tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post1773162705059915447..comments2024-03-09T13:57:59.872+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: हम कैद हैं अपनी-अपनी सरहदों मेंशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-2021125238357898392009-08-01T11:23:59.008+05:302009-08-01T11:23:59.008+05:30अपनी-अपनी सरहदों में
कैद हैं हम..
बहुत ही अच्छा ...अपनी-अपनी सरहदों में<br />कैद हैं हम..<br /><br />बहुत ही अच्छा लिखा है आपने बधाई ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-43969757138596978912009-06-21T20:34:31.425+05:302009-06-21T20:34:31.425+05:30आप सभी का किसी न किसी रूप से शुक्रगुजार हूँ, कि आप...आप सभी का किसी न किसी रूप से शुक्रगुजार हूँ, कि आपने मेरी कविता के लिए समय निकालकर अपनी राय दी. तारीफों के लिए तहेदिल से आभारी हूँ, यह मेरे लिए नई ऊर्जा का काम करेंगी. आलोचनाओं के लिये सवाया-आभारी हूँ, यह मुझे और बेहतर लिखने की ओर अग्रसर करेंगी. <br />नीति सागर जी: आपकी प्रतिक्रया गौर करने लायक है कि, कविता बहुत जल्द ख़त्म हो गयी. लेकिन मेरी मानना है कि यदि इसे और लंबा खींचू तो सिवाय भाषणबाजी के कुछ नहीं बन पाएगा. और कविता के रूप में मैं व्यक्त हो गया उसके बाद मेरी भूमिका समाप्त हो जाती है. मेरे ख़याल से कविता भले ही अधूरी रहे, बात अधूरी नहीं रहनी चाहिए. <br />अरुण मित्तलजी: आपकी प्रतिक्रया वाकई में मेरे लिए अदभुत है. हिंद युग्म के मंच पर आप अपनी बेबाक और बिना लाग-लपेट्वाली राय के लिए एक अलग ही स्थान रखते हैं. सच कहूं तो आपकी बात से मुझे मेरे अंदाज़ में लिखने का आत्मविश्वास बढ़ा है. <br />मुहम्मद अहसान भाई : आपकी आलोचना का स्वागत है. आपने 'खलिश' के सही अर्थ की जानकारी नहीं होने वाली बात कही है. आप अन्यथा न लें वैसे मैं किसी कविता को परिभाषित करने और उसकी व्याख्या करने में ज्यादा नहीं उलझता हूँ. क्योंकि किसी ने सच कहा है Love and poetry could never be defined. लेकिन आपकी बात से मेरे दिल में उपजी खलिश के कारण अपनी बात रखना लाजिमी है. वैसे मैं उर्दू का उस्ताद नहीं हूँ, लेकिन जहां तक मेरी जानकारी है, 'खलिश' का अर्थ चुभन है. और ख़लिश का अर्थ ग़ालिब के इस मिसरे से बेहतर कौन समझा सकता है—<br />“ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता”<br />मैंने भी यहाँ इसी भावार्थ के साथ लिखा है. आपने 'खलिश' और अपनेपन के एक साथ होने पे एतराज जताया है. क्योंकि आपके अनुसार इन दोनों में तुलना की है. भाई जान मैंने कोइ तुलना नहीं की है. और आप ज़रा कविता पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि यह रिश्तों की एक ऐसी मन: स्थिती को प्रकट करती है है, जहां 'खलिश' भी है और अपनापन भी. लेकिन अहम (इगो) की दीवारों के चलते न पूरी तरह 'खलिश' व्यक्त हो पाती है न ही अपनापन. नतीजन वह रिश्ता कुछ 'खलिश' लिए और कुछ अपनापन लिए जड़ता का शिकार हो जाता है, उसकी रिदम बिगड़ जाती है. और रही बात Abstract के फैशन की तो, कम से कम मेरा मक़सद ऐसा कदापि नहीं है कि कुछ भी लिखकर अपने -आप को कवि कहलाता फिरूं. आशा करता हूँ कि इस स्पष्टीकरण से आप संतुष्ट हो गए होंगे और अपने सकारात्मक सुझावों से इस मंच का और हम जैसे नौसीखिए कवियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे. <br />भाई शामिख फ़राज़, निरमला कपिलाजी, प्रियाजी, हरिहर भाईजी और अम्बरीश श्रीवास्तवजी, मंजू गुप्ताजी आपकी प्रतिक्रियाएँ बेशक मेरे लिए टोनिक का काम करेंगी. <br />और हाँ संगीता सेठीजी आपके स्नेह के लिए बहुत आभारी हूँ.<br />अंत में 'हिंद युग्म' का आभारी हूँ, जिन्होंने यह अनोखा और सार्थक आयोजन आरम्भ करके हम जैसे कवियों को एक मंच सुलभ कराया.Jitendra Davehttp://www.jitjao.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49682620007797234272009-06-17T22:44:13.672+05:302009-06-17T22:44:13.672+05:30सुन्दर रचना |
सरहदें हैं..
कुछ मुटावों की
शिकवों-...सुन्दर रचना |<br /><br />सरहदें हैं..<br />कुछ मुटावों की<br />शिकवों-गिलों की<br />तैनात है जहां<br />अपने-अपने अहम्<br />पैनी निगाहों के साथ<br /><br />"अपनी-अपनी सरहदों में<br />कैद हैं हम..<br />कुछ खलिश लिए<br />और कुछ अपनापन भी. "<br /><br />क्या भाव है ?Ambarish Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/06514999274631808844noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58271814545523726572009-06-15T06:49:19.491+05:302009-06-15T06:49:19.491+05:30सुन्दर कविता जितेन्द्र जीसुन्दर कविता जितेन्द्र जीHariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-22827989727853592242009-06-15T00:06:41.433+05:302009-06-15T00:06:41.433+05:30सरहदें हैं..
