tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post1872734513010586849..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकलाशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57662289689907570632007-12-30T18:45:00.000+05:302007-12-30T18:45:00.000+05:30नमस्कार ,आपकी कविता मुझे बहुत ही अच्छी लगी है .......नमस्कार ,<BR/>आपकी कविता मुझे बहुत ही अच्छी लगी है ....<BR/>.<BR/>खैर मेरे बस में इतना टू नही है की मैं अआप की कविता में कोई नुक्स निकल सकूं ...<BR/>नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ .......अश्वनी कुमार गुप्ता ...anshhttps://www.blogger.com/profile/07768008988685381384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87856699733059083102007-12-30T17:51:00.000+05:302007-12-30T17:51:00.000+05:30बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकलामेरे वास्ते हर ...बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकला<BR/>मेरे वास्ते हर इक जेब से खंज़र निकला<BR/><BR/>था जब तलक हिज़ाब में हरदिलअज़ीज़ था<BR/>बेपर्द हुआ तो बस राह का पत्थर निकला<BR/><BR/>भटका करेंगे हम तो 'अजय' तेरे शहर में<BR/>जब तक न कोई शख्स मोतबर निकला<BR/><BR/>उम्दा गज़ल है अजय जी। हरेक शेर मारक है। बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46128124039169740462007-12-29T22:06:00.000+05:302007-12-29T22:06:00.000+05:30क्या बात है ...क्या कहूँ बस बहुत ही अच्छा है सुनी...क्या बात है ...क्या कहूँ बस बहुत ही अच्छा है <BR/>सुनीताDr. sunita yadavhttps://www.blogger.com/profile/00087805599431710687noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-73913142677706945262007-12-29T11:40:00.000+05:302007-12-29T11:40:00.000+05:30ऐसा लगता है दुनिया भर से हताश,हर ओर से ठुकराए जान...ऐसा लगता है दुनिया भर से हताश,हर ओर से ठुकराए जाने पर किसी दिल से जो आह निकली होगी वह आप की ग़ज़ल बन गयी है.<BR/>हर शेर उम्दा है.<BR/><BR/>''था जब तलक हिजाब में हरदिलअज़ीज़ था<BR/>बेपर्दा हुआ तो बस राह का पत्थर निकला''<BR/>सही कहा आपने.<BR/>बहुत खूब!Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57194522607002814862007-12-29T10:28:00.000+05:302007-12-29T10:28:00.000+05:30अच्छी ग़ज़ल है अजय जी, इस बार शिल्प भी बहुत अच्छा है...अच्छी ग़ज़ल है अजय जी, इस बार शिल्प भी बहुत अच्छा है, पर हाँ कुछ नए प्रतिमान गढ़ने ज़रूरी हैं अब, ताकि ग़ज़ल मी कुछ नए शब्द और बिम्ब भी प्रयुक्त हो सकें,Sajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61128161450991657482007-12-29T09:41:00.000+05:302007-12-29T09:41:00.000+05:30था जब तलक हिज़ाब में हरदिलअज़ीज़ थाबेपर्द हुआ तो बस र...था जब तलक हिज़ाब में हरदिलअज़ीज़ था<BR/>बेपर्द हुआ तो बस राह का पत्थर निकला<BR/>बहुत खूब अजय जी..........anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11400305458275309922007-12-28T23:11:00.000+05:302007-12-28T23:11:00.000+05:30ये बेहतर ग़ज़ल है....मगर इसकी पंक्तियाँ सुनी-सी लग...ये बेहतर ग़ज़ल है....मगर इसकी पंक्तियाँ सुनी-सी लगती हैं...पुराने वक्त की याद ताज़ा हो गयीं...बताता हूँ कैसे...<BR/>बचपन में (१३-१४ की उम्र) एक ग़ज़ल पढी थी, शायद "सलिल" की....मुझे बेहद पसंद आयीं थी...आज भी डायरी के पन्नों में उसकी पंक्तियाँ हैं.....आपको भी पढाता हूँ....<BR/>"आग आंखों में लिए, मैं कहाँ जाकर निकला..<BR/>मैंने जो फूंक दिया, वो मेरा ही घर निकला....<BR/>लोग कहने लगे पागल, पड़े पत्थर मुझको,<BR/>मैं न अय्यारी मे जब, उनके बराबर निकला...<BR/>घूम-फ़िर आया हूँ, कितने शिवाले मैं "सलिल",<BR/>मेरे सर के लिए निकला, तो तेरा दर निकला....<BR/><BR/>निखिल आनंद गिरि..Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91091811266940047852007-12-28T18:05:00.000+05:302007-12-28T18:05:00.000+05:30अजय जी,कमाल की गजल.. बहुत बढिया..एक एक शेर लाजवाबअजय जी,<BR/><BR/>कमाल की गजल.. बहुत बढिया..<BR/>एक एक शेर लाजवाबभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15834830524225331722007-12-28T14:31:00.000+05:302007-12-28T14:31:00.000+05:30अजय जी, आप हर बार यह साबित करते हैं कि गज़ल में आपक...अजय जी, आप हर बार यह साबित करते हैं कि गज़ल में आपको महारत हासिल है।तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57734234452973078842007-12-28T13:26:00.000+05:302007-12-28T13:26:00.000+05:30हरिक शेर बहुत लाजवाब है और हकीकत को ब्यां करता है।...हरिक शेर बहुत लाजवाब है और हकीकत को ब्यां करता है।<BR/><BR/>था जब तलक हिज़ाब में हरदिलअज़ीज़ था<BR/>बेपर्द हुआ तो बस राह का पत्थर निकला<BR/><BR/>वो जिसको दिल का मालिक बनाये बैठे थे<BR/>फूल की जगह उसके हाथ में नश्तर निकलापरमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-71281651809914110322007-12-28T12:00:00.000+05:302007-12-28T12:00:00.000+05:30क्या अजय जी आपका खंजर टू सीधे सीने में उतर गया,बहु...क्या अजय जी आपका खंजर टू सीधे सीने में उतर गया,बहुत खूब<BR/> sadhuwaad<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46346666618839562492007-12-28T11:53:00.000+05:302007-12-28T11:53:00.000+05:30चेहरे पे हर किसी के याँ मिलते हैं मुखौटेइन्साँ के ...चेहरे पे हर किसी के याँ मिलते हैं मुखौटे<BR/>इन्साँ के वेष में हर एक जानवर निकला<BR/>बहुत खूब अजय जी. लिखते रहिये.<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13658928027240838832007-12-28T11:49:00.000+05:302007-12-28T11:49:00.000+05:30वाह |हर शेर काबिले तारीफ है |बहुत खूब |अवनीश तिवार...वाह |<BR/>हर शेर काबिले तारीफ है |<BR/>बहुत खूब |<BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.com