tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2016998705832161264..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: कदशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30975414241055337672007-09-29T16:42:00.000+05:302007-09-29T16:42:00.000+05:30मोहिन्दर जी,ओशो ने अपने काव्य-प्रवचनों में इस तरह ...मोहिन्दर जी,<BR/><BR/>ओशो ने अपने काव्य-प्रवचनों में इस तरह की बहुत-सी सुंदर पंक्तियाँ सुनाई हैं। आप कुछ और लिखें, आप तो कवि हैं।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17377202444916073522007-09-26T13:32:00.000+05:302007-09-26T13:32:00.000+05:30मोहिन्दर जी,बहुत बड़ी बात कहती हुई सुन्दर कविता है।...मोहिन्दर जी,<BR/>बहुत बड़ी बात कहती हुई सुन्दर कविता है। एक दर्शन है कविता में।<BR/>बधाई।गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70160953390950487222007-09-26T10:46:00.000+05:302007-09-26T10:46:00.000+05:30नीचे देख... प्रसन्नताउपर देख... ग्लानिकिस कारणवाह ...नीचे देख... प्रसन्नता<BR/>उपर देख... ग्लानि<BR/>किस कारण<BR/>वाह मोहिंदर इस बार आपने कमाल का विषय उठाया है और इतना सुंदर बखान किया है की बस अनंद आ गया <BR/>यदि मापना है स्वयं को<BR/>तो जान ले<BR/>एक सुक्ष्म रजकण<BR/>भर है अस्तित्व तेरा<BR/>कोई पर्वत शिखर<BR/>कोई पाताल खड्ड<BR/>स्वय़ को सबसे ऊंचा<BR/>सबसे गहरा माने<BR/>तो यह उसकी भूल है<BR/>आदि अनंत से परे<BR/>ब्रह्मांड में कोटि कोटि<BR/>आकाश-गंगाओं के मध्य<BR/>सहस्त्रो सूर्यों (तारों)<BR/>ग्रहों, उपग्रहों <BR/>की तुलना में पृथ्वी<BR/>स्वंय एक बिन्दू मात्र है<BR/>बहुत सुंदर बहुत सुंदरSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67310098836558238032007-09-26T00:21:00.000+05:302007-09-26T00:21:00.000+05:30कोई पर्वत शिखरकोई पाताल खड्डस्वय़ को सबसे ऊंचासबसे ...कोई पर्वत शिखर<BR/>कोई पाताल खड्ड<BR/>स्वय़ को सबसे ऊंचा<BR/>सबसे गहरा माने<BR/>तो यह उसकी भूल है<BR/>आदि अनंत से परे<BR/>ब्रह्मांड में कोटि कोटि<BR/>आकाश-गंगाओं के मध्य<BR/>सहस्त्रो सूर्यों (तारों)<BR/>ग्रहों, उपग्रहों<BR/>की तुलना में पृथ्वी<BR/>स्वंय एक बिन्दू मात्र है<BR/>यदि इस पर स्थापित<BR/>कोई पर्वत स्वंय को<BR/>वृहद समझे<BR/>आकाश की विशालता को नकारे<BR/>तब उसे क्या कहें<BR/>यही माप-दण्ड है<BR/>स्वयं के कद नापने का<BR/>जो ये जान गया<BR/>वही सब से ऊंचा<BR/>वही सब से गहरा<BR/><BR/>मोहिन्दर जी, अतिसुन्दर रचना!!ऐसी सार्गर्भित रचना के लिए साधुवाद।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-39522546201216540682007-09-25T22:54:00.000+05:302007-09-25T22:54:00.000+05:30मोहिंदर जी !बहुत गहरी बात ....मानवअपने अंह से मुग्...मोहिंदर जी !<BR/><BR/>बहुत गहरी बात ....<BR/><BR/><BR/>मानव<BR/>अपने अंह से मुग्ध<BR/>अपनी विराटता का आंकलन<BR/>कब तक<BR/>वह भी बिना <BR/>किसी उचित माप-दण्ड के<BR/><BR/>यदि मापना है स्वयं को<BR/>तो जान ले<BR/>एक सुक्ष्म रजकण<BR/>भर है अस्तित्व तेरा<BR/><BR/><BR/>वाह ......<BR/><BR/><BR/>गम्भीर,<BR/>सार्थक रचना... <BR/><BR/>बधाईगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-30016236171410975462007-09-25T14:12:00.000+05:302007-09-25T14:12:00.000+05:30वाह मोहिंदर जी ...