tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2043791867448675612..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: महंगाई के डण्डेशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-7784067654729539242008-07-09T17:47:00.000+05:302008-07-09T17:47:00.000+05:30महगाई आज की पसरती हुई समस्या जिसके लिए विचार विमर्...महगाई आज की पसरती हुई समस्या जिसके लिए विचार विमर्श तो होता है लेकिन कोई हल नही ,बहुत सही विषय चुना है आपनेसीमा सचदेवhttps://www.blogger.com/profile/04082447894548336370noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-33445891770723327222008-07-09T12:57:00.000+05:302008-07-09T12:57:00.000+05:30बडी सही रचना लेकर आये हो भ्राता श्री.. एक दम यथार्...बडी सही रचना लेकर आये हो भ्राता श्री.. <BR/>एक दम यथार्थ... <BR/><BR/>और आपकी अन्य रचनाओं से अलग भी लगी अधिकांशतः आपकी रचनायें गूढ होती हैं..<BR/><BR/>बहुत बहुत बधाईभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15801525571928942362008-07-08T21:22:00.000+05:302008-07-08T21:22:00.000+05:30‘एक कप चाय और...’ सुनते हीमेरी पत्नी, विद्रोहिणी स...‘एक कप चाय और...’ सुनते ही<BR/>मेरी पत्नी, विद्रोहिणी सी हुँकारती<BR/>फुंकारती नज़र आती है<BR/>चाय.. चीनी.. दूध.. रसोई गैस<BR/>कुछ भी नहीं है आज से…<BR/>आज तो बरसात में भीगती वह लौकी<BR/>मेरी जेब से बहुत… बहुत बड़ी<BR/>नजर आती है.<BR/>श्री कान्तजी, एकदम सामयिक व यथार्थ रचना है. <BR/>आज महंगाई ने है नानी याद दिलाई,<BR/>आज इधर कुआं है इधर खाई,<BR/>परिवार कैसे चलायें भाई,<BR/>हम घर के खर्चे से परेशान होकर,<BR/>पत्नी से बोले, आधे की हकदार हो,<BR/>बाहर निकलों, कुछ हाथ बटाओं,<BR/>नारी ब्लोग पर जाकर <BR/>पचास प्रतिशत का हिसाब पढो, <BR/>बढों आगे तुम भी कुछ करों, <BR/>पत्नी चिल्लाई, <BR/>मैं पचास प्रतिशत नहीं, <BR/>शत-प्रतिशत कमाऊंगी,<BR/>ए.टी.एम. कार्ड लेकर,<BR/>हजार की साडी लाऊंगी,<BR/>हमने जबाब दिया भाग्यवान,<BR/>जरुर जाओ किन्तु याद रखो,<BR/>महंगाई है,<BR/>बाजार जाकर होगी जग हंसाई है.डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमीhttps://www.blogger.com/profile/01543979454501911329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26525917718462526122008-07-08T16:26:00.000+05:302008-07-08T16:26:00.000+05:30श्रीकान्त जीकुछ नयापन लिए है यह रचना-सोऊँगा देर तक...श्रीकान्त जी<BR/>कुछ नयापन लिए है यह रचना-<BR/>सोऊँगा देर तक<BR/>क्योंकि आज 'सण्डे' है<BR/>सोचा था बस<BR/>इतने में ही पत्नी ने<BR/>उबलते गरम पानी का<BR/>नमकीन प्याला पकड़ाया<BR/>उठो जी यह है चाय<BR/>सुनते ही मन झुँझलाया<BR/>बस पूछो मत<BR/>कृतित्व उभर आया<BR/>अच्छा प्रवाह है। गंम्भीर विषय को सरलता से चित्रित किया है। बधाई स्वीकारें।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57232151348551036372008-07-08T10:32:00.000+05:302008-07-08T10:32:00.000+05:30आरम्भ में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता "भिक्...आरम्भ में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता "भिक्षुक" की परोडी जैसा लगा ! सामयिक एवं यथार्थ !! उत्तरोत्तर भाव सौंदर्य का व्यंग्मय चरम विकास !!!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1202230242667760792008-07-08T08:45:00.000+05:302008-07-08T08:45:00.000+05:30आज तो बरसात में भीगती वह लौकीमेरी जेब से बहुत… बहु...आज तो बरसात में भीगती वह लौकी<BR/>मेरी जेब से बहुत… बहुत बड़ी<BR/>नजर आती है.<BR/>दाल का सूप भी मिलेगा नहीं आज<BR/>क्योंकि श्रीमान जी !<BR/>बस बच्चों की गुल्लक ही बाकी है<BR/>और वेतन मिलने मे<BR/>पूरा सप्ताह बाकी है<BR/>पत्नी के इस उत्तर से<BR/>चकराये सिर बैठ जाता हूँ<BR/>हाय रे ! दूरदर्शन पर ...<BR/>नेताओं का सत्ता खेल ...<BR/>बस यही सोच पाता हूँ<BR/>क्या यह सण्डे है?<BR/>या फिर...<BR/>आम आदमी के सिर पर<BR/>महंगाई के डण्डे हैं<BR/><BR/>बहुत ही भावपूर्ण कविता <BR/>आज की बढती हुयी महंगाई पर एक अच्छी कविता <BR/>काश श्रीकांत आप की कविता की आवाज सत्ता के लोभियों के कानो तक पहुंचे<BR/>और उन्हें आम आदमी की हालत का पता तो चलेBRAHMA NATH TRIPATHIhttps://www.blogger.com/profile/02914568917315736973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-6216627376675989322008-07-08T08:32:00.000+05:302008-07-08T08:32:00.000+05:30"सर्वहारा क्रान्ति...और क्या.. क्याका ढिंढोरा पीटन..."सर्वहारा क्रान्ति...और क्या.. क्या<BR/>का ढिंढोरा पीटने वालो<BR/>सोते रहोगे क्या तुम यों ही.."<BR/><BR/>बहुत अच्छे कान्त जी. बाबा नागार्जुन के शब्दों में:<BR/>"इसी पेट के अन्दर समा जाए सर्वहारा..." चरितार्थ हो रहा है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com