tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post1353221409267728550..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: खोज.....शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-52132205611075797662008-08-28T05:32:00.000+05:302008-08-28T05:32:00.000+05:30THE SECOND PART OF THE POEM IS HEART TOUCHING. SPI...THE SECOND PART OF THE POEM IS HEART TOUCHING. SPIRITUAL THINKING IS CLEARLY REFLECTED IN THOSE LINES.MAY GOD BLESS YOU TO REACH THE OPTIMUM LEVEL IN EACH AND EVERY FIELD OF YOUR LIFE.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-80734940250922977902007-12-07T11:23:00.000+05:302007-12-07T11:23:00.000+05:30गंधहीन पुष्प कोजिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?दिगह...गंधहीन पुष्प को<BR/>जिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?<BR/>दिगहरा पंछी को<BR/>जो खो चुका अनंत आसमान में.?<BR/>दिशाहीन नदी को<BR/>जो भूल चुकी अपना किनारा.?<BR/>विस्मृत शब्द को<BR/>या अमृत अनुभव को..<BR/>जो वह शायद कहीं छोड़ आया है...<BR/><BR/>भूलने की बवंडर में<BR/>या फ़िर भूलती जाऊं<BR/>खोजने की चक्रवात में....?<BR/><BR/>युग्म पर एक और दार्शनिक रचनाकार का पदार्पण हुआ है। अच्छा लगा इस रचना को पढकर। जितना मैं समझ सका, उसके अनुसार तो कविता कई अर्थ देती है और हर अर्थ गूढ। धीरे-धीरे सारे अर्थों को समझने की कोशिश करूँगा। तब-तक एक हीं अर्थ से संतुष्ट हो जाता हूँ।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-54271000012919349072007-12-04T18:54:00.000+05:302007-12-04T18:54:00.000+05:30सुनीता जी शब्द और भाव का सुदर समन्वय देखने को मिला...सुनीता जी <BR/>शब्द और भाव का सुदर समन्वय देखने को मिला है आप की कविता में. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31689039091130348482007-12-04T17:04:00.000+05:302007-12-04T17:04:00.000+05:30खोज... अच्छा विषय..अच्छी सोच!दार्शनिक होने के लिये...खोज... अच्छा विषय..अच्छी सोच!<BR/><BR/>दार्शनिक होने के लिये अनुभव चाहिये और अनुभव उम्र की मोहताज़ नहीं... सही! साबित कर दिया है आपने...<BR/><BR/>लिखने से पहले आपने स्थिति को कितने करीब से महसूस किया है, आपकी रचना को पढ़कर महसूस हो रहा है।<BR/><BR/>एक बात और हो साबित हो गई कि आज भी रचनात्मकता दिल से जन्म लेती है, दिखावटीपन से दूर है...<BR/><BR/>बहुत-बहुत बधाई!गिरिराज जोशीhttps://www.blogger.com/profile/13316021987438126843noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-60464903000927489572007-12-04T13:15:00.000+05:302007-12-04T13:15:00.000+05:30आप की कविता में एक रहस्य समाया हुआ लगता है-जैसे अन...आप की कविता में एक रहस्य समाया हुआ लगता है-जैसे अन्तर मन की ख़ुद से कुछ गुप्त कशमकश हो रही हो-जिसे आप की लेखनी ने कागज़ पर उतारने की कोशिश की है---बधाई-Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42138753920368822882007-12-03T17:07:00.000+05:302007-12-03T17:07:00.000+05:30खुद से खुद की बात है खुद से खुद का ज़िक्रखुद ना भटक...