कुछ मुटावों की
शिकवों-गिलों की
तैनात ...सरहदें हैं..<br />कुछ मुटावों की<br />शिकवों-गिलों की<br />तैनात है जहां<br />अपने-अपने अहम्<br />पैनी निगाहों के साथ<br />Mere ko to uperyukt panktiyan thik lagi. Sandesh bhi samajh nahi aya.<br />Prabhavshali kavita nahi hai.<br />Manju Gupta.Manju Guptahttps://www.blogger.com/profile/10464006263216607501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-12445605268012407112009-06-14T23:32:17.627+05:302009-06-14T23:32:17.627+05:30मगर हवाओं में खुशबू सी
सूरज के उजियारे सी
खलिश रुक...मगर हवाओं में खुशबू सी<br />सूरज के उजियारे सी<br />खलिश रुकी कहाँ<br />अपनापन थमा कहाँ<br />इस stanza का क्या अर्थ हो सकता है भला! मेरी तो समझ मैं नहीं आ रहा. क्या खलिश की तुलना खुशबू और सूरज के उजियारे से की जा रही है? खुशबू और उजियारे की खलिश से तुलना करना? शाएद कवि को खलिश का अर्थ नहीं मालूम.<br />खलिश रुकी कहाँ<br />अपनापन थमा कहाँ<br />इन पंक्तियों में खलिश अपनापन से किस तरह कनेक्ट हो रही है, यह भी समझ से परे है.?!<br />क्या मुक्त छंद का अर्थ है कुछ भी लिख देना?!<br />शाएद abstract लिखना मुक्त कविता का faishon गया है. पाठक बेचारा संदेह का लाभ कवि को दे कर बेवकूफ बनता रहता है.मुहम्मद अहसनnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-62652461769645056512009-06-14T23:14:24.380+05:302009-06-14T23:14:24.380+05:30जितेन्द्र जी को बधाई | हमारे राजस्थान के कवि को ने...जितेन्द्र जी को बधाई | हमारे राजस्थान के कवि को नेट पर देख कर ख़ुशी हुई | कविता एक दम से टूट गयी | कुछ पंक्तियाँ और लिखी जा सकती थी|sangeeta sethihttps://www.blogger.com/profile/12638075907123243114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46303807685727138692009-06-14T20:42:23.083+05:302009-06-14T20:42:23.083+05:30choti kintu sarthak....mujhe to bahut prabhavit ki...choti kintu sarthak....mujhe to bahut prabhavit kiya is kavita ne <br /><br />"अपनी-अपनी सरहदों में<br />कैद हैं हम..<br />कुछ खलिश लिए<br />और कुछ अपनापन भी. "<br /><br />han kaid hi to hain hum sab..... chah kar bhi nahi badal pate kuch bateinप्रियाhttps://www.blogger.com/profile/04663779807108466146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74518677219150131222009-06-14T20:19:28.430+05:302009-06-14T20:19:28.430+05:30बहुत सुन्दर कविता है जितेन्दर जी को बधाईबहुत सुन्दर कविता है जितेन्दर जी को बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-76506662974168671592009-06-14T19:22:18.003+05:302009-06-14T19:22:18.003+05:30सरहदें हैं..
कुछ मुटावों की
शिकवों-गिलों की
तैनात ...सरहदें हैं..<br />कुछ मुटावों की<br />शिकवों-गिलों की<br />तैनात है जहां<br />अपने-अपने अहम्<br />पैनी निगाहों के साथ<br /><br />जीतेन्द्र जी शीर्ष दस कविओं में स्थान बनाने के लिए बधाई.Shamikh Farazhttps://www.blogger.com/profile/11293266231977127796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49191702469410778082009-06-14T17:52:04.271+05:302009-06-14T17:52:04.271+05:30बहुत ही सुन्दर लिखा है .... इस प्रकार का अहसास मन ...बहुत ही सुन्दर लिखा है .... इस प्रकार का अहसास मन को जरूर संवेदना देता है <br />कविता का बड़ा या छोटा होना उसके प्रभावशाली होने से बिलकुल अलग है, मुक्त छंद को तो वैसे भी छोटा होना चाहिए क्योंकि छंद पाठक को बाँध लेता है इसलिए बड़ी कविता भी असहज नहीं लगती परन्तु मुक्त छंद का बड़ा होना कई बार पाठक के लिए असहज हो जाता है <br /><br />साधुवाद <br /><br />अरुण मित्तल अद्भुतArun Mittal "Adbhut"https://www.blogger.com/profile/18192424604648383037noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82068602845834507702009-06-14T14:55:20.950+05:302009-06-14T14:55:20.950+05:30मुझे कविता की शुरुआत बहुत अच्छी लगी !पर माफ़ी चाहुग...मुझे कविता की शुरुआत बहुत अच्छी लगी !पर माफ़ी चाहुगी ..मुझे लगा कविता शुरू होते ही ख़त्म करदी.. इसमें शायद आप आगे कुछ और लिखते तो पढने में मुझे शायद और आनन्द आता....neeti sagarnoreply@blogger.com