tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post1868739728135305358..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: ...पापा के नामशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3201958065596750732009-07-02T17:07:25.661+05:302009-07-02T17:07:25.661+05:30पापा की संवेदना से कविता की मौलिकता कहाँ समाप्त हो...पापा की संवेदना से कविता की मौलिकता कहाँ समाप्त हो जाती है ?<br />गौहर जी हम आपकी बात से कतई इत्तेफाक नहीं रख सकते |neelamhttps://www.blogger.com/profile/00016871539001780302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-80847542757798034832008-06-14T00:42:00.000+05:302008-06-14T00:42:00.000+05:30"...पापा के नाम"कविता और कवि का सौभाग्य है कि पापा..."...पापा के नाम"<BR/><BR/>कविता और कवि का सौभाग्य है कि पापा ने इसे अपनी राय से नवाज़ा है लेकिन इसका अल्मिया है कि ये काव्यात्मक पाठ मौलिक नहीं लगता।बेहतर होता कि ये मौलिक रुप में सामने आता।<BR/><BR/>SURENDRA का कहना है कि - <BR/>धन्य हुआ मैं तुम्हारी कविता पढ़कर <BR/>तेरे किए गए खर्च का ब्योरा नही माँगा होनहार समझकर<BR/>रोज़ याद आते हो जब मेरे पाँव-पीठ दुखते हैं <BR/>पुरानी थपथपाहट याद कर सो जाता हूँ <BR/>आस लगी है, निराश मत करना बेटा <BR/>ट्रेन पाकर कर आ जाना <BR/>बड़ी उम्मीद है तुम्हारे उज्जवल भविष्य पर <BR/>निराश मत करना...<BR/><BR/>सस्नेह,<BR/><BR/>...तुम्हारे पापा<BR/><BR/>June 09, 2008 7:20 PMगौहर हयातhttps://www.blogger.com/profile/05129616143057755527noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-37159172908907978942008-06-10T15:01:00.000+05:302008-06-10T15:01:00.000+05:30kuch shabd hi nahi hain mere pas kavita k liye.pit...kuch shabd hi nahi hain mere pas kavita k liye.pita k liye itna sara sneh dekh kar hi hriday gadgad ho jata hai aur aankhe var aati hain.yah kavita mere dil ko chu jati hai.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41341429511774042212008-06-09T19:20:00.000+05:302008-06-09T19:20:00.000+05:30धन्य हुआ मैं तुम्हारी कविता पढ़कर तेरे किए गए खर्च...धन्य हुआ मैं तुम्हारी कविता पढ़कर <BR/>तेरे किए गए खर्च का ब्योरा नही माँगा होनहार समझकर<BR/>रोज़ याद आते हो जब मेरे पाँव-पीठ दुखते हैं <BR/>पुरानी थपथपाहट याद कर सो जाता हूँ <BR/>आस लगी है, निराश मत करना बेटा <BR/>ट्रेन पाकर कर आ जाना <BR/>बड़ी उम्मीद है तुम्हारे उज्जवल भविष्य पर <BR/>निराश मत करना...<BR/><BR/>सस्नेह,<BR/><BR/>...तुम्हारे पापासुरेन्द्र गिरिhttps://www.blogger.com/profile/09054188735032421477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42570475456917801722008-06-09T12:35:00.000+05:302008-06-09T12:35:00.000+05:30बेहद संवेदनशील..***राजीव रंजन प्रसादबेहद संवेदनशील..<BR/><BR/>***राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-18216964570908753382008-06-09T12:07:00.000+05:302008-06-09T12:07:00.000+05:30निखिल जी, बहुत ही सुंदर भावान्जली है अपने पिता के ...