खुद से खुद की बात है खुद से खुद का ज़िक्र<BR/>खुद ना भटके रास्ता 'राघव' खुद की फिक्र<BR/><BR/>मेरे हिसाब से चिंतन मनन प्रधान रचना है.<BR/>सुनीता जी बतायें क्या मैं कविता के वस्तविक अर्थ तक पहुँच रहा हू या कहीं भटक रहा हूँ<BR/>एक अच्छी सारगर्भित रचना के लिये बधाईभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17488533780762515882007-12-03T14:11:00.000+05:302007-12-03T14:11:00.000+05:30सुनीता जी मुझे तो पूरी रचना बहुत सार्थक लगी.... बश...सुनीता जी मुझे तो पूरी रचना बहुत सार्थक लगी.... बशाईSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-21147401166019208242007-12-03T13:25:00.000+05:302007-12-03T13:25:00.000+05:30अभी तक मोहिन्दर जी ही दार्शनिक कवि थे, अब आपका भी ...अभी तक मोहिन्दर जी ही दार्शनिक कवि थे, अब आपका भी पर्दापण हुआ। स्वागत आपकाशैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85256597539683369072007-12-03T13:19:00.000+05:302007-12-03T13:19:00.000+05:30सुनीता जी,गहन अर्थ लिये मेरे पसन्द की कविता...बधाई...सुनीता जी,<BR/>गहन अर्थ लिये मेरे पसन्द की कविता...<BR/><BR/>बधाईMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-53396152099830088922007-12-03T12:58:00.000+05:302007-12-03T12:58:00.000+05:30गंधहीन पुष्प कोजिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?दिगह...गंधहीन पुष्प को<BR/>जिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?<BR/>दिगहरा पंछी को<BR/>जो खो चुका अनंत आसमान में.?<BR/>दिशाहीन नदी को<BR/>जो भूल चुकी अपना किनारा.?<BR/>विस्मृत शब्द को<BR/>या अमृत अनुभव को..<BR/><BR/>उस आत्मीय सत्ता से<BR/>जिसे मैं ले जाऊं मूर्त से अमूर्त की ओर<BR/>नहीं तो क्या जीवन भर ऐसे ही मिटती रहूँ<BR/>भूलने की बवंडर में<BR/>या फ़िर भूलती जाऊं<BR/>खोजने की चक्रवात में....?<BR/><BR/>AACHA LIKHA HAI LAGTA HAI ADHYAATAM KI OR GAHARA JHUKAAV HAI....Anupamahttps://www.blogger.com/profile/12917377161456641316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-68277828877024758192007-12-03T09:59:00.000+05:302007-12-03T09:59:00.000+05:30सुनीता जी!इतने गंभीर विमर्श के बाद अब कहने को मेरे...सुनीता जी!<BR/>इतने गंभीर विमर्श के बाद अब कहने को मेरे पास कुछ विशेष नहीं बचा है. बस बधाई स्वीकारें!SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-21159414383838257312007-12-03T09:48:00.000+05:302007-12-03T09:48:00.000+05:30सुनीता जी,रचना के सूफियाना तत्व इसे उँचायी प्रदान ...सुनीता जी,<BR/><BR/>रचना के सूफियाना तत्व इसे उँचायी प्रदान कर रहे हैं। संप्रेषणीयता की कमी मैं नहीं मानता अपितु हर बार पढने पर नये अर्थों को प्रदान करती रचना बेहद उत्कृष्ट है।<BR/><BR/>बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5998378446783277642007-12-02T20:54:00.000+05:302007-12-02T20:54:00.000+05:30सुनीता जी कविता के भाव अच्छे है मगर क्यों कविता अध...