वत्र उसी प्यारे के दर्शन होंगे।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26527455231999435282008-03-27T12:11:00.000+05:302008-03-27T12:11:00.000+05:30विरह भाव की तीव्रता संवेदित करती है।विरह भाव की तीव्रता संवेदित करती है।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-54624435919599496362008-03-27T12:08:00.000+05:302008-03-27T12:08:00.000+05:30बहुत गहन और मार्मिक रचना है ,उधाहरण जो है मीरा का ...बहुत गहन और मार्मिक रचना है ,उधाहरण जो है मीरा का प्रभु प्रति विरह भाव विभोर करता है बहुत सुंदर रचना हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11544338311850473182008-03-27T11:48:00.000+05:302008-03-27T11:48:00.000+05:30gr8 ranju ji kaafi dino ke baad aapki kavita padi ...gr8 ranju ji kaafi dino ke baad aapki kavita padi or itni achi kavita padne ko mili sach bhut sunder hailokehttps://www.blogger.com/profile/06716683454885848751noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17854838609353325362008-03-27T11:36:00.000+05:302008-03-27T11:36:00.000+05:30वियोग में बहुत अच्छी कविता लिखी है रंजना जी। प्रेम...वियोग में बहुत अच्छी कविता लिखी है रंजना जी। प्रेम पर आपने बहुत सी रचनायें लिखी हैं और इस बार प्रेम वियोग।बहुत उम्दा। बस मुझे इस कविता का शीर्षक इससे मिलता जुलता नहीं लगा। आपका क्या ख्याल है?तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-88937972526732715982008-03-27T11:28:00.000+05:302008-03-27T11:28:00.000+05:30आपकी रचना ने बरसों से उलझे सवाल को सुलझा दिया........आपकी रचना ने बरसों से उलझे सवाल को सुलझा दिया.....दिल में बसे हैं, पलकों में बन्द मूरत है तो फिर दर्शन कैसे....? ऐसी प्रीत के साथ अंत भी सुखद होता है.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-23136078319003473862008-03-27T10:44:00.000+05:302008-03-27T10:44:00.000+05:30"या मीरा सी मैं यूं हीएक आस पर ....बस यूं ही जीती ..."या मीरा सी मैं यूं ही<BR/>एक आस पर ....<BR/>बस यूं ही जीती जाऊँगी"<BR/><BR/>मीरा के विरह को नए आयाम दिया है आपकी रचना ने..डाॅ रामजी गिरिhttps://www.blogger.com/profile/08761553153026906318noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-505381004710357272008-03-27T09:59:00.000+05:302008-03-27T09:59:00.000+05:30meera ban gaee ho to jane ka prhan nahee to krishn...meera ban gaee ho to jane ka prhan nahee to krishn ko khud emn kyon khoj rahee ho tum krishn men ho kavita ati sundar<BR/><BR/>Anilmasoomshayerhttps://www.blogger.com/profile/03204731223754279697noreply@blogger.com