निखिल जी, <BR/><BR/>बहुत ही सुंदर भावान्जली है अपने पिता के लिए . वक्त गुजरता जाता है , परिवेश बदलता जाता है , हम बड़े होते रहते हैं, पापा वैसे ही खड़े रहते हैं , जैसे बचपन में हमारे लिए हमेशा हाजिर रहते थे , बस हमारे सोचने के लिए यही बचता है कि क्या हम उन्हें उनके हिस्से की खुशी दे पाये ??? अगर कविता के जरिये भी हम उन्हें एक मुस्कराहट दे पाये तो कविता लिखना सफल हुआ. और आपकी कविता तो अतिशय भावुक कर देने वाली है , बस बार बार पढने को मन करता है .<BR/><BR/>बहुत बहुत बधाई <BR/><BR/>^^पूजा अनिलPooja Anilhttps://www.blogger.com/profile/11762759805938201226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-71554868726419555762008-06-09T11:53:00.000+05:302008-06-09T11:53:00.000+05:30तुम्हारी आँखें देखती हैं सपना,एक चक्रवर्ती सम्राट ...तुम्हारी आँखें देखती हैं सपना,<BR/>एक चक्रवर्ती सम्राट बनने का,<BR/>तुमने छोड़ दिए हैं अपने प्रतीक-चिन्ह,<BR/>(भइया और मैं....)<BR/>कि हम क्षितिज तक पहुँच सकें,<BR/>और तुम्हारी छाती चौड़ी हो जाए<BR/>क्षितिज जितनी..<BR/><BR/>बहुत ही बढिया कविता लगी।<BR/>दिल को छूने वाली<BR/><BR/>सुमित भारद्वाज।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/15870115832539405073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74347944462341157122008-06-08T19:31:00.001+05:302008-06-08T19:31:00.001+05:30अच्छी रचना के लिए बधाई-----।--देवेन्द्र पाण्डेय।अच्छी रचना के लिए बधाई-----।<BR/>--देवेन्द्र पाण्डेय।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-66029163327326877262008-06-08T19:31:00.000+05:302008-06-08T19:31:00.000+05:30evendraअच्छी रचना के लिए बधाई-----।--देवेन्द्र पाण...evendraअच्छी रचना के लिए बधाई-----।<BR/>--देवेन्द्र पाण्डेय।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36597070016765475052008-06-08T17:55:00.000+05:302008-06-08T17:55:00.000+05:30निखिल जी आपने जता दिया कि हम माँ से ही नही अपने पा...निखिल जी आपने जता दिया कि हम माँ से ही नही अपने पापा से भी उतना ही प्यार करते है और पापा की भावनाएं हमारे लिए माँ से कम नही है | कितनी बार पढी आपकी कविता और लगा आपने मेरे ही मन की भावनाएं उडेल दी है, इस कविता को पढ़कर टू कोई भी यही कहेगा ....बहुत ही भावुक , मर्मस्पर्शी कविता ....बधाईसीमा सचदेवhttps://www.blogger.com/profile/04082447894548336370noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-87158068773679894912008-06-08T16:06:00.000+05:302008-06-08T16:06:00.000+05:30लाजवाब ! पिता के लिए पुत्र का एक पावन प्रणाम है |-...लाजवाब ! पिता के लिए पुत्र का एक पावन प्रणाम है |<BR/><BR/>-- अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49919675414299348052008-06-08T14:52:00.000+05:302008-06-08T14:52:00.000+05:30अब हम क्या कहें,भावुक कर दिया आपकी अनुभूतियों ने. ...अब हम क्या कहें,भावुक कर दिया आपकी अनुभूतियों ने.<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77874109499921351942008-06-08T11:22:00.000+05:302008-06-08T11:22:00.000+05:30और जब तुम खोलो,तुम्हारे लिए हों ढेर सारे इन्द्रधनु...