सुनीता जी कविता के भाव अच्छे है <BR/>मगर क्यों कविता अधूरी सी लगी वैसे अच्छी है और एक बात अगर इसका विषये खोज न दे कर dhundh रहा है लिखे टू जादा सही हैanjuhttps://www.blogger.com/profile/05253751080116301279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-7334483877860721612007-12-02T16:05:00.000+05:302007-12-02T16:05:00.000+05:30सुनीता जीगंधहीन पुष्प कोजिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी...सुनीता जी<BR/><BR/><BR/><BR/>गंधहीन पुष्प को<BR/>जिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?<BR/>........?<BR/>दिशाहीन नदी को<BR/>......<BR/><BR/>जो वह शायद कहीं छोड़ आया है...<BR/>.......<BR/><BR/>ले जाऊं मूर्त से अमूर्त की ओर<BR/>नहीं तो क्या जीवन भर ऐसे ही मिटती रहूँ<BR/>.......<BR/>खोजने की चक्रवात में....?<BR/><BR/>प्रारम्भ से ही देख रहा हूं आपकी रचनाओं को.... गार्म्भीय के आलोक में अपनी डगर ढूंढती प्यारी सी बच्चियों की तरह. एक मुस्कराहट है इस पल, आपकी रचना एवं ऊपर पढ़ी सारी टिप्पणियों के बाद. युग्म को 'नजर ना लगे' वाक्य का एक मुहावरे के रूप में ही प्रयोग कर रहा हूं <BR/>स्नेह <BR/>शुभकामनाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-54079946706564325972007-12-02T15:37:00.000+05:302007-12-02T15:37:00.000+05:30सुनीता जीबहुत अच्छा लिखा उस आत्मीय सत्ता सेजिसे मै...सुनीता जी<BR/>बहुत अच्छा लिखा उस आत्मीय सत्ता से<BR/>जिसे मैं ले जाऊं मूर्त से अमूर्त की ओर<BR/>नहीं तो क्या जीवन भर ऐसे ही मिटती रहूँ<BR/>भूलने की बवंडर में <BR/>आजकल यही स्थिति है । <BR/>अच्छा मोड़ दिया है । बधाई ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85252632735116329412007-12-02T12:21:00.000+05:302007-12-02T12:21:00.000+05:30सुनीता जी,आपकी कविता में कोई दोष नही है.....हाँ, व...सुनीता जी,<BR/>आपकी कविता में कोई दोष नही है.....हाँ, वही संप्रेषण की दृष्टि से थोडी मुश्किल लग रही थी...लेकिन आपने स्पष्ट कर दिया अब....<BR/>स्त्री भी खोजी है...वो तो है ही.... अपने आप को खो देने की चाह भी है और उसे भूल जाने की भी...महादेवी वर्मा इस तरह के रहस्यवाद का खूबसूरत प्रयोग करती थीं....आपकी कविता भी वैसी ही है.....<BR/>निखिल आनंद गिरिNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-81972713120591422862007-12-02T12:20:00.000+05:302007-12-02T12:20:00.000+05:30आग्रह हैअनुरोध हैउस आत्मीय सत्ता सेजिसे मैं ले जाऊ...आग्रह है<BR/>अनुरोध है<BR/>उस आत्मीय सत्ता से<BR/>जिसे मैं ले जाऊं मूर्त से अमूर्त की ओर<BR/>नहीं तो क्या जीवन भर ऐसे ही मिटती रहूँ<BR/>भूलने की बवंडर में<BR/>या फ़िर भूलती जाऊं<BR/>खोजने की चक्रवात में....?<BR/>आत्म परीक्षण का साक्छात्कार करती ये पंक्तियाँ विशेष है.<BR/><BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34222690945846796432007-12-02T12:00:00.000+05:302007-12-02T12:00:00.000+05:30निखिलजी, राजीवजी एवं रंजू जी अत्यन्त आभारी हूँ क...निखिलजी, राजीवजी एवं रंजू जी अत्यन्त आभारी हूँ कि आपको मेरी कवितायें पसंद आती हैं...जिस अस्पष्टता की बात आप कर रहें हैं ...उसके बारे मैं कुछ कहना चाहूंगी...