बहुत गहरी बात लिख दी आपने यही मा...वाह मोहिंदर जी ...बहुत गहरी बात लिख दी आपने <BR/><BR/>यही माप-दण्ड है<BR/>स्वयं के कद नापने का<BR/>जो ये जान गया<BR/>वही सब से ऊंचा<BR/>वही सब से गहरा<BR/><BR/>अहंकार तो मनुष्य को ले डूबता है ..पर अफ़सोस आज कल यही सब जगह हैरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65343563500665270862007-09-25T13:20:00.000+05:302007-09-25T13:20:00.000+05:30यही माप-दण्ड हैस्वयं के कद नापने काजो ये जान गयावह...यही माप-दण्ड है<BR/>स्वयं के कद नापने का<BR/>जो ये जान गया<BR/>वही सब से ऊंचा<BR/>वही सब से गहरा<BR/><BR/>बड़ी हीं गूढ बात की है आपने मोहिन्दर जी। जो इंसान अहंकार में चूर होता है, वह अपनी हीं आत्मा से हारा हुआ होता है। इसलिए वो बड़ा नहीं हो सकता। जो इंसान इस सच को जान गया , वही सबसे बड़ा है।<BR/><BR/>जिंदगी का सार बताने के लिए धन्यवाद और बधाई।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-90139124467338979802007-09-25T12:34:00.000+05:302007-09-25T12:34:00.000+05:30मोहिन्दरजी,कोई पर्वत स्वंय कोवृहद समझेआकाश की विशा...मोहिन्दरजी,<BR/><BR/>कोई पर्वत स्वंय को<BR/>वृहद समझे<BR/>आकाश की विशालता को नकारे<BR/>तब उसे क्या कहें<BR/><BR/>सही! आजकल "स्वयं को बड़ा समझना" इंसान का स्वभाव बन चुका है, आपने एक सार्थक प्रयास किया है, बधाई स्वीकार करें!!!गिरिराज जोशीhttps://www.blogger.com/profile/13316021987438126843noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48879778320863283262007-09-25T11:43:00.000+05:302007-09-25T11:43:00.000+05:30" मानवअपने अंह से मुग्धअपनी विराटता का आंकलनकब तकव..." मानव<BR/>अपने अंह से मुग्ध<BR/>अपनी विराटता का आंकलन<BR/>कब तक<BR/>वह भी बिना <BR/>किसी उचित माप-दण्ड के"<BR/><BR/>"यदि मापना है स्वयं को<BR/>तो जान ले<BR/>एक सुक्ष्म रजकण<BR/>भर है अस्तित्व तेरा"<BR/><BR/>मोहिन्दर जी एक बार फिर गम्भीर, सारगर्भित और परिपक्व रचना के लिये बधाई<BR/><BR/>सस्नेह<BR/>गौरव शुक्लGaurav Shuklahttps://www.blogger.com/profile/12422162471969001645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78191800202317995722007-09-25T11:12:00.000+05:302007-09-25T11:12:00.000+05:30बाबा!! प्रवचन देना शुरू कर दें.बाबा!! प्रवचन देना शुरू कर दें.Avanish Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03737794502488533991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-10771712687038051312007-09-25T10:18:00.000+05:302007-09-25T10:18:00.000+05:30मोहिन्दर जी,वह भी बिना किसी उचित माप-दण्ड केमानव स...मोहिन्दर जी,<BR/><BR/>वह भी बिना <BR/>किसी उचित माप-दण्ड के<BR/>मानव से मानव की तुलना<BR/>नीचे देख... प्रसन्नता<BR/>उपर देख... ग्लानि<BR/><BR/>कोई पर्वत स्वंय को<BR/>वृहद समझे<BR/>आकाश की विशालता को नकारे<BR/>तब उसे क्या कहें<BR/>यही माप-दण्ड है<BR/><BR/>स्वयं को बडा समझने की प्रवृति का दर्शन आपने सार्थकता से समझाया है।आपकी अंतिम पंक्तियों से पूर्णत: सहमत हूँ कि :<BR/><BR/>जो ये जान गया<BR/>वही सब से ऊंचा<BR/>वही सब से गहरा<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.com