और जब तुम खोलो,<BR/>तुम्हारे लिए हों ढेर सारे इन्द्रधनुष,<BR/>कि तुम मोहल्ले भर में कर सको चर्चा...<BR/>और माँ भी बिना ख़त पढे,<BR/>तुम्हारी मुस्कान की हर परत में,<BR/>पढ़ती रहे अक्षर-अक्षर....<BR/>पिता को संबोधित पत्र में भी तुमने माँ का चहरा मात्र दो पंक्तियों में उजागर कर दिया....बहुत खूब...Sajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40792076939882392622008-06-08T10:52:00.000+05:302008-06-08T10:52:00.000+05:30बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता लिखी है आपने निखि...बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता लिखी है आपने निखिल ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70156560734076777962008-06-08T10:07:00.000+05:302008-06-08T10:07:00.000+05:30बहुत ही मर्म sprashi कविता badhaiबहुत ही मर्म sprashi कविता badhaimehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-50868531672566003822008-06-08T10:05:00.000+05:302008-06-08T10:05:00.000+05:30रोज़ सोचता हूँ,भेजूँगा एक ख़त तुम्हे,मेरी मेहनत की...रोज़ सोचता हूँ,<BR/>भेजूँगा एक ख़त तुम्हे,<BR/>मेरी मेहनत की बूँद से चिपकाकर,<BR/>और जब तुम खोलो,<BR/>तुम्हारे लिए हों ढेर सारे इन्द्रधनुष,<BR/>पिता पुत्र सम्बन्ध पर सुन्दर कविता निखिल जी !Hariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-15572715946343278742008-06-08T05:45:00.000+05:302008-06-08T05:45:00.000+05:30निखिल बाबूज़ज़्बों का लफ़्ज़ों मे इज़्हार, इज़्हारे ख़्या...निखिल बाबू<BR/>ज़ज़्बों का लफ़्ज़ों मे इज़्हार, इज़्हारे ख़्याल का सबसे मुश्किल सिन्फ़ है। जहां लफ़्ज़ों को एक पीराये मे सलीके से पीरोना होता है। आपकी कविता में लफ़्ज़ों की ये जादूगरी पूरी आब ओ ताब के साथ मौजूद है। सम्बन्धों एवं भावनाओं की ऐसी सहज अभिव्यक्ति कम देखने को मिलती है।<BR/><BR/>"मैं सोचता हूँ,<BR/>कि मेरा डॉक्टर या इंजिनियर बनना,<BR/>तुम्हे कैसे सुख देगा,<BR/>जबकि हर कोई चाहता है कि,<BR/>कम हो मेरी उपलब्धियों की फेहरिस्त.....<BR/>मैं सोचता हूँ,<BR/>हम क्या रेस-कोर्स के घोडे हैं,<BR/>(भइया और मैं...)<BR/>कि तुम लगाते हो हम पर,<BR/>अपना सब कुछ दांव..<BR/><BR/>तुम्हारी आँखें देखती हैं सपना,<BR/>एक चक्रवर्ती सम्राट बनने का,<BR/>तुमने छोड़ दिए हैं अपने प्रतीक-चिन्ह,<BR/>(भइया और मैं....)<BR/>कि हम क्षितिज तक पहुँच सकें,<BR/>और तुम्हारी छाती चौड़ी हो जाए<BR/>क्षितिज जितनी.."<BR/><BR/>निस्संदेह कविता की ये पन्क्तियां इस उत्तर आधुनिक युग में पिता पुत्र के सम्बन्धों की व्यापकता एवं जटिलता की सफ़ल व्याख्या करती हैं<BR/><BR/>मियां हमें फ़ख्र है के हम इन बेशक़िमती लफ़्ज़ों के क़ारी हैं<BR/><BR/>गौहर हयात<BR/>गोपालगंज,बिहारAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82976896432481254712008-06-08T00:54:00.000+05:302008-06-08T00:54:00.000+05:30आपकी बातो ने भावुक कर दिया...काश समय लौद आताआपकी बातो ने भावुक कर दिया...काश समय लौद आताAnonymousnoreply@blogger.com