<BR/>ये आग्रह है उस खोजी से जो सिर्फ़ ढूँढने में व्यस्त है उसे कभी अमूर्त की और ले जाने की चाह है तो कभी उसे भूल जाने की चाह है या अपने आप को खो देना है उस खोजी को खोजने की चक्रवात मैं .....खोजी सिर्फ़ पुरूष ही नही स्त्री भी है ....<BR/>पता नहीं मैं इसे ठीक से संप्रेषित कर पा रही हूँ या नहीं...मार्गदर्शन करें...Dr. sunita yadavhttps://www.blogger.com/profile/00087805599431710687noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5367535304234038792007-12-02T10:50:00.000+05:302007-12-02T10:50:00.000+05:30सुनीता जी आपकी कविता का आरंभ बेहद सुंदर तरीके से ह...सुनीता जी आपकी कविता का आरंभ बेहद सुंदर तरीके से हुआ और इन पंक्तियों ने इसके भाव पक्ष को भी बहुत गहराई से बताया <BR/><BR/>वह किसे ढूँढ रहा है?<BR/><BR/>गंधहीन पुष्प को<BR/>जिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?<BR/>दिगहरा पंछी को<BR/>जो खो चुका अनंत आसमान में.?<BR/>दिशाहीन नदी को<BR/>जो भूल चुकी अपना किनारा.?<BR/>विस्मृत शब्द को<BR/>या अमृत अनुभव को..<BR/><BR/>सुंदर ....<BR/>पर बाद में कही यह अस्पष्ट सी हो गई है ..जैसे कोई बात होंठो तक आते आते रुक गई या बदल गई ..यह मेरे अपने विचार भी हो सकते हैं ..:) इसको पढ़ना अच्छा लगा ..शुभकामना के साथ <BR/>रंजूरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9364299268569123342007-12-02T09:13:00.000+05:302007-12-02T09:13:00.000+05:30सुनीता जी आपकी कविता के इस हिस्से ने बेहद प्रभावित...सुनीता जी आपकी कविता के इस हिस्से ने बेहद प्रभावित किया<BR/>"वह किसे ढूँढ रहा है?<BR/><BR/>गंधहीन पुष्प को<BR/>जिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?<BR/>दिगहरा पंछी को<BR/>जो खो चुका अनंत आसमान में.?<BR/>दिशाहीन नदी को<BR/>जो भूल चुकी अपना किनारा.?<BR/>विस्मृत शब्द को<BR/>या अमृत अनुभव को..<BR/>जो वह शायद कहीं छोड़ आया है..."<BR/><BR/>मृगतृष्णा के पीछे-पीछे तो श्री राम जी भी चले गए थे...हमारी या आपकी बिसात ही क्या है...<BR/><BR/>माफी चाहूँगा कि इसके बाद का भाव मैँ ठीक से समझने में असमर्थ रहा...इसे मेरा अल्प ज्ञान ही समझें ..आप बेहतर जानती होंगी...<BR/><BR/>वैसे कविता बहुत सुन्दर है...बधाई...राजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26203946010353823172007-12-02T00:43:00.000+05:302007-12-02T00:43:00.000+05:30सुनीता जी,आपको ज्यादा पढा नही है मगर अच्छा लग रहा ...सुनीता जी,<BR/>आपको ज्यादा पढा नही है मगर अच्छा लग रहा है आपको पढ़ते हुए..<BR/>"वह किसे ढूँढ रहा है?<BR/><BR/>गंधहीन पुष्प को<BR/>जिसकी सुगंध पुरवाई ले चुकी है.?<BR/>दिगहरा पंछी को<BR/>जो खो चुका अनंत आसमान में.?<BR/>दिशाहीन नदी को<BR/>जो भूल चुकी अपना किनारा.?<BR/>विस्मृत शब्द को<BR/>या अमृत अनुभव को..<BR/>जो वह शायद कहीं छोड़ आया है..."<BR/>यहाँ तक कविता पूरी तरह से प्रभावित करती है....<BR/>इसके बाद मुझे पता नही क्यों, शब्द-चयन में या फिर भाव समझने में थोडी परेशानी हुई...<BR/>वैसे कुल मिलाकर कविता प्रशंश्नीय है........<BR/><BR/>निखिल आनंद गिरिNikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.com