tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post1215044217611455487..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: आशुतोष मासूम बलात्कारी हैंशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29221797816985660252008-01-29T13:51:00.000+05:302008-01-29T13:51:00.000+05:30कवि का आक्रोश इतना बढ़ा है की कहीं कहीं कविता वक्री...कवि का आक्रोश इतना बढ़ा है की कहीं कहीं कविता वक्री हो गयी है... <BR/><BR/>सुन्दर लेखन..भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63368393792790084352008-01-28T09:58:00.000+05:302008-01-28T09:58:00.000+05:30फटे हुये कपड़ों से,अर्धनग्न बदन को छिपाती,उस अभागि...फटे हुये कपड़ों से,<BR/>अर्धनग्न बदन को छिपाती,<BR/>उस अभागिन को,<BR/>छोटे कपड़ों में, <BR/>जिस्म दिखाती,<BR/>मार्डन से मिलवा कर,<BR/>दीवारों से पूछ आया,<BR/>अबला कौन???<BR/><BR/>नौकरी के लिये शर्त थी,<BR/>टेबल पर चंद हजार रुपये,<BR/>उसी टेबल पर मैंने खुद को,<BR/>आतंकवादी लिख आया हूँ।<BR/>" बहुत मार्मिक चित्रण किया है शब्दों से , दिल को छु गई आपकी ये रचनाseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91854445427233064042008-01-27T18:43:00.000+05:302008-01-27T18:43:00.000+05:30आशुतोष जी, जो आक्रोश आपने प्रकट किया है वो वाजिब ह...आशुतोष जी, जो आक्रोश आपने प्रकट किया है वो वाजिब है,<BR/>ओजपूर्ण और बेहद प्रभावकारी कविता के लिए दिल से साधुवाद.<BR/> कुछ साथियों को कविता समझने मे परेशानी हो रही है तो ये निहायत ही व्यक्तिगत विषय हो सकता है,अपनी बात करूँ तो ऐसा लग रहा है मानो आपने मेरे दिल मे उमड़ रहे ज्वार को दिशा दे दी है. <BR/> एक विशेष बात मैं कहना चाहूँगा की कविता का मतलब शायद इतना ही है की जिस उद्देश्य से वह लिखी गई है वो पूर्ण हो और मुझे ऐसा लगता है की आप आपने प्रयास मे सफल रहे हैं.<BR/> बहुत बहुत बधाई<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36906299608671834772008-01-27T17:27:00.000+05:302008-01-27T17:27:00.000+05:30कविता में आक्रोश साफ झलक रहा है.कथ्य गंभीर भी है. ...कविता में आक्रोश साफ झलक रहा है.<BR/>कथ्य गंभीर भी है.<BR/> एक प्रभावी कविता है.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-46573879279491996152008-01-26T16:29:00.000+05:302008-01-26T16:29:00.000+05:30हमेशा से ऐसा ही कुछ लिखना चाहता हूँ,आपने निहित अर्...हमेशा से ऐसा ही कुछ लिखना चाहता हूँ,आपने निहित अर्थों को अच्छा तारतम्य दिया है.मैं अच्छी सोच से स्टार्ट देता हूँ पर आखिर में वो बस एक तुकबंदी रह जाती है.<BR/><BR/>खैर, जहाँ तक मैं "अबला कौन" वाली पंक्तियों का अर्थ समझ पाया हूँ कि ये generalisation की ओर इशारा है कि जब हम किसी समूह के सभी लोगों को एक ही चश्मे से देखते हैं....<BR/>उदाहरण के तौर पर.....आस्ट्रेलियन गुस्सैल हैं, अमरीकी रईस हैं,अफ्रीकी जंगली हैं,और भारतीय बुद्धिमान होते हैं....बस इसी तरह हमने नारी की एक ही अबला छवि अपने मन में बना रखी है कि:<BR/><BR/>नारी तेरी यही कहानी <BR/>आँचल में दूध <BR/>आँखों में पानी <BR/><BR/>और इसी लकीर को पीटते हुए हम पहचान करना भूल गए हैं कि "असली अबला कौन है"??हमने अपवाद की कोई जगह नहीं छोड़ी है.<BR/><BR/> उम्मीद है कि मैं बात को समझाने में भी सफल रहा हूँ.हाँ, समझने में कितना सफल रहा हूँ वो तो इस कविता के रचयिता ही बता सकते हैं.वनमानुषhttps://www.blogger.com/profile/01355881041669667464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-34838884137500242222008-01-26T15:56:00.000+05:302008-01-26T15:56:00.000+05:30आषुतोष जी,आप ने सुन्दर शव्दो से सजाई हे अपनी कविता...आषुतोष जी,आप ने सुन्दर शव्दो से सजाई हे अपनी कविता, लेकिन मेरी दिक्कत भी भाई दिवाकर मिश्र जेसी हे, हो सके तो थोडा विस्त्तार से सहमझ दे, आप की मेहरबानी होगी.राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-80545434072243875312008-01-26T15:09:00.000+05:302008-01-26T15:09:00.000+05:30आषुतोष जी,आपकी कविता बड़ी ही प्रभावकारी है । अच्छी ...आषुतोष जी,<BR/><BR/>आपकी कविता बड़ी ही प्रभावकारी है । अच्छी कविता लिखने के लिए बधाई । पर सभी पंक्तियाँ तो ठीक समझ में आ रही हैं परन्तु “आधुनिकता - अबला नारी” और “फटे हुए कपड़ों से...” वाली कड़ी का आशय स्पष्ट रूप से समझने में थोड़ी परेशानी हो रही है, या यूँ कहें कि उस कड़ी का आशय ठीक से समझ में मुझे नहीं आया ।<BR/>शायद किसी और पाठक को अच्छे से समझ में आएगा तो वह स्पष्ट कर देगा ।दिवाकर मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/15376537950079751261noreply@blogger.com